शहर में स्थापित प्रसिद्ध धर्मनाथ मंदिर एक हजार वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि यहां 1016 में स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ। शिव लिंग की पूजा-अर्चना उस वक्त संत धर्मनाथ बाबा ने शुरू की और उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नामकरण भी हो गया। फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी की देखरेख में मंदिर में बाबा भोले की पूजा-अर्चना होती है। यह मंदिर काफी विख्यात है। दूरदराज से लोग यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि धर्मनाथ मंदिर में जो भी मन्नतें मांगी जाती है वह पूरी होती है। सावन महीना में यहां प्रतिदिन पचास हजार से अधिक लोग जलाभिषेक करने पहुंचते हैं।
सावन में होती है विशेष पूजा
सावन में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए विशेष व्यवस्था की जाती है। सावन की प्रत्येक सोमवार व महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है। साथ हीं भव्य श्रृंगार भी होता है। मंदिर से जुड़े जानकारो का कहना है कि जिस जगह पर वर्तमान में धर्मनाथ मंदिर स्थापित है, वह स्थान एक समय जंगल से भरा हुआ था। इसके दक्षिण में सटे घाघरा (सरयू) नदी बहती थी। नदी आज भी मंदिर के दक्षिण दिशा से ही बहती है। जानकारों का कहना है कि उसी जंगल के बीच 1016 में स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ।
संत धर्मनाथ ने शुरू की थी पूजा वहां से संत बाबा धर्मनाथ गुजर रहे थे। उनकी नजर शिवलिंग पर पड़ी। उन्होंने शिवलिंग के स्थान की साफ-सफाई की और भगवान भोले शंकर की पूजा- अर्चना शुरू की। धर्मनाथ बाबा भी वहीं पर तपस्या करने लगे। मंदिर की ख्याति धीरे-धीरे दूरदराज में फैलने लगी। धीरे-धीरे लोगों में यह विश्वास बैठता गया कि यहां जो भी मन्नतें मांगी जाती है वह पूरी होती है। इसके बाद दूर दराज से लोग आकर यहां पूजा अर्चना करने लगे। करीब तीन सौ साल तक धर्मनाथ बाबा ने तपस्या की।
संत बाबा धर्मनाथ ने शिवलिंग के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली। उनके समाधि लेने के बाद उनके शिष्य सारणनाथ की देखरेख में पूजा-अर्चना की जा रही थी। बाद में उन्होंने भी अपने गुरु के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली। मंदिर परिसर में दो महात्माओं की समाधि है। जानकारों का कहना है कि मंदिर की ख्याति दिन प्रतिदिन और बढ़ती गयी। बाद में यहां शैव संप्रदाय के अनुयायी पहुंचे और वे लोग भगवान भोले शंकर की पूजा- अर्चना करने लगे।
धर्मनाथ मंदिर में फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी मंदिर में पूजा- अर्चना कराती है। मंदिर के महंथ बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि उनके गुरु शेर पर्वत ने करीब सौ साल तक मंदिर में पूजा- अर्चना की थी। उन्हें नागा बाबा के रूप में भी जाना जाता था। बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि फिलहाल सावन माह को लेकर विशेष तैयारी की गयी है। भक्तों से मिले चढ़ावा व उनके सहयोग से मंदिर का विकास लगातार हो रहा है। यहां शादी- विवाह को लेकर दूर दराज से लोग पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में अन्य सभी देवताओं को भी स्थापित किया गया है। जिसकी नियमित पूजा...
Read moreधर्मनाथ मंदिर एक हजार वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि यहां 1016 में स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ। शिव लिंग की पूजा-अर्चना उस वक्त संत धर्मनाथ बाबा ने शुरू की और उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नामकरण भी हो गया। फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी की देखरेख में मंदिर में बाबा भोले की पूजा-अर्चना होती है। यह मंदिर काफी विख्यात है। दूरदराज से लोग यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि धर्मनाथ मंदिर में जो भी मन्नतें मांगी जाती है वह पूरी होती है। सावन महीना में यहां प्रतिदिन पचास हजार से अधिक लोग जलाभिषेक करने पहुंचते हैं।
सावन में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए विशेष व्यवस्था की जाती है। सावन की प्रत्येक सोमवार व महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है। साथ हीं भव्य श्रृंगार भी होता है। मंदिर से जुड़े जानकारो का कहना है कि जिस जगह पर वर्तमान में धर्मनाथ मंदिर स्थापित है, वह स्थान एक समय जंगल से भरा हुआ था। इसके दक्षिण में सटे घाघरा (सरयू) नदी बहती थी। नदी आज भी मंदिर के दक्षिण दिशा से ही बहती है। जानकारों का कहना है कि उसी जंगल के बीच 1016 में स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ।
संत धर्मनाथ ने शुरू की थी पूजा वहां से संत बाबा धर्मनाथ गुजर रहे थे। उनकी नजर शिवलिंग पर पड़ी। उन्होंने शिवलिंग के स्थान की साफ-सफाई की और भगवान भोले शंकर की पूजा- अर्चना शुरू की। धर्मनाथ बाबा भी वहीं पर तपस्या करने लगे। मंदिर की ख्याति धीरे-धीरे दूरदराज में फैलने लगी। धीरे-धीरे लोगों में यह विश्वास बैठता गया कि यहां जो भी मन्नतें मांगी जाती है वह पूरी होती है। इसके बाद दूर दराज से लोग आकर यहां पूजा अर्चना करने लगे। करीब तीन सौ साल तक धर्मनाथ बाबा ने तपस्या की।
संत बाबा धर्मनाथ ने शिवलिंग के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली। उनके समाधि लेने के बाद उनके शिष्य सारणनाथ की देखरेख में पूजा-अर्चना की जा रही थी। बाद में उन्होंने भी अपने गुरु के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली। मंदिर परिसर में दो महात्माओं की समाधि है। जानकारों का कहना है कि मंदिर की ख्याति दिन प्रतिदिन और बढ़ती गयी। बाद में यहां शैव संप्रदाय के अनुयायी पहुंचे और वे लोग भगवान भोले शंकर की पूजा- अर्चना करने लगे।
धर्मनाथ मंदिर में फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी मंदिर में पूजा- अर्चना कराती है। मंदिर के महंथ बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि उनके गुरु शेर पर्वत ने करीब सौ साल तक मंदिर में पूजा- अर्चना की थी। उन्हें नागा बाबा के रूप में भी जाना जाता था। बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि फिलहाल सावन माह को लेकर विशेष तैयारी की गयी है। भक्तों से मिले चढ़ावा व उनके सहयोग से मंदिर का विकास लगातार हो रहा है। यहां शादी- विवाह को लेकर दूर दराज से लोग पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में अन्य सभी देवताओं को भी स्थापित किया गया है। जिसकी नियमित पूजा...
Read moreOne of the oldest temple in chapra. The temple is well made and look good from the outside. Transportation is easy and available. You can take rickshaw or even walk by foot to Mandir from Chhapra Railway station 🚉. Approx 1 or 1.2 km from there. As i entered into the temple premises we can found that mess is everywhere and it is badly managed. Nothing is at the place and also lack of proper cleaning and disposal of worshipped material. The most important and good thing about this temple is that daily hundreds of people gathered at this mandir cum dharamsala for marriage purposes and it is supposed to be the blessing for the needy, poor etc as you can do various ritual there or even marriages are happening there. So that's a huge relief 😌 for many...
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