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Rishikesh Temple — Attraction in Rajasthan

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Rishikesh Temple
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Rishikesh Temple
IndiaRajasthanRishikesh Temple

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Rishikesh Temple

GQHF+3HC, Hrishikesh Rd, Umarni, Block No.1, Rajasthan 307501, India
4.7(107)
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Ratan RajpurohitRatan Rajpurohit
ऋषिकेश मंदिर - आबूरोड चंद्रावती महानगरी आबूरोड चन्द्रावती महानगरी की स्थापना ईसा की चौथी सदी में आबू के प्रमार राजाओ द्वारा हुई, जो राज्यपाल पांडू मौर्य के वंशज थे जिसने ईसा से पूर्व 100 में दक्षिण पश्चिम राजस्थान में राज किया एंव अचलगढ़ के किले का निर्माण करवाया व आरासना अम्बाजी मंदिर की स्थापना की। यह महानगरी चन्द्रावती, आबूपर्वत की तलहटी में थी एंव इसमें 999 अति सुन्दर कलाकर्ति पूर्ण सफेद आरस पत्थर के मंदिर बने हुए थे। चन्द्रावती महानगरी की यह परम्परा रही हैं की, जब कभी कोई नया निवासी उस नगर में आता तो राजा से अनुमति मिलते ही सभी नगरवासी उस व्यक्ति को प्रत्येक घर से एक-एक ईट भेंट करते, जिसके फलस्वरूप उसका सम्पूर्ण मकान इत्यादि बनकर तैयार हो जाता था। ईसा की चौथी सदी से लेकर 1307 ई. सन् तक चन्द्रावती महानगरी पर परमारों का शासन रहा एंव उस समय 1025 ई. सन् में मोहम्मद गजनवी का आक्रमण आया जिसने अचलगढ़ के प्राचीन महामंदिर के प्रागण के ईक्कीस छोटे मंदिर तोड़े एंव सभा मडप को क्षति पहुचने की कोशिश ही की; परन्तु अचलेश्वर महादेव के निज मंदिर में आक्रमणकर्ता की प्रवेश करने की हिम्मत नही हुई। इस आक्रमणकर्ता का चन्द्रावती महानगरी पर आक्रमण का कोई सबुत नही मिलता। सम्भवत: उसे सोमनाथ पहुँचने एंव लुटने की जल्दी थी क्योंकि उस समय गुजरात का सम्राट भीमदेव सोलंकी मालवा के रणक्षेत्र में राजा भोज से युद्ध कर रहा था और गुजरात में उपस्थित नही था। 1307 ई. सन् में परमार वंश के कमजोर शासक - राजा दलपत परमार आबू पर्वत एंव चन्द्रावती महानगरी की गद्दी पर आये एंव सिरोही के महाराव विजयराजजी ने उस पर आक्रमण करके चन्द्रावती महानगरी पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, उसके साथ-साथ महाराव विजयराजजी ने पुन: अपना राज्यभिषेक पाठ नारायण में करवाया –“पाठ नारायण में पाठ बिराजिया” । 1311 ई. सन् में महाराव विजयराजजी ने राजा दलपत परमार से अचलगढ़ का किला व आबू पर्वत भी जीत लिया एंव तब से परमार शासन इस क्षेत्र से समाप्त हो गये। महाराव विजयराजजी की मृत्यु 1311 ई. सन् में हुई एंव उसके बाद उनके पुत्र महाराव लुम्भा गद्दी पर आये, जिन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से अचलगढ़ मंदिर के चारो ओर परकोटा बनवाया, जो आज भी विद्यमान हैं। 1321 ई. सन् में महाराव लुम्भा की मृत्यु होने से उनके छोटे भाई तेजसिंहजी गद्दी पर आये, जिन्होंने अचलगढ़ मंदिर के पीछे तेजल वाव का निर्माण – पाषण से करवाया। 1336 ई. सन् में महाराव तेजसिंहजी के मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव कान्हड देवजी गद्दी पर आये, उसी वर्ष भारी बारिस होने से भू-स्खलन हुआ, जिसके फलस्वरूप गुरु वशिष्ठ के हाथ का बना वशिष्ठ आश्रम पूर्णतया नष्ट हो गया। तब महाराव कान्हड़ देवजी ने सम्पूर्ण मंदिर, बाग, प्रागण इत्यादी का पुन: निर्माण करवाया एंव मुख्य मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण एंव गुरु वशिष्ठ व उनकी पत्नी अरुण धति की मुर्तियां स्थापित करवाई। उस मंदिर के समक्ष भगवान इंद्र इत्यादि के मंदिर स्थापित हुए एंव उनके निकट गुरु वशिष्ठ के ईष्ट देव भगवान शंकर का मंदिर भी स्थापित किया। सम्पूर्ण वशिष्ठ आश्रम में सुन्दर प्रांगण, परकोटा एंव निवास स्थान बनवाया एंव मंदिर की पूजा सुचारू रूप से चलती रहे, उस दृष्टि से ग्राम विरवाडा एंव चार-पांच अन्य ग्राम भेंट किये, जिसकी आमदनी से वशिष्ठ आश्रम का खर्चा सुचारू रूप से चल सके। 