जय श्री देगराय मां जैसलमेर राजघराने की तो ये कुलदेवी हैं। ये सात बहिनें थीं। सातों ही शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। इसीलिए एक ही शिला पर सातों बहिनों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई मिलती हैं। काष्ठ फलक पर भी सातों बहिनों की आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग बहिनों की पूजा होती है। इनकी पूजा हिन्दू-मुसलमान समान रूप से करते हैं। आवड़ देवी ने सिंध के ऊमर सुमरा के राज्य का नाश किया जिसके बारे में यह मान्यता है कि इनके रूप पर मोहित होकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे अस्वीकार कर वहाँ से पलायन कर जैसलमेर के पास गिरळाओं नामक पर्वत पर तेमडा नामक हूंण राक्षस को नष्ट कर वहीं निवास किया और तेमड़ा राय के नाम से प्रसिद्धी पाई।आवड़ देवी का अन्य नाम देगराय भी है। जैसलमेर से पूर्व में पचास किलोमीटर दूर देवी कोट सेतरावा सड़क पर देगराय का बड़ा भव्य मन्दिर है । यह मन्दिर देग के आकार के पानी के विशाल झीलनुमा तालाब की पाल पर बना हुआ है। यहाँ पर आवड़ देवी कुछ समय तक बिराजी थीं। इसीलिए देगराय नाम से प्रसिद्ध हुईं बारह कोसी ओरण है। दुष्ट साबड़ बूंगा को नष्ट करने व तड़ांगिये नामक खूंखार भैंसे को मारने की कथाएँ तथा एक ग्वाले भाखलिये को बचाने की कथाएँ इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। पूराने मन्दिर का नव-निर्माण 1798 में महारावल अखेसिंह द्वारा करवाया गया। मन्दिर का प्रवेश-द्वार व अन्य कई भवन माहेश्वरी महाजनों के बनाए हुए जिसका शिलालेख तोरण द्वार के भीतरी हिस्से में लगा हुआ है। इस मन्दिर में आवड़ देवी की सातों बहिनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। सातों ही बहिनें त्रिसूल से भैंसे का सिर बेध रही हैं। बाहर झूले में स्थापित मूर्ति में सातों बहिनों के अलावा भाई महिरक्ष भी दर्शित हैं।इस मन्दिर के पुजारी पड़िहार शाखा के राजपूत हैं । महारावल मूलराज के निर्माण कार्यों का भी शिलालेख लगा हुआ है। जसोड़ भाटियों में इस मन्दिर की विशेष मान्यता है । मन्दिर से दो किलोमीटर दूर, जहाँ देवी ने साबड़ बूंगा को नष्ट किया था साबड़ामढ राय का मन्दिर बना हुआ है। वहाँ देवी इसी नाम से जानी जाती हैं। प्रताप माली अमर...
Read more🙏🙏🙏यह स्थान जैसलमेर से ५० की. मी. देवीकोट साकड़ा रोड़ पर हें ! यहाँ एक तालाब के ऊपर बड़ा रमणीक मन्दिर हें ! इस जगह मातेश्वरी ने सहपरिवार निवास किया था ! एक दिन एक असुर रूपेण भेंसे को काट कर देग मे पकाया था जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया व उस भेंसे की साब्जी को चंदले मे तबदील कर दिया व उस महाशय के भ्रम का निवारण हुवा , कुछ जानकर लोग इस दुर्घटना का जिक्र अन्य जगह का करते हें लेकिन मैया ने भेंसे का भक्षण इसी जगह किया था इसी कारण भाई को श्राप दिया था ! मैया के श्राप से भाई का पैणा सर्प ने दस लिया था ! महामाया ने अपने तपोबल से सूर्य को लोहड़ी रूपी चादर की धुंध से ढक दिया था ! मैया ने भी मर्यादा पुरषोतम श्री राम की तरह मनुष्य लीला के लोकिक कार्य इस भाती किए थे देव अगर देविक साधना से चाहते तो तुंरत जीवन दे देते , लेकिन संसारियों को भ्रम मे डालने ले लिए उपचार औषधि से जीवन दान विधि बताई ! इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे , बकरे की बलि चढाई जाने लगी ! मनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हें !!
दे पुजाई देविया , रवी खड़ो पग रोप , मार जिवाडो मेहरखो , कियो आवड़ा...
Read moreNice and peaceful,, this temple has a small lake besides it which during the winters is the hub of migratory birds. It was an accidental discovery of this place for us. .. so mesmerizing it was that we spent a good amount of time there...
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