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Shri Sawaibhoj Temple Asind — Attraction in Rajasthan

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Shri Sawaibhoj Temple Asind
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Shri Sawaibhoj Temple Asind
IndiaRajasthanShri Sawaibhoj Temple Asind

Basic Info

Shri Sawaibhoj Temple Asind

Asind, Chunginaka, Rajasthan 311301, India
4.4(753)
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Cultural
Relaxation
Scenic
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Suresh ChaudharySuresh Chaudhary
राजाभोज, बगड़ावत गुर्जर राजवंश के सबसे प्रतापी वीर राजा थे ।[1] यह विष्णु के अवतार भगवान देवनारायण जी के पिताजी ही थे । बगड़ावत भाई अजमेर के चौहान राजवंश के ही राजकुमार थे। सवाई भोज के 24 भाई अलग-अलग रियासतों पर राज कर रहे थे पाटन पर तेजारावत राज्य कर रहे थे नेगड़िया पर बगड़ावत वीर नेवाजी रावत राज्य कर रहे थे 320 गढ़ की रियासत सवाई भोज के पास थी। आसींद पर आशा जी बगड़ावत राज्य कर रहे थे और बदनोर पर इनके पिता बाघ रावत चौहान जी राज्य कर रहे थे ।महाराज सवाई भोज को भगवान शिव जी द्वारा राजगद्दी प्राप्त हुई थी इनके गुरुजी का नाम बाबा रूपनाथ जी थ राजा बागरावत चौहान के पुत्र होने के कारण यह इतिहास में बगड़ावत नाम से प्रसिद्ध हुए बगड़ावत 24 भाई थे इनकी की राजधानी अजमेर के निकट बदनोर गोठा थी सवाई भोज महाराज ने कहीं बावड़ीया और मंदिर बनाए थे इनका विवाह उज्जैन के राजा दुदा जी खटाना की पुत्री साडू खटानी से हुआ था उनके पास भगवान इंद्र देव की घोड़ी बावली भगवान शिव द्वारा दी गई थी इनके पास धन खजाने की कोई कमी नहीं थी बगड़ावतों ने अनेक गरीब लोगों को गरीब से धनवान बनाया था इनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी बगड़ावत भाइयों का यश पूरे मारवाड़ मालवा और उत्तर प्रदेश तक फेल गया था उस बगड़ावत काल में किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर नजर उठाकर भी ना देखा क्षत्रिय वंश में जन्म में श्री सवाई भोज महाराज बड़े ही वीर और बलवान राजा थे पुष्कर इन का तीर्थ स्थल माना जाता था जहां बगड़ावत वीरों ने शिव मंदिर की स्थापना की थी 24 भाई बगडावत बगड़ावत भारत नामक युद्ध में अपने वचन रखते हुए मां चामुंडा को अपना सिर दान में देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे उसके बाद ही भगवान श्री देवनारायण जी का मालासेरी डूंगरी पर अवतार हुआ था और जितने भी बगड़ावतों की दुश्मन और बेरी थे उन सब राजाओं और सामंतों से भगवान श्री देवनारायण जी ने बगड़ावतों का बेर लिया था और अपना यश पूरे भारत में फैलाया महाराज सवाई भोज की याद में आसींद नगरी में भव्य मंदिर भी बना हुआ है पुष्कर में भी इनका मंदिर स्थापित है । बिलाड़ा का शिव मंदिर का निर्माण भी महाराज सवाई भोज जी ने करवाया था । <तारागढ़ को बैठणो , चक्के राज चौहान बेटा कहिजे बाघ का नाम सवाई भोज चौहान>राणी जयमती (जैमति) को लेकर राण के राजा दुर्जनसाल से बगड़ावतों का युद्ध हुआ। युद्ध से पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे धर्म के भाई थे। ये युद्ध खारी नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना वचन रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में दिये थे। बगड़ावतों के वीरगति प्राप्त होने के बाद देवनारायण का अवतार हुआ तथा उन्होंने राजा दुर्जनसाल का वध किया।देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
