From time immemorial, the importance of the temple of Dudhakhedi Maa as a primal power is well established in the remote villages of Malwa, Mewar and Hadoti region. This divine temple of Dudhakhedi Mataji is situated 10 kilometers away from Tehsil Bhanpura of Mandsaur district on Garoth Road. It is the center of faith of millions of devotees. Mataji is seated in Panchmukhi form. An ancient eternal flame is burning in front of the statue.
Evidence of worship from the 13th century
It is a popular belief that the goddess was the goddess worshiped by the mythological king Mordhwaj. From the point of view of architectural history, there is evidence of continuous worship here since the 13th century. During the Maratha period, Lokmata Ahilyabai built a Dharamshala. She was the worshiped goddess of Jhala Zalim Singh, a resident of Kota. He built a Dharamshala here and Gwalior king Sindhiya also built a Dharamshala here. Thousands of devotees come here every day. People suffering from paralysis are seen recovering here. There is relief from physical, divine and material suffering.
Enthroned as the power of devotees in Kalyug
A fair is organized in both Navratri, but this year also the administration fair has been canceled due to Covid.
thousands of devotees receive religious benefits
Earlier there was an ancient temple of Dudhakhedi Mata Ji, in its place the construction work of a grand new temple is in progress, here on the auspicious occasion of Navratri, there is a rush of devotees for spiritual and religious festivals, in which Kesharmata Maa from Madhya Pradesh, Rajasthan and the whole country. Innumerable devotees come for darshan along with their families.
Dudhakhedi Mata Ji, 12 km from Bhanpura. m. 16 km from Dur and Garoth. m. It is situated far away. During Navratri, nine forms of Dudhakhedi Mataji are seen. Every day Mata Ji appears to her devotees in a new form, it is believed that the idol of Mata is so miraculous that no devotee is able to make eye contact with her. Ever since the temple was...
Read moreयह दुधाखेड़ी माताजी मंदिर भानपुरा तहसील, मंदसौर जिले, मध्य प्रदेश के पास स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भानपुरा से लगभग १२ किलोमीटर दूर भानपुरा–गरोठ मार्ग पर दुर्धखड़ी (Dudhakhēdi) गांव में स्थित है ।
🔹 प्रमुख जानकारी
स्थान: भानपुरा से करीब १२ किमी दूर, गरोठ मार्ग पर।
विश्वसनीयता: यह भानपुरा तहसील का एकमात्र प्रमुख आध्यात्मिक स्थल माना जाता है और मंदिर का संचालन एक प्रबंधन समिति द्वारा होता है ।
चिकित्सा आस्था: माना जाता है कि पैरालाइसिस जैसी गंभीर बीमारियाँ, जिन्हें आधुनिक इलाज से ठीक न होने पर श्रद्धालु यहां आकर चंगा हुए। इस कारण यह मंदिर विशेष श्रद्धा का केन्द्र बना है ।
मंदिर का इतिहास: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल १३वीं सदी से माता अम्बा की आराधना के लिए प्रसिद्ध है ।
नवीनीकरण गतिविधियाँ: मंदिर का विस्तार और सौंदर्यीकरण कार्य २०२४ से शुरू हुआ है, जिसे २०२५ तक पूरा करने का लक्ष्य है ।
🕉️ दर्शन व यात्रा सुझाव
भक्त मेला: नवरात्रों में यहां विशाल मेला लगता है जिसमें आसपास के राज्यों से श्रद्धालु आते हैं ।
