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Shree Bhanwal Mata Mandir — Attraction in Rajasthan

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Shree Bhanwal Mata Mandir
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Shree Bhanwal Mata Mandir
IndiaRajasthanShree Bhanwal Mata Mandir

Basic Info

Shree Bhanwal Mata Mandir

Bhanwal Mata Rd, Merta, Rajasthan 341518, India
4.7(671)
Open 24 hours
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Cultural
Family friendly
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Reviews of Shree Bhanwal Mata Mandir

4.7
(671)
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5.0
6y

Shri Bhanwal Mata Mandir is a fascinating temple located in Merta City, Rajasthan. The temple is dedicated to Bhuwal Mata, a revered goddess in the region. What's interesting about this temple is its unique history - it's said to have been built by dacoits, not by any king or lord.¹ The temple is also known for its beautiful architecture and stunning images of Bhuwal Mata, which can be downloaded as wallpapers for your desktop or mobile device.²

The temple is situated about 20-22 kilometers south of Merta City in Nagaur district, and it's a popular destination for devotees and tourists alike.³ The temple complex is home to not one, but three goddesses - Rudrani Mata, Bhramani Mata, and Bhanwal Mata. Each of these goddesses has its own unique characteristics and is worshipped by devotees for different reasons.⁴

If you're planning to visit Shri Bhanwal Mata Mandir, you can expect a serene and peaceful atmosphere, surrounded by beautiful sculptures and stunning images of the goddesses. The temple is a must-visit destination for anyone interested in history, culture, and...

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5.0
7y

Goddess Bhuwal Mata known as the Dai Pyala God (2.5 Glass of Liquor ). This place is known to be developed by the Dacoits as Bhuwal Mata helped the Dacoits by converting them into sheep herd when they were surrounded by the soldiers of Kings Army.

Once the soldiers left the place, the Dacoits were back to their normal form & they thought of offering something to the goddess, but they didn't have to offer. One of the member said that anything can be offered to God with kind heart & as they had a liquor bottle with them, they poured it in a bowl & offered it. Goddess drank the first bowl, followed by the second & in the third bowl, she drank half of the offering.

The Dacoits were shocked to find this & they worshiped her from then on words & they left the wrong...

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5.0
1y

नागौर जिले के जसनगर गाँव के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। क्या है मान्यता इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं किसी राजा या पुजारी ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।

ब्रह्माणी और काली माता की दो प्रतिमाएं हैं विराजित मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा...

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Kalu SuvasiyaKalu Suvasiya
नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। क्या है मान्यता इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं किसी राजा या पुजारी ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। ब्रह्माणी और काली माता की दो प्रतिमाएं हैं विराजित मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
Jayant SinghJayant Singh
Jai mata di नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं। तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
Unfavourable BoyUnfavourable Boy
भंवाल माता के मंदिर की खासियत अन्य मंदिरों और शक्तिपीठों में सबसे अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। आज से देश भर में शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई है। पर क्या आप ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं जिसकी खासियत अन्य मंदिरों और शक्तिपीठों में सबसे अलग है? नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं। मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
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नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। क्या है मान्यता इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं किसी राजा या पुजारी ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। ब्रह्माणी और काली माता की दो प्रतिमाएं हैं विराजित मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
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Jai mata di नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं। तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
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भंवाल माता के मंदिर की खासियत अन्य मंदिरों और शक्तिपीठों में सबसे अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। आज से देश भर में शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई है। पर क्या आप ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं जिसकी खासियत अन्य मंदिरों और शक्तिपीठों में सबसे अलग है? नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है। कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है। मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं। मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।
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