1343 ई. सन् में महाराव कान्हड़ देव की मृत्यु होने से उनके पुत्र महाराव सामन्त सिंह सिरोही एंव आबूपर्वत की गद्दी पर आये, जिनकी मूर्ति अचलेश्वर महादेव मंदिर के प्रागण में नीलकण्ड महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित हैं। 1348 ई. सन् में महाराव सलखाजी गद्दी पर आये, जिन्होंने 1374 ई. सन् तक राज किया एंव प्रत्येक मुसलमान आक्रमण को विफल किया। 1374 ई. सन् महाराव रणमल गद्दी पर आये एंव वे भी महान योद्धा होने के कारण कोई भी मुसलमान आक्रमण उनके समय में सफल नही हुआ। 1392 ई. सन् में महाराव रणमल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव शिवभाण गद्दी पर आये। 1395 ई. सन् में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने एक विशाल सेना लेकर चंद्रावती महानगरी पर आक्रमण किया एंव उसके 999 मंदिरों को हिलाकर रख दिए, ताकि डर के मारे कोई भी व्यक्ति उनमे प्रवेश ना कर सके एंव ना पूजा कर सके, जिसके फलस्वरूप वे सभी मूर्तियाँ अपूज्य एंव खंडित हो गई। महाराव शिवभाण ने तदुपरांत अपनी राजधानी ऋषिकेश की घाटियों में ले गये, परन्तु गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने वहां जाकर भी आक्रमण किया, जिसके फलस्वरूप ऋषिकेश मंदिर का सभा मंडप, जो राजा अमरीश के हाथ का बना हुआ था, को तोड़ दिया एंव साथ-साथ में छोटे मंदिर जो उस प्रागण में बने हुए थे, उनको भी खंडित कर दिया एंव अधिकांश छोटे मंदिरों के शिखर तोड़ दिए। परन्तु भगवान ऋषिकेश एंव करणीकेश्वर महादेव की ऐसी कृपा रही की इन दोनों मंदिरों को
MD ARMAN ANSARIMD ARMAN ANSARI
The Rishikesh Temple is an ancient temple, which is situated on a hill crescent. The temple was built about 7,000 years ago by King Amrish, who established the Amravati civilization in Mount Abu. The temple is named after King Amrish's 'Ishta Devta,' Lord Rishikesh.
Hemant PandyaHemant Pandya
Very Anciant Temple Of Krishna Nearing around 8000 years Old and Real Treasure Of Hindu Sanatan Culture , This Temple Needs Lots of Restoration and Revamping and Our Visits can Only Generate Revenue for Our Cultural Heritage to Preserve .
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ऋषिकेश मंदिर - आबूरोड चंद्रावती महानगरी आबूरोड चन्द्रावती महानगरी की स्थापना ईसा की चौथी सदी में आबू के प्रमार राजाओ द्वारा हुई, जो राज्यपाल पांडू मौर्य के वंशज थे जिसने ईसा से पूर्व 100 में दक्षिण पश्चिम राजस्थान में राज किया एंव अचलगढ़ के किले का निर्माण करवाया व आरासना अम्बाजी मंदिर की स्थापना की। यह महानगरी चन्द्रावती, आबूपर्वत की तलहटी में थी एंव इसमें 999 अति सुन्दर कलाकर्ति पूर्ण सफेद आरस पत्थर के मंदिर बने हुए थे। चन्द्रावती महानगरी की यह परम्परा रही हैं की, जब कभी कोई नया निवासी उस नगर में आता तो राजा से अनुमति मिलते ही सभी नगरवासी उस व्यक्ति को प्रत्येक घर से एक-एक ईट भेंट करते, जिसके फलस्वरूप उसका सम्पूर्ण मकान इत्यादि बनकर तैयार हो जाता था। ईसा की चौथी सदी से लेकर 1307 ई. सन् तक चन्द्रावती महानगरी पर परमारों का शासन रहा एंव उस समय 1025 ई. सन् में मोहम्मद गजनवी का आक्रमण आया जिसने अचलगढ़ के प्राचीन महामंदिर के प्रागण के ईक्कीस छोटे मंदिर तोड़े एंव सभा मडप को क्षति पहुचने की कोशिश ही की; परन्तु अचलेश्वर महादेव के निज मंदिर में आक्रमणकर्ता की प्रवेश करने की हिम्मत नही हुई। इस आक्रमणकर्ता का चन्द्रावती महानगरी पर आक्रमण का कोई सबुत नही मिलता। सम्भवत: उसे सोमनाथ पहुँचने एंव लुटने की जल्दी थी क्योंकि उस समय गुजरात का सम्राट भीमदेव सोलंकी मालवा के रणक्षेत्र में राजा भोज से युद्ध कर रहा था और गुजरात में उपस्थित नही था। 