रहस्यमयी पानी की धारा वाला नारायणी मां का मंदिरराजस्थान में अलवर जिले की राजगढ़ तहसील स्थित बरवा की डूंगरी की तलहटी स्थित नारायणी माता भारत के प्रसिद्ध लोक तीर्थों में से एक है। 11वीं सदी के दौरान प्रतिहार शैली में निर्मित इस मंदिर के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि अलवर के मौरागढ़ निवासी विजयराम के विवाह के काफी वर्षों तक संतान नहीं हुई थी तब विजयराम और उनकी पत्नी रामवती की शिव भक्ति से एक कन्या करमेती का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी विक्रमी संवत 1006 को हुआ। उन्हें ही नारायणी माता के नाम से जाना जाता है। नारायणी मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली से करवाया गया। मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति लगी हुई है। मंदिर के ठीक सामने संगमरमर का एक कुंड है। मंदिर के ठीक पीछे से एक प्राकृतिक जलधारा बहकर संगमरमर के कुंड में पहुंचती है। उस समय वहां पर राजा दुल्हेराय का शासन था और नांगल पावटा के जगीरदार ठाकुर बुधसिंह ने नारायणी माता के मंदिर की स्थापना कराई। उन्होंने पानी के कुंडों की स्थापना भी कराई। बाद मे अलवर नरेश जय सिंह ने पानी के कुंडों को बड़े आकार में परिवर्तित कर दिया और इसके बाद सेन समाज ने भी समय-समय पर कई जीर्णोद्धार कराए। मंदिर के कुंड के पानी को लोग गंगा की तरह पवित्र मानते हे। लोग इस पानी को बर्तन में भरकर अपने घर भी ले जाते हे। वे पानी के कुंड मे स्नान भी करते हैं। मान्यता है कि स्नान करने से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति भी मिल जाती है और पाप भी धुल जाते हैं। मंदिर में लोग दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं और यहां पर भजन-कीर्तन करते है। यहां प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल एकादशी को नारायणी माता का मेला लगता है। राजस्थान में अलवर से लगभग 80 किलोमीटर दूर, सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित, नारायणी माता मंदिर एक पूजनीय मंदिर है जो सैन समाज के लिए विशेष महत्व रखता है। यह अनोखा मंदिर देश में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है, जो अर्ध-शुष्क क्षेत्र के बीच बसा है और जिसमें एक छोटा सा झरना है जो ताज़े पानी का निरंतर स्रोत प्रदान करता है, जो इसके प्राकृतिक आकर्षण को और बढ़ा देता है। सफ़ेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला और जटिल डिज़ाइन इसे देखने लायक बनाते हैं। जैसे ही आप मंदिर के पास पहुँचेंगे, अरावली पहाड़ियों का शांत वातावरण आपका स्वागत करेगा, जो आध्यात्मिक चिंतन और सांस्कृतिक अन्वेषण के लिए एक मनोरम पृष्ठभूमि तैयार करता है। यह मंदिर माता नारायणी को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। मंदिर के आसपास का शांत वातावरण और हरियाली आगंतुकों को शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर एक शांतिपूर्ण विश्राम प्रदान करती है। नारायणी माता मंदिर का एक मुख्य आकर्षण पवित्र तालाब है, जहाँ आगंतुक भूमिगत स्रोतों से पानी के झरने की रहस्यमय प्राकृतिक घटना को देख सकते हैं। अलवर किले के पास जंगल के बीच स्थित इस मंदिर का प्राचीन स्वरूप इसके आकर्षण को और बढ़ा देता है, जो शांति और प्रकृति से जुड़ाव का एहसास कराता है। मंदिर के दो प्राचीन स्नान कुंड, जो क्रमशः पुरुषों और महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, भक्तों को एक शुद्धिकरण अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं। गहन आध्यात्मिक अनुभव चाहने वाले यात्रियों के लिए, नवंबर से मार्च के महीनों के दौरान नारायणी माता मंदिर की यात्रा की सलाह दी जाती है, जब मौसम सुहावना और अन्वेषण के लिए अनुकूल होता है। यह मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों का स्वागत करता है, आत्मनिरीक्षण और प्रार्थना के लिए एक शांत वातावरण प्रदान करता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मंदिर कुछ परंपराओं का पालन करता है, जिसमें बनिया जाति के व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध शामिल है, जबकि मीणा जाति के सदस्य मंदिर के रीति-रिवाजों की पवित्रता को बनाए रखते हुए पुजारी के रूप में कार्य करते हैं। चाहे आप मंदिर के धार्मिक महत्व, स्थापत्य सौंदर्य या प्राकृतिक अजूबों के लिए आकर्षित हों,नारायणी माता मंदिर उन आगंतुकों के लिए एक अनूठा और समृद्ध अनुभव प्रदान करता है जो शांति, आध्यात्मिक जुड़ाव और राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत की झलक चाहते हैं। नारायणी माता मंदिर की शाश्वत परंपराओं और शांत सौंदर्य में डूबने के लिए इस पवित्र स्थल की यात्रा की...
