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Deg Rai Mata Mandir — Attraction in Rajasthan

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Deg Rai Mata Mandir
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Deg Rai Mata Mandir
IndiaRajasthanDeg Rai Mata Mandir

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Deg Rai Mata Mandir

P84F+Q89, Rasla, Rajasthan 345001, India
4.7(266)
Open until 10:00 PM
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Cultural
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Reviews of Deg Rai Mata Mandir

4.7
(266)
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5.0
3y

जय श्री देगराय मां जैसलमेर राजघराने की तो ये कुलदेवी हैं। ये सात बहिनें थीं। सातों ही शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। इसीलिए एक ही शिला पर सातों बहिनों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई मिलती हैं। काष्ठ फलक पर भी सातों बहिनों की आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग बहिनों की पूजा होती है। इनकी पूजा हिन्दू-मुसलमान समान रूप से करते हैं। आवड़ देवी ने सिंध के ऊमर सुमरा के राज्य का नाश किया जिसके बारे में यह मान्यता है कि इनके रूप पर मोहित होकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे अस्वीकार कर वहाँ से पलायन कर जैसलमेर के पास गिरळाओं नामक पर्वत पर तेमडा नामक हूंण राक्षस को नष्ट कर वहीं निवास किया और तेमड़ा राय के नाम से प्रसिद्धी पाई।आवड़ देवी का अन्य नाम देगराय भी है। जैसलमेर से पूर्व में पचास किलोमीटर दूर देवी कोट सेतरावा सड़क पर देगराय का बड़ा भव्य मन्दिर है । यह मन्दिर देग के आकार के पानी के विशाल झीलनुमा तालाब की पाल पर बना हुआ है। यहाँ पर आवड़ देवी कुछ समय तक बिराजी थीं। इसीलिए देगराय नाम से प्रसिद्ध हुईं बारह कोसी ओरण है। दुष्ट साबड़ बूंगा को नष्ट करने व तड़ांगिये नामक खूंखार भैंसे को मारने की कथाएँ तथा एक ग्वाले भाखलिये को बचाने की कथाएँ इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। पूराने मन्दिर का नव-निर्माण 1798 में महारावल अखेसिंह द्वारा करवाया गया। मन्दिर का प्रवेश-द्वार व अन्य कई भवन माहेश्वरी महाजनों के बनाए हुए जिसका शिलालेख तोरण द्वार के भीतरी हिस्से में लगा हुआ है। इस मन्दिर में आवड़ देवी की सातों बहिनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। सातों ही बहिनें त्रिसूल से भैंसे का सिर बेध रही हैं। बाहर झूले में स्थापित मूर्ति में सातों बहिनों के अलावा भाई महिरक्ष भी दर्शित हैं।इस मन्दिर के पुजारी पड़िहार शाखा के राजपूत हैं । महारावल मूलराज के निर्माण कार्यों का भी शिलालेख लगा हुआ है। जसोड़ भाटियों में इस मन्दिर की विशेष मान्यता है । मन्दिर से दो किलोमीटर दूर, जहाँ देवी ने साबड़ बूंगा को नष्ट किया था साबड़ामढ राय का मन्दिर बना हुआ है। वहाँ देवी इसी नाम से जानी जाती हैं। प्रताप माली अमर...

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7y

🙏🙏🙏यह स्थान जैसलमेर से ५० की. मी. देवीकोट साकड़ा रोड़ पर हें ! यहाँ एक तालाब के ऊपर बड़ा रमणीक मन्दिर हें ! इस जगह मातेश्वरी ने सहपरिवार निवास किया था ! एक दिन एक असुर रूपेण भेंसे को काट कर देग मे पकाया था जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया व उस भेंसे की साब्जी को चंदले मे तबदील कर दिया व उस महाशय के भ्रम का निवारण हुवा , कुछ जानकर लोग इस दुर्घटना का जिक्र अन्य जगह का करते हें लेकिन मैया ने भेंसे का भक्षण इसी जगह किया था इसी कारण भाई को श्राप दिया था ! मैया के श्राप से भाई का पैणा सर्प ने दस लिया था ! महामाया ने अपने तपोबल से सूर्य को लोहड़ी रूपी चादर की धुंध से ढक दिया था ! मैया ने भी मर्यादा पुरषोतम श्री राम की तरह मनुष्य लीला के लोकिक कार्य इस भाती किए थे देव अगर देविक साधना से चाहते तो तुंरत जीवन दे देते , लेकिन संसारियों को भ्रम मे डालने ले लिए उपचार औषधि से जीवन दान विधि बताई ! इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे , बकरे की बलि चढाई जाने लगी ! मनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हें !!