1307 ई. सन् में परमार वंश के कमजोर शासक - राजा दलपत परमार आबू पर्वत एंव चन्द्रावती महानगरी की गद्दी पर आये एंव सिरोही के महाराव विजयराजजी ने उस पर आक्रमण करके चन्द्रावती महानगरी पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, उसके साथ-साथ महाराव विजयराजजी ने पुन: अपना राज्यभिषेक पाठ नारायण में करवाया –“पाठ नारायण में पाठ बिराजिया” । 1311 ई. सन् में महाराव विजयराजजी ने राजा दलपत परमार से अचलगढ़ का किला व आबू पर्वत भी जीत लिया एंव तब से परमार शासन इस क्षेत्र से समाप्त हो गये। महाराव विजयराजजी की मृत्यु 1311 ई. सन् में हुई एंव उसके बाद उनके पुत्र महाराव लुम्भा गद्दी पर आये, जिन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से अचलगढ़ मंदिर के चारो ओर परकोटा बनवाया, जो आज भी विद्यमान हैं। 1321 ई. सन् में महाराव लुम्भा की मृत्यु होने से उनके छोटे भाई तेजसिंहजी गद्दी पर आये, जिन्होंने अचलगढ़ मंदिर के पीछे तेजल वाव का निर्माण – पाषण से करवाया। 1336 ई. सन् में महाराव तेजसिंहजी के मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव कान्हड देवजी गद्दी पर आये, उसी वर्ष भारी बारिस होने से भू-स्खलन हुआ, जिसके फलस्वरूप गुरु वशिष्ठ के हाथ का बना वशिष्ठ आश्रम पूर्णतया नष्ट हो गया। तब महाराव कान्हड़ देवजी ने सम्पूर्ण मंदिर, बाग, प्रागण इत्यादी का पुन: निर्माण करवाया एंव मुख्य मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण एंव गुरु वशिष्ठ व उनकी पत्नी अरुण धति की मुर्तियां स्थापित करवाई। उस मंदिर के समक्ष भगवान इंद्र इत्यादि के मंदिर स्थापित हुए एंव उनके निकट गुरु वशिष्ठ के ईष्ट देव भगवान शंकर का मंदिर भी स्थापित किया। सम्पूर्ण वशिष्ठ आश्रम में सुन्दर प्रांगण, परकोटा एंव निवास स्थान बनवाया एंव मंदिर की पूजा सुचारू रूप से चलती रहे, उस दृष्टि से ग्राम विरवाडा एंव चार-पांच अन्य ग्राम भेंट किये, जिसकी आमदनी से वशिष्ठ आश्रम का खर्चा सुचारू रूप से चल सके। 1343 ई. सन् में महाराव कान्हड़ देव की मृत्यु होने से उनके पुत्र महाराव सामन्त सिंह सिरोही एंव आबूपर्वत की गद्दी पर आये, जिनकी मूर्ति अचलेश्वर महादेव मंदिर के प्रागण में नीलकण्ड महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित हैं। 1348 ई. सन् में महाराव सलखाजी गद्दी पर आये, जिन्होंने 1374 ई. सन् तक राज किया एंव प्रत्येक मुसलमान आक्रमण को विफल किया। 1374 ई. सन् महाराव रणमल गद्दी पर आये एंव वे भी महान योद्धा होने के कारण कोई भी मुसलमान आक्रमण उनके समय में सफल नही हुआ। 1392 ई. सन् में महाराव रणमल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव शिवभाण गद्दी पर आये। 1395 ई. सन् में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने एक विशाल सेना लेकर चंद्रावती महानगरी पर आक्रमण किया एंव उसके 999 मंदिरों को हिलाकर रख दिए, ताकि डर के मारे कोई भी व्यक्ति उनमे प्रवेश ना कर सके एंव ना पूजा कर सके, जिसके फलस्वरूप वे सभी मूर्तियाँ अपूज्य एंव खंडित हो गई। महाराव शिवभाण ने तदुपरांत अपनी राजधानी ऋषिकेश की घाटियों में ले गये, परन्तु गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने वहां जाकर भी आक्रमण किया, जिसके फलस्वरूप ऋषिकेश मंदिर का सभा मंडप, जो राजा अमरीश के हाथ का बना हुआ था, को तोड़ दिया एंव साथ-साथ में छोटे मंदिर जो उस प्रागण में बने हुए थे, उनको भी खंडित कर दिया एंव अधिकांश छोटे मंदिरों के शिखर तोड़ दिए। परन्तु भगवान ऋषिकेश एंव करणीकेश्वर महादेव की ऐसी कृपा रही की इन दोनों मंदिरों को
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The Rishikesh Temple is an ancient temple, which is situated on a hill crescent. The temple was built about 7,000 years ago by King Amrish, who established the Amravati civilization in Mount Abu. The temple is named after King Amrish's 'Ishta Devta,' Lord Rishikesh.
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Reviews of Rishikesh Temple

