Kundar came into prominence after a chief of Khangars Khet Singh decided to build his capital here, in 1180s AD. He captured the fortress of Jinagarh from Chandelas, which was located here, and established his own state. After his death his grandson Maharaja Khub Singh Khangar built a splendid fort in place of Jinagarh fortress and named it ‘Garh Kundar’.
Garh Kundar remained as the capital of Khangar kings till its capture by Mohammad Tughlaq’s army in 1347 A.D. Later it was handed over to Bundelas, who were feudatories of Mughals.
Besides the main fort the remains of various ancient structures can be seen here. These isolated remains seem to quietly narrate the tale of the splendid past of Khangar kshtriyas. It is in the large and spacious courtyard of the fort, princess Kesar De (daughter of last Khangar king Maharaja Maan Singh) committed ‘jauhar’ (a ritual of voluntary immolation by jumping into a pool of fire, undertaken in medieval times by the kshatriya queens and princesses to save their honour from the invading enemy). A few rock and pillar inscriptions have been found in the fort, which tell us the story of Kesar De’s sacrifice.
The chief Minister of Madhya Pradesh announced a sum of rupees two crore forty three lakhs for the conservation of historical fort of Kundar during 3-day festival called "Virasat" held at the fort in...
Read moreदूर से दिखेगा पर पास आते ही गायब... किसी भूल-भुलैया से कम नहीं है एमपी के गढ़कुंडार का किला, पूरी कहानी जानिए गढ़कुंडार किला झांसी के पास सदियों पुराना है और चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। देश की आजादी तक खंगार राजा का किलेदार रहा। मंजिलों के रहस्य, अफवाहें और कहानियां इस किले के बारे में चलती हैं। इसके बाद बुंदेला शासन उत्तर प्रदेश के गढकुंडार में है एक रहस्यमयी किला दूर से दिखता है लेकिन पास आते ही हो जाता है गायब अंदर जाने पर किसी भूल-भुलैया से कम नहीं है यह किला झांसी: मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में एक जगह है। नाम है गढ़कुंडार। इस गढ़कुंडार में एक किला है। दिखने में तो यह विशाल किला सदियों पुराना है लेकिन यह अपने साथ कई रहस्यों को छुपाए बैठा है। कहते हैं कि यह किला दुश्मनों को अपने पास पहुंचने नहीं देता था। दूर से विशाल दिखता पर पास पहुंचते-पहुंचते आंखों से ओझल हो जाता। इसके गायब होने की पहेली को समझना बहुत आसान है। किला असल में चारों तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा है। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे, आसपास की पहाड़ियां बड़ी दिखने लगेंगी और किला उनके पीछे छिपता चला जाएगा। आगे चलने पर भी यह मुश्किल हल नहीं होती। तब कई रास्ते नजर आने लगते हैं और यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि किले की ओर कौन-सा रास्ता जाएगा। आइए जानते हैं रहस्यों से भरे गढ़कुंडार के इस खास किले के बारे में-
चंदेलों की विरासत अगर कोई किले के पास पहुंच भी जाए तो इसे जीतना आसान नहीं था। किले की ऊंची और मोटी दीवारों पर चढ़ना लगभग नामुमकिन था। दुश्मन के आते ही दुर्ग की रक्षा कर रही सेना परकोटे के छेदों से नीचे हमला बोल देती। इसे गढ़कुंडार का दुर्ग कहते हैं, जिसे चंदेल राजा यशोवर्मन ने नौवीं सदी में बनवाया था।
पृथ्वीराज का कब्जा कई पीढ़ियों तक वहां चंदेलों का शासन रहा। सन 1182 में पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमार्दि देव को हराकर चंदेलों की राजधानी महोबा पर कब्जा कर लिया। इस जीत के फौरन बाद महोबा से कोई सवा सौ किलोमीटर दूर बना यह दुर्ग भी उनके कब्जे में आ गया। पृथ्वीराज चौहान ने तब अपने खास सेनापति खेतसिंह खंगार को गढकुंडार का किलेदार बना दिया।
खंगारवंश का राज 10 साल बाद 1192 में पृथ्वीराज जब मोहम्मद गोरी से युद्ध हार गए, तब खेतसिंह ने खुद को गढ़कुंडार का राजा घोषित कर दिया। इस तरह 12वीं सदी के आखिरी दशक में शुरू हुआ खंगारवंश का राज। इस वंश की चार पीढ़ियों ने गढ़कुंडार पर शासन किया।
नारी सम्मान इस दौरान खंगार शासकों ने नई सामाजिक और धार्मिक प्रथाएं शुरू कीं, जो बुंदेलखंड के कई ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों में आज भी जिंदा हैं। कहते हैं कि खंगार राजा नारी सम्मान को लेकर बेहद सजग थे। उनके दौर में ही बेटी पूजन की शुरुआत हुई। यह प्रथा बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में तब से चली आ रही है।
बुंदेला राज स्थानीय लोगों के बीच लोककथाएं और लोकगीत भी मशहूर हैं, जिनसे खंगार राज का इतिहास पता चलता है। ऐसी ही दो कथाओं में खंगारवंश के अंत का पता चलता है। एक कथा के मुताबिक, सन 1347 में मोहम्मद बिन तुगलक ने गढ़कुंडार पर हमला किया और खंगार राजा मानसिंह को हरा दिया। तुगलक के बाद गढ़कुंडार बुंदेला शासकों के पास आ गया।
खंगार वंश का अंत दूसरी कथा भी है, जिसके मुताबिक खंगार वंश के आखिरी राजा हुरमत सिंह ने एक बुंदेला सेनापति सोहनलाल को शरण दी थी। बदले में राजा ने अपने बेटे नागदेव की शादी सोहनलाल की बेटी हेमवती से करवाने का प्रस्ताव रखा। सेनापति ने इससे इनकार कर दिया। कुछ समय बाद सोहनलाल ने एक दूसरे राजा पुण्यपाल परमार के साथ मिलकर हुरमत सिंह के खिलाफ साजिश रची। उसने राजा हुरमत से कहा कि वह राजकुमार से अपनी बेटी की शादी इस शर्त पर करने को तैयार है कि बारात में खंगार वंश का हर सदस्य शामिल होगा।
ओरछा बनी राजधानी राजा हुरमत ने शर्त मान ली। बारात आई, तो सभी को खूब शराब पिलाई गई। बाराती नशे में डूब गए और मौका देखकर सोहनलाल की सेना ने हमला कर दिया। उसी रात पूरा खंगार वंश खत्म हो गया। इस कथा को लेकर दोनों राजवंशों के अपने अलग-अलग दावे जरूर हैं, लेकिन इस बात पर...
Read moreGarh Kundar (also spelled Gadhkudhar) is a small village in the city of Tikamgarh, Niwari district of Madhya Pradesh. It has been named so after the splendid fort, or "Garh", of Kundar located here. From 925 to 1507 AD, Garh Kundar fort witnessed many battles and bloodshed. Yashovarma Chandel (925–940 AD) built the fort after conquering south western Bundelkhand. In the battle between Prithviraj Chauhan and the Chandels in 1182 AD fort commander. Shayaji Parmar lost and the fort came under Prithviraj Chauhan. Then Prithviraj Chauhan appointed Khetsingh Khangar as the ruler of this fort who founded the Khangar Dynasty afterwards. The fort is built at the top of a hill and has five stories, in which two are underground and three are above it. The fort is built in such a way that it is visible from 5 km but as one keeps on coming near to it, the fort seems to be away from sight and the main road gets diverted to any other direction.
The history of the fort has been beautifully written by Vrindawanlal...
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