गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला नाम का पर्वत है। ये गया धाम के वायव्य कोण में यानी उत्तर-पश्चिम दिशा में है। इस पर्वत की चोटी पर प्रेतशिला नाम की वेदी है, लेकिन पूरे पर्वतीय प्रदेश को प्रेतशिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रेत पर्वत की ऊंचाई लगभग 975 फीट है। जो लोग सक्षम हैं वो लगभग 400 सीढ़ियां चढ़कर प्रेतशिला नाम की वेदी पर पिंडदान के लिए जाते हैं। जो लोग वहां नहीं जा सकते वो पर्वत के नीचे ही तालाब के किनारे या शिव मंदिर में श्राद्धकर्म कर लेते हैं। प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से किसी कारण से अकाल मृत्यु के कारण प्रेतयोनि में भटकते प्राणियों को भी मुक्ति मिल जाती है। वायु पुराण में इसका वर्णन है। वायु पुराण के अनुसार यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध व पिण्डदान का विशेष महत्व है। इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते हैं जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है। प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है। श्रद्धालुओं द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तु से बना पिंड उड़ाया जाता है। प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की पुरानी परंपरा है। प्रेतशिला के पुजारी मनोज धामी के अनुसार इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं। प्रेतशिला के मूल भाग यानी पर्वत के नीचे ही ब्रह्म कुण्ड में स्नान-तर्पण के बाद श्राद्ध का विधान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार ब्रहमा जी द्वारा किया गया था। आचार्य नवीन चंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि श्राद्ध के बाद पिण्ड को ब्रह्म कुण्ड में स्थान देकर प्रेत पर्वत पर जाते हैं। वहां श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। किवंदतियों के मुताबिक, इस पर्वत पर श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता भी पहुंचकर अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। कहा जाता है कि पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जाती हैं। पिंडदानियों के कर्मकांड को पूरा करने के बाद इसी वेदी पर पिंड को अर्पित किया जाता है। यहां के पुजारी पं मनीलाल बारीक के अनुसार प्रेतशिला का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ। इस शिला पर यमराज का मंदिर, श्रीराम दरबार (परिवार) देवालय के साथ श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के लिए दो कक्ष...
Read moreIt is situated app 8 km far from Gaya railways station.It is situated in north western side of the city.Aporoach road from Chotki Nawada to Pretshila is very good. It is a place for pind daan of people who are died due to unnatural death Pretshila is very high hill.It is 676 stairs from its base.On way no arrangement for sitting, urinals and drinking water tape.It is very essential for the pind dani .On top of hills statue of Lord Vishnu and Goddess Kali are installed and one pujari is there for helping the pind dani. Pind dan rituals are performed at the base of the pretshila Hill.by the help of panda. Some small shops are there making available tea,drinking water , biscuits, etc on...
Read moreJust awesome especially if you climb to the top of the pretshila. Whole of gaya is visible. This place is famous for accidental death rituals. Decade ago this place was forbidden for stay after evening but currently there are people all around the place every hour. Permanent shops are built in the vicinity. Labor yacht is available for people to reach the top in a...
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