दे पुजाई देविया , रवी खड़ो पग रोप , मार जिवाडो मेहरखो , कियो आवड़ा...

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3.0
5y

Nice and peaceful,, this temple has a small lake besides it which during the winters is the hub of migratory birds. It was an accidental discovery of this place for us. .. so mesmerizing it was that we spent a good amount of time there...

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Pratap PrihaarPratap Prihaar
जय श्री देगराय मां जैसलमेर राजघराने की तो ये कुलदेवी हैं। ये सात बहिनें थीं। सातों ही शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। इसीलिए एक ही शिला पर सातों बहिनों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई मिलती हैं। काष्ठ फलक पर भी सातों बहिनों की आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग बहिनों की पूजा होती है। इनकी पूजा हिन्दू-मुसलमान समान रूप से करते हैं। आवड़ देवी ने सिंध के ऊमर सुमरा के राज्य का नाश किया जिसके बारे में यह मान्यता है कि इनके रूप पर मोहित होकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे अस्वीकार कर वहाँ से पलायन कर जैसलमेर के पास गिरळाओं नामक पर्वत पर तेमडा नामक हूंण राक्षस को नष्ट कर वहीं निवास किया और तेमड़ा राय के नाम से प्रसिद्धी पाई।आवड़ देवी का अन्य नाम देगराय भी है। जैसलमेर से पूर्व में पचास किलोमीटर दूर देवी कोट सेतरावा सड़क पर देगराय का बड़ा भव्य मन्दिर है । यह मन्दिर देग के आकार के पानी के विशाल झीलनुमा तालाब की पाल पर बना हुआ है। यहाँ पर आवड़ देवी कुछ समय तक बिराजी थीं। इसीलिए देगराय नाम से प्रसिद्ध हुईं बारह कोसी ओरण है। दुष्ट साबड़ बूंगा को नष्ट करने व तड़ांगिये नामक खूंखार भैंसे को मारने की कथाएँ तथा एक ग्वाले भाखलिये को बचाने की कथाएँ इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। पूराने मन्दिर का नव-निर्माण 1798 में महारावल अखेसिंह द्वारा करवाया गया। मन्दिर का प्रवेश-द्वार व अन्य कई भवन माहेश्वरी महाजनों के बनाए हुए जिसका शिलालेख तोरण द्वार के भीतरी हिस्से में लगा हुआ है। इस मन्दिर में आवड़ देवी की सातों बहिनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। सातों ही बहिनें त्रिसूल से भैंसे का सिर बेध रही हैं। बाहर झूले में स्थापित मूर्ति में सातों बहिनों के अलावा भाई महिरक्ष भी दर्शित हैं।इस मन्दिर के पुजारी पड़िहार शाखा के राजपूत हैं । महारावल मूलराज के निर्माण कार्यों का भी शिलालेख लगा हुआ है। जसोड़ भाटियों में इस मन्दिर की विशेष मान्यता है । मन्दिर से दो किलोमीटर दूर, जहाँ देवी ने साबड़ बूंगा को नष्ट किया था साबड़ामढ राय का मन्दिर बना हुआ है। वहाँ देवी इसी नाम से जानी जाती हैं। प्रताप माली अमर सागर जैसलमेर
Dinesh KumarDinesh Kumar
यह मन्दिर जैसलमेर से पूर्व दिशा में 50 कि.मी. की दूरी पर देगराय जलाशय (देवीकोट-फलसूंड मार्ग) पर बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर बुगा सेलावत की भैंसे चरा करती थी। भैंसो के झुण्ड में एक दैत्य छिपकर रहता था। देवी स्वांगियां के आदेश से बहादरिया ने अपनी तलवार से उस भैंसे रूपी दैत्य को काट डाला। अनन्तर देवी स्वांगियां व उनकी सभी बहनों ने उस भैंसे का रक्तपान किया और भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमें भैंसे का खून गर्म कर अपनी ओढणियां रंगी। भैंसे के सिर को देग बनाने के कारण इस स्थान का नाम देगराय हुआ। मन्दिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा में सातों देवियों को त्रिशूल से भैंसे का वध करते हुए दर्शाया गया है। देगराय के देवल में रात को ठहरना मुश्किल है। यहाँ रात्रि में नगाड़ों और घुंघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है तथा कभी-कभी दीपक स्वतः ही प्रज्वलित हो जाते हैं।