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🚩🚩🚩🚩🚩 जय श्री देव🚩🚩🚩🚩🚩 The Shri Swaibhoj Temple in Asind is a remarkable site that embodies the rich cultural tapestry and spiritual heritage of Rajasthan. Nestled amidst the serene landscapes of the Aravalli Range, this temple is not just a place of worship but a beacon of history and architecture. Visitors are often captivated by the intricate carvings and the peaceful ambiance that pervades the premises. The temple's significance is further accentuated by its association with Lord Devnarayan, revered as an incarnation of Lord Vishnu by the Gurjar community. The folklore and divine tales surrounding the deity add layers of mystique to the temple's allure. Devotees and tourists alike find solace and wonder in the temple's hallowed halls, making it a must-visit destination for those seeking to experience the spiritual and historical wealth of Asind. 🚩🚩🚩🚩🚩 जय श्री स्वाईभोज 🚩🚩🚩🚩🚩
Gujjar SahabGujjar Sahab
देवनारायण यानी देवजी रा देवरा आखै राजस्थान माय फैल्योड़ा है, जिका हजांरा री गिणती में है। सरिफ राजस्थान मांय ई नीं, बल्कै मालवा रै गामां मांय ई इणां रा देवरा फैल्यौड़ा है। इणां रौ खास स्थान तौ सवाईभोज है जिकौ भीलवाडाा जिलै रै आसींद कनै आयौ थकौ है। दूजै खास स्थानां में फरणौ है जिकौ मध्यप्रदेश मांय उज्जैन रै कनै आयौ थकौ है। टौंक रै कनै दांता गाम मांय इणां रौ अच्छौ देवरौ है। इणां रै अलावा दूजा केई स्थान ई घणा चावा है जिका राजस्थान अर मध्यप्रदेश मांय आया थका है। चमत्कारी पुरुष देवजी रौ जन्म बगड़ावतो में भोजा री गूजर स्त्री साढू (सेठू) री कोश सूं 1243 ई रै लगै टगै हुयौ मानीजै। देवना़रायण नै भगवान कृष्ण रै अवतार रै रूप में जाण्यौ, मान्यौ अर पूज्यौ जावै। गूजर जाति में खास तौर सूं इणां रै प्रति बड़ी सरधा अर भगती रा भाव पाया जावै। इणां रै साथै इणां रे भाई खांडेराव यानी भूणाजी री ई पूजा हुवै। भूणाजी लक्ष्मण रा अवतार गिणीजै रात-रात भर देवजी अर भूणाजी रै देवरां माथै बगड़ावत देवनारायण रौ नाम लिरीजै यानी इणआं री गाथावां गाईजै। भादवै री छठ अर माह सुदी सातम माथे क्रमवार नीलागर अर देवनारायण रू पूजा खास धूमधाम साथै करीजै, अर इणां रै नाम जागण करीजै। देवनारायण रौ सुमरण द ेवजी, ऊदाजी (उदयराव), क्रस्ण, धरमराज अर नारायण- आं पांच नामां सू करीजै। मुसलमानां में अै 'ऊदलसार' रै नाम सूं मान्या जावै। देवजी अर भूणाजी री पूजा-विधि अणूंती ई सैज अर आड़ंबर बिहूणी है। बस, अंतस मांय फगत सरधा अर भगती चाइजै। बारलै औपचारां रौ कोई खास मैतव नीं। गामां रै सरधालू भगतां सारू देवरा बणाय'र पांच ईटां रै रूप में इणां री थापना कर जी जावै। अै किणी ई दिस कानी थापन करीज सकै। इणां री पूजा रै रूप में पेड़ री पत्तियां तोड़ ईंटां मैथै मेल दिरीजै। पत्तियां में जाल, नेगड़, नीम अरबील री पत्तियां चढावै। गूगल आद रौ धूप दिरीजै। प्रसाद-रूप मे अै इज चढ़ियोड़ी पत्तियां दी जावै जिणनै ।
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राजाभोज, बगड़ावत गुर्जर राजवंश के सबसे प्रतापी वीर राजा थे ।[1] यह विष्णु के अवतार भगवान देवनारायण जी के पिताजी ही थे । बगड़ावत भाई अजमेर के चौहान राजवंश के ही राजकुमार थे। सवाई भोज के 24 भाई अलग-अलग रियासतों पर राज कर रहे थे पाटन पर तेजारावत राज्य कर रहे थे नेगड़िया पर बगड़ावत वीर नेवाजी रावत राज्य कर रहे थे 320 गढ़ की रियासत सवाई भोज के पास थी। आसींद पर आशा जी बगड़ावत राज्य कर रहे थे और बदनोर पर इनके पिता बाघ रावत चौहान जी राज्य कर रहे थे ।महाराज सवाई भोज को भगवान शिव जी द्वारा राजगद्दी प्राप्त हुई थी इनके गुरुजी का नाम बाबा रूपनाथ जी थ राजा बागरावत चौहान के पुत्र होने के कारण यह इतिहास में बगड़ावत नाम से प्रसिद्ध हुए बगड़ावत 24 भाई थे इनकी की राजधानी अजमेर के निकट बदनोर गोठा थी सवाई भोज महाराज ने कहीं बावड़ीया और मंदिर बनाए थे इनका विवाह उज्जैन के राजा दुदा जी खटाना की पुत्री साडू खटानी से हुआ था उनके पास भगवान इंद्र देव की घोड़ी बावली भगवान शिव द्वारा दी गई थी इनके पास धन खजाने की कोई कमी नहीं थी बगड़ावतों ने अनेक गरीब लोगों को गरीब