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The Rishikesh Temple, located near Abu Road in Rajasthan's Sirohi district, is an ancient Hindu shrine believed to be between 7,000 to 8,000 years old. Situated amidst the dense Aravalli forests, this temple is a testament to India's rich cultural and religious heritage.

Historical Significance: According to legend, the temple was established by King Amrish of the ancient Amravati civilization. The king, a devout follower of Lord Rishikesh (a form of Lord Vishnu), is said to have performed sixty-seven Ashwamedha Yagnas (horse sacrifices) here. These rituals were so grand that they purportedly threatened Lord Indra, the king of gods. The remnants of the Yagna Kund (sacrificial fire pit) are still present at the site, attracting devotees and history enthusiasts alike.

Architectural Features: The temple is constructed from white marble and showcases exquisite sculptures and carvings on its walls, reflecting the architectural brilliance of ancient India. Adjacent to the Rishikesh Temple stands the Karnikeshwar Mahadev Temple, dedicated to Lord Shiva, built from grey marble, further enhancing the site's spiritual ambiance.

Location and Accessibility: The Rishikesh Temple is situated approximately 15 minutes from the Abu Road railway station, making it easily accessible for visitors. Local tour operators offer cab and jeep services for a day's trip to the temple and nearby attractions.

Nearby Attractions: In addition to the Karnikeshwar Mahadev Temple, visitors can explore other religious sites in the vicinity, such as the Bhadrakali Temple and the famous Ambaji Temple. The hill station of Mount Abu, known for its scenic beauty and the Dilwara Jain Temples, is also a short drive away, offering a comprehensive spiritual and cultural experience.