Read moreअलवर के मुख्य शहर से 80 किलोमीटर दूर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के ठीक बगल में स्थित नारायणी माता मंदिर एक बहुत ही पूजनीय मंदिर है। यह मंदिर सैन समाज द्वारा पूजनीय है और देश में अपनी तरह का यह एकमात्र मंदिर है। इस जगह पर एक छोटा सा झरना है जो अर्ध-शुष्क क्षेत्र को देखते हुए पानी का एक असामान्य स्रोत है। यह झरना हर साल यहाँ आने वाले कई तीर्थयात्रियों के अलावा बहुत से पर्यटकों को आकर्षित करता है।
मंदिर में जाति व्यवस्था का बहुत अधिक पालन किया जाता है। मंदिर का पुजारी मीना जाति का है और चूंकि मंदिर पूरी तरह से सैन जाति को समर्पित है, इसलिए बनिया जाति के लोगों को परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
कथा:-मौरागढ़ (अलवर) निवासी विजयराम नाई के विवाह के काफी वर्षों तक संतान नहीं हुई थी ! विजयराम और उनकी पत्नी रामवती की शिव भक्ति से एक कन्या करमेती का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी विक्रमी संवत् 1006 को हुआ ! जिसे हम नारायणी माता के नाम से जानते हैं !
युवावस्था में नारायणी माता का विवाह राजोरगढ़ (टहला, अलवर) के गणेश पुत्र कर्णेश से हुआ था ! विदाई के बाद नारायणी माता अपने पीहर से ससुराल जा रही थी ! आवागमन के कोई उपयुक्त साधन नही होने के कारण दोनो ने पैदल ही सफर करना शुरू कर दिया ! गर्मियों के दिन थे और धूप भी इतनी तेज थी की ओर पैदल चलना मुश्किल था ! तो नारायणी माता और उनके पति ने धूप में आराम करके जब दिन थोड़ा ठंडा हो जाएगा ! तब आगे का रास्ता तय करने की सोची और तब उनको एक बड़ा बरगद का पेड़ दिखाई दिया ! जिसकी गहरी छाया में उन्होंने आराम करने का मन बना लिया और बरगद के नीचे जाकर दोनो सो गए ! पैदल चलकर रास्ता तय करने की वजह से दोनो पूरी तरह थक चुके थे सोते ही दोनों को गहरी नींद आह गई ! नींद आने के बाद पता ही नही चला की उनके पति को एक साप ने डस लिया था ! जिससे उनके पति की मृत्यु हो गई जब सूर्य अस्त होने लगा तो नारायणी माता की नींद जगी ! तो उन्होंने उठकर अपनी पति देव को आवाज लगाई पर कोई जवाब नही मिला तो ! नारायणीमाता उनके समीप जाकर उठाने की कोशिश की कहा कि रात्री होने वाली है !
घर नहीं चलना है क्या, लेकिन उनकी तो मृत्यु हो चुकी थी तभी साम के समय को मीणा जाति के लोग अपने अपने घरों के जानवरों को लेकर अपने घर जा रहे थे ! वह नारायणी ने उन मीणा जाति के युवकों से कहा कि मेरा पति मर चुका है और ! आप चिता के लिए जंगल से लकड़ी इकट्ठी कर दें ! यह सुनकर उन युवकों ने जंगल से लकड़ी इकट्ठी कर चिता की तैयारी कर दी ! तो बाद में नारायणी माता ने अपने पति के शव को गोद में रखकर सती हो गई ! तब उसी समय भविष्यवाणी (आकाशवाणी) हुई और कहा कि हे ग्वालों ! तुमने मेरी सहायता की है इस उपकार के बदले तुम्हें क्या चाहिए ! तो ग्वालों ने कहा कि माताजी इस जंगल में पानी की कमी है ! तब माताजी ने कहा कि कोई भी ग्वाला एक लकड़ी लेकर इस स्थान से भागे और पीछे मुड़ कर मत देखना ! जहाँ तक वह भागते हुए जायेगा उस स्थान तक जलधारा पहुँच जाएगी ! लेकिन वह ग्वाला केवल 3 किलोमीटर तक ही दौड़ सका ! इतना दौड़ने के बाद उसका मन रहा नहीं और उसने पीछे देख लिया तो ! वह जल की धारा वहीं पर रूक गई ! वर्तमान अब भी उस बरगद के पेड़ के नीचे जहाँ पर नारायणी माता के पति को सर्प ने काटा था उसी स्थान पर माताजी का भव्य मंदिर बना हुआ है ! और वहीं से एक जलधारा अनवरत रूप से निकल रही है और वह केवल 3 किलोमीटर तक ही बहती है ! मंदिर और वो जगह बहुत ही मनमोहक है !
जहाँ पर नारायणी माता सती हुई थी वहाँ पर ही मन्दिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली से करवाया गया ! मंदिर के कक्ष के गर्भगृह में माता की मूर्ति लगी हुई है ! और मंदिर के ठीक सामने संगमरमर का एक कुण्ड है ! जो मंदिर के ठीक पीछे से एक प्राकृतिक जलधारा बहकर संगमरमर के कुण्ड में पहुँचती है ! यहाँ प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल एकादशी को नारायणी माता का मेला लगता है ! यद्यपि नारायणी माता का मंदिर सभी वर्गों के लिए और सम्प्रदायों के लिए श्रद्धा का स्थल है ! फिर भी नाई जाति के लोग इसे अपनी कुल...
Read moreThe temple is located at Rundh and known as Rundh Narayani in Rajasthan. It took 2.5 hrs from alwar. The place is damn beautiful and strong belief in Narayani mata for Sain samaj people. There is an ancient story behind this. Bharthari temple is also on the way to Narayani mata mandir.
There is an arrangement of stay with very basic facility. People do bhandara there have place for kitchen and provide the big utensils for cooking.
Lot of offering goes to the temple everyday. But it goes to the pocket of locals there. This temple is out of bounds from government reach. So the temple doesn't have much development. If there would have a scope of trust or interfere of government to the temple, then the temple can have lot of facility and development for people. The pond is not in good condition, it must be repaired soon so any mishapping can be precured. If you travel the temple in rainy season, it will add cream to the milk.
Note: the temple is closed on ekadshai and Tuesday. So plan accordingly.
PS : the place gives peace to mind and...
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