से धनवान बनाया था इनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी बगड़ावत भाइयों का यश पूरे मारवाड़ मालवा और उत्तर प्रदेश तक फेल गया था उस बगड़ावत काल में किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर नजर उठाकर भी ना देखा क्षत्रिय वंश में जन्म में श्री सवाई भोज महाराज बड़े ही वीर और बलवान राजा थे पुष्कर इन का तीर्थ स्थल माना जाता था जहां बगड़ावत वीरों ने शिव मंदिर की स्थापना की थी 24 भाई बगडावत बगड़ावत भारत नामक युद्ध में अपने वचन रखते हुए मां चामुंडा को अपना सिर दान में देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे उसके बाद ही भगवान श्री देवनारायण जी का मालासेरी डूंगरी पर अवतार हुआ था और जितने भी बगड़ावतों की दुश्मन और बेरी थे उन सब राजाओं और सामंतों से भगवान श्री देवनारायण जी ने बगड़ावतों का बेर लिया था और अपना यश पूरे भारत में फैलाया महाराज सवाई भोज की याद में आसींद नगरी में भव्य मंदिर भी बना हुआ है पुष्कर में भी इनका मंदिर स्थापित है । बिलाड़ा का शिव मंदिर का निर्माण भी महाराज सवाई भोज जी ने करवाया था । <तारागढ़ को बैठणो , चक्के राज चौहान बेटा कहिजे बाघ का नाम सवाई भोज चौहान>राणी जयमती (जैमति) को लेकर राण के राजा दुर्जनसाल से बगड़ावतों का युद्ध हुआ। युद्ध से पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे धर्म के भाई थे। ये युद्ध खारी नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना वचन रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में दिये थे। बगड़ावतों के वीरगति प्राप्त होने के बाद देवनारायण का अवतार हुआ तथा उन्होंने राजा दुर्जनसाल का वध किया।देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
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देवनारायण यानी देवजी रा देवरा आखै राजस्थान माय फैल्योड़ा है, जिका हजांरा री गिणती में है। सरिफ राजस्थान मांय ई नीं, बल्कै मालवा रै गामां मांय ई इणां रा देवरा फैल्यौड़ा है। इणां रौ खास स्थान तौ सवाईभोज है जिकौ भीलवाडाा जिलै रै आसींद कनै आयौ थकौ है। दूजै खास स्थानां में फरणौ है जिकौ मध्यप्रदेश मांय उज्जैन रै कनै आयौ थकौ है। टौंक रै कनै दांता गाम मांय इणां रौ अच्छौ देवरौ है। इणां रै अलावा दूजा केई स्थान ई घणा चावा है जिका राजस्थान अर मध्यप्रदेश मांय आया थका है। चमत्कारी पुरुष देवजी रौ जन्म बगड़ावतो में भोजा री गूजर स्त्री साढू (सेठू) री कोश सूं 1243 ई रै लगै टगै हुयौ मानीजै। देवना़रायण नै भगवान कृष्ण रै अवतार रै रूप में जाण्यौ, मान्यौ अर पूज्यौ जावै। गूजर जाति में खास तौर सूं इणां रै प्रति बड़ी सरधा अर भगती रा भाव पाया जावै। इणां रै साथै इणां रे भाई खांडेराव यानी भूणाजी री ई पूजा हुवै। भूणाजी लक्ष्मण रा अवतार गिणीजै रात-रात भर देवजी अर भूणाजी रै देवरां माथै बगड़ावत देवनारायण रौ नाम लिरीजै यानी इणआं री गाथावां गाईजै। भादवै री छठ अर माह सुदी सातम माथे क्रमवार नीलागर अर देवनारायण रू पूजा खास धूमधाम साथै करीजै, अर इणां रै नाम जागण करीजै। देवनारायण रौ सुमरण द ेवजी, ऊदाजी (उदयराव), क्रस्ण, धरमराज अर नारायण- आं पांच नामां सू करीजै। मुसलमानां में अै 'ऊदलसार' रै नाम सूं मान्या जावै। देवजी अर भूणाजी री पूजा-विधि अणूंती ई सैज अर आड़ंबर बिहूणी है। बस, अंतस मांय फगत सरधा अर भगती चाइजै। बारलै औपचारां रौ कोई खास मैतव नीं। गामां रै सरधालू भगतां सारू देवरा बणाय'र पांच ईटां रै रूप में इणां री थापना कर जी जावै। अै किणी ई दिस कानी थापन करीज सकै। इणां री पूजा रै रूप में पेड़ री पत्तियां तोड़ ईंटां मैथै मेल दिरीजै। पत्तियां में जाल, नेगड़, नीम अरबील री पत्तियां चढावै। गूगल आद रौ धूप दिरीजै। प्रसाद-रूप मे अै इज चढ़ियोड़ी पत्तियां दी जावै जिणनै ।
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यह सवाई भोज, देवनारायण, साढ़ू माता का मन्दिर है [ सवाई भोज मन्दिर ] History

देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। इनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है।

उनका जन्म एक लोकप्रिय मांडलजी चौहान के परिवार में हुआ था। जिन्होंने मेवाड़ में भीलवाड़ा जिले के पास प्रसिद्ध मंडल झील की स्थापना की थी। मंडलजी, अजमेर के राजा बिसाल देव चौहान (विशाल देव चौहान) केे भाई थे, जिन्होंने ने संभवत: 8 वीं शताब्दी में अजमेर पर शासन किया था और साथ ही अरब घुसपैठ का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और तोमर वंश के शासकों को दिल्ली पर नियंत्रण पाने में मदद की। श्री देवनारायण जी का मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था। राजस्थान में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से शौर्य पुरूष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से जानकारी मिलती है। देवनारायण की फड़ के अनुसार माण्डलजी के हरिरामजी चौहान, हरिरामजी के बाघसिंह जी और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो बगड़ावत कहलाये । इन्हीं में से बड़े भाई राजा सवाई भोज गुर्जर और माता साडू गुर्जरी ( सेढू ) खटाणा के पुत्र के रूप में वि . सं . 968 ( 911 ई.) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरूष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ ।

राणी जयमती (जैमति) को लेकर राण के राजा दुर्जनसाल से बगड़ावतों का युद्ध हुआ। युद्ध से पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे धर्म के भाई थे। ये युद्ध खारी नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना वचन रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में दिये थे। बगड़ावतों के वीरगति प्राप्त होने के बाद देवनारायण का अवतार हुआ तथा उन्होंने राजा दुर्जनसाल का वध किया।

देवनारायण की ३ रानियां थीं- पीपलदे परमार (धारा के राजा की बेटी), नागकन्या तथा दैत्यकन्या।

देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।

देवनारायणजी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि . मी . दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ । देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई । उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ ।

कृष्ण की तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे । उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी , जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे । देवनारायण प्रातःकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे । यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी । देवनारायण के पास 98000 पशु धन था । जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे । देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे । 1444 ग्वालों का होना बताया गया है , जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था । देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया ।

इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया । आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की । हर असहाय की सहायता की । राजस्थान में जगह-जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है । ये देवरे अजमेर, चित्तौड़ , भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में है । देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है । देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि . मी . दूरी पर है । सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है। देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है । ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर...

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गुर्जर का गढ़ "अन्तराष्ट्रीय तिर्थ स्थल"

सभी भाई साल में एक बार अपने गुर्जर समाज के अंतराष्ट्रीय मंदिर सवाईभोज आसींद जरूर पधारे । जय श्री देवनारायण भगवान की जय इससे सम्बंधित एक लेख आपके सामने प्रस्तुत आमतौर पर सभी मंदिर भगवान के दर्शन और इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं, लेकिन मंदिर जाने के और कई लाभ भी हैं। जानिए मंदिर जाने से हमें क्या-क्या लाभ प्राप्त होते हैं...

मंदिर और उसमें स्थापित भगवान की प्रतिमा हमारे लिए आस्था के केंद्र हैं। मंदिर हमारे धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे भीतर आस्था जगाते हैं।

किसी भी मंदिर को देखते ही हम श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर भगवान के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं।

मंदिर वह स्थान है जहां जाकर मन को शांति का अनुभव होता है। वहां हम अपने भीतर नई शक्ति का अहसास करते हैं। हमारा मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता है। शरीर उत्साह और उमंग से भर जाता है।

मंत्रों के स्वर, घंटे-घडिय़ाल, शंख और नगाड़े की ध्वनियां सुनना मन को अच्छा लगता है।

