12वीं-13वीं सदी ई. में इस परिक्षेत्र में एक राजवंश का उदय हुआ जिरा काणनागवंश के नाम से 2 जाना जाता है। छ.ग. के कबीरधाम जिले के चौरागांव के पास स्थित मंडवा महल से प्राप्त खण्डित शिलालेख इस राजवश का प्रमाण हैं, यह शिलालेख विक्रम संवत् लगभग 1406 (1349 ई.) में उत्कीर्ण किया गया है। राजा रामचंद्रदेव द्वारा एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर के रख-रखाव के लिए उन्होंने दान-स्वरूप कुछ ग्राम भी दिये थे। हैह्यवंशी राजकुमारी अंबिकादेवी से उन्होंने विवाह किया था तथा फणिनागवंशी रतनपुर के कल्चुरि शासकों के सामंत थे, यह भी अभिलेख से ज्ञात होता है। इस शिलालेख में इस राजवंश की विस्तृत वंशावली प्राप्त होती है। शिलालेख में सेन जातुकर्ण की दो पुत्रियों-नागराज और मिथिला के जन्म के वर्णन के अतिरिक्त निम्नलिखित शासकों के नाम भी उत्कीर्ण हैं - 1. अहिराज, 2. राजल्ला, 3. धरणीधर, 4. महिमादेव, 5. शक्ति चंद्र, 6. गोपलदेव, 7. नलदेव, 8. भुवनपाल, 9. कृतिपाल, 10. जयत्रपाल, 11. महिपाल, 12. विषमपाल, 13. जन्ह, 14. जनपाल, 15. यशोराज, 16. कन्नदेव (नक्कड़देव) 17. लक्ष्मी वर्मा, 18. खड़गदेव, 19. भुवनायकमल्ल, 20. अर्जुन, 21. भीम, 22. भोज, 23. लक्ष्मण, 24. रामचंद्र, 25. अर्जुन ।
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इस राजवंश के नरेश गोपालदेव और यशोराज के मूर्ति-लेख पाये गये हैं। इनमें से एक मूर्ति लेख गोपालदेव का है-जो भोरमदेव मंदिर के सभा गृह में रखी है। यह मंदिर कवर्धा जिले के छपरी ग्राम में है। इसका काल 840 (कलचुरि संवत) तथा दूसरी प्रतिमा लेख यशोराज की है जो सहसपुर ग्राम में हैं और गोपालदेव नाम के भी अनेक शिलालेख छत्तीसगढ़ में...
Read moreThe archaeological remains of Pachrahi have been kept very well after collecting the tools and corpses obtained from the excavations. Along with this, the replica of Rudra Shiv Pratima of Talagaon(Bilaspur)...
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