Visitor Information: The temple is open to visitors throughout the year. Its serene environment, coupled with its historical and religious significance, makes it a must-visit destination for devotees and tourists interested in India's...

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ऋषिकेश मंदिर - आबूरोड

चंद्रावती महानगरी आबूरोड

चन्द्रावती महानगरी की स्थापना ईसा की चौथी सदी में आबू के प्रमार राजाओ द्वारा हुई, जो राज्यपाल पांडू मौर्य के वंशज थे जिसने ईसा से पूर्व 100 में दक्षिण पश्चिम राजस्थान में राज किया एंव अचलगढ़ के किले का निर्माण करवाया व आरासना अम्बाजी मंदिर की स्थापना की।

यह महानगरी चन्द्रावती, आबूपर्वत की तलहटी में थी एंव इसमें 999 अति सुन्दर कलाकर्ति पूर्ण सफेद आरस पत्थर के मंदिर बने हुए थे। चन्द्रावती महानगरी की यह परम्परा रही हैं की, जब कभी कोई नया निवासी उस नगर में आता तो राजा से अनुमति मिलते ही सभी नगरवासी उस व्यक्ति को प्रत्येक घर से एक-एक ईट भेंट करते, जिसके फलस्वरूप उसका सम्पूर्ण मकान इत्यादि बनकर तैयार हो जाता था।

ईसा की चौथी सदी से लेकर 1307 ई. सन् तक चन्द्रावती महानगरी पर परमारों का शासन रहा एंव उस समय 1025 ई. सन् में मोहम्मद गजनवी का आक्रमण आया जिसने अचलगढ़ के प्राचीन महामंदिर के प्रागण के ईक्कीस छोटे मंदिर तोड़े एंव सभा मडप को क्षति पहुचने की कोशिश ही की; परन्तु अचलेश्वर महादेव के निज मंदिर में आक्रमणकर्ता की प्रवेश करने की हिम्मत नही हुई।

इस आक्रमणकर्ता का चन्द्रावती महानगरी पर आक्रमण का कोई सबुत नही मिलता। सम्भवत: उसे सोमनाथ पहुँचने एंव लुटने की जल्दी थी क्योंकि उस समय गुजरात का सम्राट भीमदेव सोलंकी मालवा के रणक्षेत्र में राजा भोज से युद्ध कर रहा था और गुजरात में उपस्थित नही था।

1307 ई. सन् में परमार वंश के कमजोर शासक - राजा दलपत परमार आबू पर्वत एंव चन्द्रावती महानगरी की गद्दी पर आये एंव सिरोही के महाराव विजयराजजी ने उस पर आक्रमण करके चन्द्रावती महानगरी पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, उसके साथ-साथ महाराव विजयराजजी ने पुन: अपना राज्यभिषेक पाठ नारायण में करवाया –“पाठ नारायण में पाठ बिराजिया” ।

1311 ई. सन् में महाराव विजयराजजी ने राजा दलपत परमार से अचलगढ़ का किला व आबू पर्वत भी जीत लिया एंव तब से परमार शासन इस क्षेत्र से समाप्त हो गये।

महाराव विजयराजजी की मृत्यु 1311 ई. सन् में हुई एंव उसके बाद उनके पुत्र महाराव लुम्भा गद्दी पर आये, जिन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से अचलगढ़ मंदिर के चारो ओर परकोटा बनवाया, जो आज भी विद्यमान हैं।

1321 ई. सन् में महाराव लुम्भा की मृत्यु होने से उनके छोटे भाई तेजसिंहजी गद्दी पर आये, जिन्होंने अचलगढ़ मंदिर के पीछे तेजल वाव का निर्माण – पाषण से करवाया।

1336 ई. सन् में महाराव तेजसिंहजी के मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव कान्हड देवजी गद्दी पर आये, उसी वर्ष भारी बारिस होने से भू-स्खलन हुआ, जिसके फलस्वरूप गुरु वशिष्ठ के हाथ का बना वशिष्ठ आश्रम पूर्णतया नष्ट हो गया।

