शुद्ध पवित्र चैतन्य जीव जब जो कि परमात्मा का अंश है जब इस धरती पर जन्म लेता है तो माया बद्ध हो अपने स्वरूप से भ्रमित हो जाता है खुद को कर्ता समझकर धन और ऋण के चक्कर मॆ पड़ता है। जब धन के चक्कर मॆ ऊपर जाता है तो मान सम्मान संपत्ति पाता है। खुद को श्रेष्ठ समझता है लेकिन जब माया अपना दूसरा रूप दिखाती है तब जातक ऋण के चक्कर मॆ फँस कर परेशान और भगोडा हो जाता है। धनी बनने पर जो लोग शक्कर मॆ चींटी कि तरह चिपकते है वही आदमी जब ऋण रूपी नमक हो जाता है तब हर आदमी उससे हाथ छुडाता है। वास्तव मॆ पृथ्वी धन और ऋण दो ध्रुवों के मध्य घूम रही है। माया बद्ध हर जीव इस चक्कर मॆ है। जातक दीवार मॆ फेंकी गई गेंद कि तरह कभी धन और कभी ऋण के चक्कर मॆ उलझता है जितनी तेजी से धनी बनता है उतना ही तेजी से ऋणी भी बनता है परमात्मा से विमुख जीव गेंद कि तरह कभी धनी होकर ऊपर जाता है कभी...
Read moreOne of the most curious temple. You will love this place. This is on the sangam of Narmada and Kaveri river. You will get freedom from all debts if you worship Rin Mukteshwar Mahadev here. Om...
Read moreThe place is very peaceful and even their are many tea stall where you can take breakfast and all, even outside the temple there is a very beautiful sitting and which also...
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