ASRASR
The temple is situated in the middle of the desert, the temple has a water body right next to it... The temple has a very calm aura, and can spend hours here meditating!
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जय श्री देगराय मां जैसलमेर राजघराने की तो ये कुलदेवी हैं। ये सात बहिनें थीं। सातों ही शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। इसीलिए एक ही शिला पर सातों बहिनों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई मिलती हैं। काष्ठ फलक पर भी सातों बहिनों की आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग बहिनों की पूजा होती है। इनकी पूजा हिन्दू-मुसलमान समान रूप से करते हैं। आवड़ देवी ने सिंध के ऊमर सुमरा के राज्य का नाश किया जिसके बारे में यह मान्यता है कि इनके रूप पर मोहित होकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे अस्वीकार कर वहाँ से पलायन कर जैसलमेर के पास गिरळाओं नामक पर्वत पर तेमडा नामक हूंण राक्षस को नष्ट कर वहीं निवास किया और तेमड़ा राय के नाम से प्रसिद्धी पाई।आवड़ देवी का अन्य नाम देगराय भी है। जैसलमेर से पूर्व में पचास किलोमीटर दूर देवी कोट सेतरावा सड़क पर देगराय का बड़ा भव्य मन्दिर है । यह मन्दिर देग के आकार के पानी के विशाल झीलनुमा तालाब की पाल पर बना हुआ है। यहाँ पर आवड़ देवी कुछ समय तक बिराजी थीं। इसीलिए देगराय नाम से प्रसिद्ध हुईं बारह कोसी ओरण है। दुष्ट साबड़ बूंगा को नष्ट करने व तड़ांगिये नामक खूंखार भैंसे को मारने की कथाएँ तथा एक ग्वाले भाखलिये को बचाने की कथाएँ इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। पूराने मन्दिर का नव-निर्माण 1798 में महारावल अखेसिंह द्वारा करवाया गया। मन्दिर का प्रवेश-द्वार व अन्य कई भवन माहेश्वरी महाजनों के बनाए हुए जिसका शिलालेख तोरण द्वार के भीतरी हिस्से में लगा हुआ है। इस मन्दिर में आवड़ देवी की सातों बहिनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। सातों ही बहिनें त्रिसूल से भैंसे का सिर बेध रही हैं। बाहर झूले में स्थापित मूर्ति में सातों बहिनों के अलावा भाई महिरक्ष भी दर्शित हैं।इस मन्दिर के पुजारी पड़िहार शाखा के राजपूत हैं । महारावल मूलराज के निर्माण कार्यों का भी शिलालेख लगा हुआ है। जसोड़ भाटियों में इस मन्दिर की विशेष मान्यता है । मन्दिर से दो किलोमीटर दूर, जहाँ देवी ने साबड़ बूंगा को नष्ट किया था साबड़ामढ राय का मन्दिर बना हुआ है। वहाँ देवी इसी नाम से जानी जाती हैं। प्रताप माली अमर सागर जैसलमेर
Pratap Prihaar

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यह मन्दिर जैसलमेर से पूर्व दिशा में 50 कि.मी. की दूरी पर देगराय जलाशय (देवीकोट-फलसूंड मार्ग) पर बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर बुगा सेलावत की भैंसे चरा करती थी। भैंसो के झुण्ड में एक दैत्य छिपकर रहता था। देवी स्वांगियां के आदेश से बहादरिया ने अपनी तलवार से उस भैंसे रूपी दैत्य को काट डाला। अनन्तर देवी स्वांगियां व उनकी सभी बहनों ने उस भैंसे का रक्तपान किया और भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमें भैंसे का खून गर्म कर अपनी ओढणियां रंगी। भैंसे के सिर को देग बनाने के कारण इस स्थान का नाम देगराय हुआ। मन्दिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा में सातों देवियों को त्रिशूल से भैंसे का वध करते हुए दर्शाया गया है। देगराय के देवल में रात को ठहरना मुश्किल है। यहाँ रात्रि में नगाड़ों और घुंघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है तथा कभी-कभी दीपक स्वतः ही प्रज्वलित हो जाते हैं।
Dinesh Kumar

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ASR

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