तब महाराव कान्हड़ देवजी ने सम्पूर्ण मंदिर, बाग, प्रागण इत्यादी का पुन: निर्माण करवाया एंव मुख्य मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण एंव गुरु वशिष्ठ व उनकी पत्नी अरुण धति की मुर्तियां स्थापित करवाई।

उस मंदिर के समक्ष भगवान इंद्र इत्यादि के मंदिर स्थापित हुए एंव उनके निकट गुरु वशिष्ठ के ईष्ट देव भगवान शंकर का मंदिर भी स्थापित किया।

सम्पूर्ण वशिष्ठ आश्रम में सुन्दर प्रांगण, परकोटा एंव निवास स्थान बनवाया एंव मंदिर की पूजा सुचारू रूप से चलती रहे, उस दृष्टि से ग्राम विरवाडा एंव चार-पांच अन्य ग्राम भेंट किये, जिसकी आमदनी से वशिष्ठ आश्रम का खर्चा सुचारू रूप से चल सके।

1343 ई. सन् में महाराव कान्हड़ देव की मृत्यु होने से उनके पुत्र महाराव सामन्त सिंह सिरोही एंव आबूपर्वत की गद्दी पर आये, जिनकी मूर्ति अचलेश्वर महादेव मंदिर के प्रागण में नीलकण्ड महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित हैं।

1348 ई. सन् में महाराव सलखाजी गद्दी पर आये, जिन्होंने 1374 ई. सन् तक राज किया एंव प्रत्येक मुसलमान आक्रमण को विफल किया।

1374 ई. सन् महाराव रणमल गद्दी पर आये एंव वे भी महान योद्धा होने के कारण कोई भी मुसलमान आक्रमण उनके समय में सफल नही हुआ।

1392 ई. सन् में महाराव रणमल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराव शिवभाण गद्दी पर आये।

1395 ई. सन् में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने एक विशाल सेना लेकर चंद्रावती महानगरी पर आक्रमण किया एंव उसके 999 मंदिरों को हिलाकर रख दिए, ताकि डर के मारे कोई भी व्यक्ति उनमे प्रवेश ना कर सके एंव ना पूजा कर सके, जिसके फलस्वरूप वे सभी मूर्तियाँ अपूज्य एंव खंडित हो गई।

महाराव शिवभाण ने तदुपरांत अपनी राजधानी ऋषिकेश की घाटियों में ले गये, परन्तु गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने वहां जाकर भी आक्रमण किया, जिसके फलस्वरूप ऋषिकेश मंदिर का सभा मंडप, जो राजा अमरीश के हाथ का बना हुआ था, को तोड़ दिया एंव साथ-साथ में छोटे मंदिर जो उस प्रागण में बने हुए थे, उनको भी खंडित कर दिया एंव अधिकांश छोटे मंदिरों के शिखर तोड़ दिए।

परन्तु भगवान ऋषिकेश एंव करणीकेश्वर महादेव की ऐसी कृपा रही की इन...

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Mount Abu is considered to be the city of temples with many religious spots dotted across the hill station. Religious tourism is kind of famous among the tourists visiting the place. Many of these temples were being built ages ago and have legends surrounding them.

One of the popular temples among the devotees is the Rishikesh Temple. It is believed to be almost 7000 - 8000 years old and is situated in the hill among the dense green Aravali forest. Pauranic King Amrish, is believed to be the creator of this temple as a memory to the Amravati civilization. This temple is a white marble structure with exquisite sculptures displayed on the walls. Legends say that this king performed sixty seven “Ashwamedha Yagnas”, which in turn threatened Lord Indra. The wrath of Lord Indra had actually fallen on this part of the world, which in turn made this land so sacred. King Amrish’s “Ishthadev” or presiding God was Lord Rishikesh, who in turn saved him.

The Yagna Kund is present till today and visited by tourists. Just besides the Rishikesh Temple stands the pauranic temple of Karnikeshwar Mahadev, built in grey marble. Cabs and Jeeps are available from the local tour operators for a day’s trip to this place along with the nearby...

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