इन सभी के पीछे है, ऐसे वैज्ञानिक कारण जो हमें प्रभावित करते हैं। मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि है।

मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा बनाया जाता है, जिससे वहां शांति और दिव्यता उत्पन्न होती है।

मंदिर की वह छत जिसके नीचे भगवान की श्री प्रतिमा की स्थापना की जाती है। ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है।

गुंबद के शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे गर्भ ग्रह मे भगवान की प्रतिमा स्थापित होती है। गुंबद तथा प्रतिमा का मध्य केंद्र एक रखा जाता है।

गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती है तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है।

गुंबद और प्रतिमा का मध्य केंद्र एक ही होने से प्रतिमा में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती है।

जब हम उस प्रतिमा को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं, तो हमारे अंदर भी ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है। इस ऊर्जा से हमारे अंदर शक्ति,उत्साह,प्रफुल्लता का संचार होता है।

मंदिर की पवित्रता हमें प्रभावित करती है। हमें अपने अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता रखने की प्रेरणा मिलती है।

मंदिर में बजने वाले शंख और घंटों की ध्वनियां वहां के वातावरण में कीटाणुओं को नष्ट करते रहती हैं।

घंटा बजाकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना हमें शिष्टाचार सिखाता है कि जब हम किसी के घर में प्रवेश करें तो पूर्व में सूचना दें।

घंटे का स्वर देव प्रतिमा को जाग्रत करता है, ताकि आपकी प्रार्थना सुनी जा सके।

शंख और घंटे-घडिय़ाल की ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है, जिससे आसपास से आने-जाने वाले अंजान व्यक्ति को पता चल जाता है कि आसपास कहीं मंदिर है।

मंदिर में स्थापित भगवान की प्रतिमा में हमारी आस्था और विश्वास होता है। प्रतिमा के सामने बैठने से हम एकाग्र होते हैं। यही एकाग्रता धीरे-धीरे हमें भगवान के साथ एकाकार करती है, तब हम अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं। एकाग्र होकर चिंतन-मनन से हमें अपनी समस्याओं का समाधान जल्दी मिल जाता है।

मंदिर में स्थापित भगवान की प्रतिमाओं के सामने नतमस्तक होने की प्रक्रिया से हम अनजाने ही योग और व्यायाम की सामान्य विधियां पूरी कर लेते हैं। इससे हमारे मानसिक तनाव, शारीरिक थकावट, आलस्य दूर हो जाते हैं।

मंदिर में परिक्रमा भी की जाती है, जिसमें पैदल चलना होता है। मंदिर परिसर में हम नंगे पैर पैदल ही घूमते हैं, यह भी एक व्यायाम है।

नंगे पैर मंदिर जाने से पगतलों मे एक्यूप्रेशर होता है। इससे पगतलों में शरीर के कई भीतरी संवेदनशील बिंदुओं पर अनुकूल दबाव पड़ता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

इस तरह हम देखते हैं कि मंदिर जाने से हमे बहुत लाभ है।

मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में विकसित करने के पीछे हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का यही लक्ष्य था कि सुबह जब हम अपने काम पर जाएं उससे पहले मंदिर से ऊर्जा लेकर जाएं, ताकि अपने कर्तव्यों का पालन सफलता के साथ कर सकें और जब शाम को थककर वापस आएं तो नई ऊर्जा प्राप्त करें। इसलिए दिन में कम से कम एक या दो बार मंदिर अवश्य जाना चाहिए। इससे हमारी आध्यात्मिक उन्नति तो होती है, साथ ही हमें निरंतर ऊर्जा मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।

आप सभी की शाम शुभ एवं मगंलमय् हो हम प्रभु से यही प्रार्थना करते है।

जय...

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History of Sawai Bhoj Temple, Bhilwara It is revealed in the historical records that Bhilwara Sawai Bhoj Temple was erected to commemorate the sacrifice of the Gurjar youth namely Sawai Bhoj. He fell in love with the wife of the Raja of Bhenai called Jaimati. As a repercussion to this, he along with his 4 brothers and mother was killed in a brutal war with Rajput ruler.

Description of Sawai Bhoj Temple, Bhilwara The Sawai Bhoj Temple in Bhilwara is said to have harmonized communal differences. Besides, this temple enjoys a very special feature. It has an adjacent mosque called the Badia Dargah. However in this mosque prayers are not offered and it has a symbolic significance only. This apart, in the complex of the Bhilwara Sawai Bhoj Temple numerous other tiny temples and shrines are also located. Of all the temples however the one that enjoys the limelight is temple for Deo Narain where prayers were offered in majority by...

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