पूजा–आरती: मंदिर में रोज सुबह और शाम पूजा आरती आयोजित होती है, आमतौर पर एक घंटा मंदिर के कपाट खोलकर आरती की जाती है ।
अनुष्ठान: पहले वहाँ बलि या विशेष अनुष्ठान होते थे, लेकिन बाद में इन्हें बंद कर दिया गया था—विशेष रूप से कोविड‑19 लॉकडाउन के दौरान मंदिर को बंद भी किया गया था ।
📌 संक्षेप तालिका
विषय विवरण
दूरी भानपुरा से ~12 किमी देवी दुर्धखड़ी माताजी (माँ अम्बा की रूपी) आस्था अलौकिक चंगा होने की श्रद्धा, विशेष रूप से पैरालाइसिस रोगियों द्वारा स्थिति मंदिर निर्माण पुनर्निर्माणाधीन (२०२४–२५) मेलों में भक्त खासकर नवरात्रों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं दर्शन समय सुबह‑शाम पूजा–आरती, कपाट खोलने का समय प्रबंधन समिति तय करती है
🧭 यात्रा व जानकारी सुझाव
कैसे जाएं: भानपुरा से दोपहिया वाहन या कार द्वारा गरोठ मार्ग से करीब १२ कि.मी. चलकर आसानी से पहुँचा जा सकता है।
स्थान की पहचान: "Dudhākheḍī Mataji Temple" गूगल मैप्स में दिखता है; आसपास ग्रामीण मार्गों से सजग रहना अच्छा है।
दर्शन‑समय: नवरात्र आदि विशेष दिनों पर दर्शन में भीड़ हो सकती है; सामान्य दिनों में सुबह‑शाम के समय दर्शन करना...
Read moreअनादिकाल से आद्य शक्ति के रूप में दुधाखेड़ी माँ के मंदिर के महत्व मालवा, मेवाड़ व हाड़ोती अंचल के सुदूर गाँव में सुप्रतिष्ठित है। मन्दसौर जिले के तहसील भानपुरा से गरोठ रोड पर 10 किलोमीटर दूर दुधाखेड़ी माताजी का यह दिव्य मंदिर स्थित है। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। माताजी पंचमुखी रूप में विराजित है। प्रतिमा के सम्मुख अतिप्राचीन एक अखण्ड ज्योत प्रज्वलित है।
13 वीं सदी से पूजा अर्चना का प्रमाण
लोक मान्यता है कि पौराणिक नरेश मोरध्वज की आराध्या देवी थी। स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से 13 वीं सदी से निरंतर यहाँ पूजा अर्चना का प्रमाण मिलता है। मराठाकाल में लोकमाता अहिल्याबाई ने धर्मशाला बनवाई। कोटा के मुहासिब आला, झाला जालिम सिंह की यह आराध्या देवी रही। इन्होंने यहाँ धर्मशाला व ग्वालियर नरेश सिंधियाँ ने भी यहाँ धर्मशाला बनवाई। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। लकवा बीमारी से पीड़ित यहाँ स्वास्थ्य लाभ लेते देखे जाते हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक कष्ट का निवारण होता है।
कलयुग में श्रद्धालुओं की शक्ति के रूप मे विराजित
दोनों नवरात्री में मेला लगता है, लेकिन इस साल भी कोविड वज़ह प्रशासन मेला रद्द कर दिया गया है।
हजारों श्रद्धालु धर्म लाभ करते हैं प्राप्त
दुधाखेड़ी माता जी का पहले प्राचीन मंदिर था जिसके स्थान पर भव्य नवीन मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है , यहाँ नवरात्रों के शुभ अवसर पर अध्यात्मिक एवं धार्मिक उत्सवों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, जिसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं पुरे देश से केशरमाता माँ के असंख्य भक्तजन परिवार सहित दर्शनार्थ पहुँचते हैं।
दुधाखेड़ी माता जी भानपुरा से 12 कि. मी. दुर और गरोठ से 16 कि. मी. दुर स्थित है। नवरात्रि के समय दुधाखेड़ी माताजी के नौ रूप देखने को मिलते हैं। रोज नये रूप मे माता जी अपने भक्तों को दर्शन देती है,, मान्यता है कि माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी है कि कोई भी भक्त उनसे आँख नहीं मिला पाता है। यहाँ पर जबसे मन्दिर बना है तब से एक अखण्ड जोत भी चल रही है। कई किलोमीटर लम्बी यात्रा करके भक्त यहाँ आते...
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