Khema Baba (खेमा बाबा) (born:1876 AD), JakharGotra Jat, was a social reformer born in village Baytoo Bhopji in Baytu tahsil of Barmer district of Marwar region in Rajasthan. He was a revered person in Rajasthan as well as in Gujarat. There is a temple in village Vayatu to commemorate him. Fairs are organized every year on magha sudi 9 and bhadrapada sudi 9, in which thousands of people take part.[1]
विषय सूची
खेमा बाबा का परिचय
संत पुरुष खेमा बाबा का आविर्भाव बायतु के धारणा धोरा स्थित जाखड़ गोत्री जाट कानाराम के घर फागुन बदी सोमवार संवत 1932 को हुआ. आपकी माताजी बायतु चिमनजी के फताराम गूजर जाट की पुत्री रूपा बाई थी.
जाखड़ जाट गाँव बायतु, घर काने अवतार ।धरा पवित्र धारणो , फागन छत सोमवार ।।
बचपन में आप बाल-साथियों के साथ पशु चराने का काम करते थे. आपका विवाह संवत 1958 (सन 1901) की आसोज सुदी 8 शुक्रवार को नौसर गाँव में पीथाराम माचरा की पुत्री वीरां देवी के साथ हुआ. आपके एक मात्र पुत्री नेनीबाई पैदा हुई. खेमाराम का झुकाव प्रारंभ से ही भक्ति की तरफ था. आप अकाल की स्थिति में दूर-दूर तक गायें चराने जाया करते थे. इन्हें सिणधरी स्थित गोयणा भाखर में एक साधू तपस्या करता मिला. इनसे आपने बहुत कुछ सीखा तथा इनकी रूचि भक्ति की तरफ बढ़ गयी. गूदड़ गद्दी के रामनाथ खेड़ापा से संवत 1961 में खेमसिद्ध ने उपदेश लेकर दीक्षा ग्रहण की.
खेमा बाबा की चमत्कारिक शक्तियां
गोयणा भाखर सिणधरी में तपस्या करने के बाद बायतु भीमजी स्थित धारणा धोरे पर भक्ति की. काला बाला व सर्पों के देवता के रूप में कई पर्चे दिए तथा जनता के दुःख-दर्द दूर किये. आपने अरणे का पान खिला कर अमर राम का दमा ठीक किया. आज भी मान्यता है कि बायतु में स्थित खेम सिद्ध के इस चमत्कारिक अरने का पान खाने से दमा दूर हो जाता है. आपने अपने भक्त धोली डांग (मालवा) निवासी श्रीचंद सेठ के पुत्र को जीवित किया. सिणधरी व भाडखा में कोढियों की कोढ़ दूर की. सरणू गाँव में गंगाराम रेबारी को गंगा तालाब बनाने का वचन दिया. आपके परचे से गाँव भूंका में सूखी खेजड़ी हरी हो गयी. भंवराराम सुथार लोहिड़ा, रतनाराम सियाग, चोखाराम डूडी, रूपाराम लोल, जीया राम बेनीवाल, पुरखाराम नेहरा सहित असंख्य भक्तों का दुःख दूर हुआ. जाहरपीर गोगाजी, वीर तेजाजी, वभुतासिद्ध कि पीढ़ी के इस चमत्कारिक संत कि आराधना मात्र से ही सर्प, बांडी, बाला (नारू) रोग ठीक हो जाते हैं. खेमा बाबा ने गायों के चरवाहे के रूप में जीवन प्रारंभ किया. शिव की भक्ति के पुण्य प्रताप एवं गायों की अमर आशीष से देवता के रूप में पूजनीय हो गए, जिनके नाम मात्र से ही सर्प का विष उतर जाता है.
खेमा बाबा का मंदिर
आपने भाद्रपद शुक्ल आठं को बायतु भीमजी में समाधी ली. इसके पश्चात् आपके परचों की ख्याति न केवल बायतु बल्कि सम्पूर्ण मारवाड़ में फ़ैल गयी. सम्पूर्ण मालानी में गाँव-गाँव आपके आराधना स्थल मंदिर बने हैं. बायतु चिमनजी[2], पालरिया धाम, चारलाई कलां,रावतसर, छोटू, धारणा धोरा, रतेऊ[3], औया गुआ की होड़ी[4],जाणियों की ढाणी [5], वीर तेजा मंदिर (भगत की कोठी) में आपके मंदिर बने हैं. चैत्र, भाद्रपद एवं माह की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेमा बाबा के मंदिरों में मेला भरता है. इनकी समाधी स्थल बायतु भोपजी में हजारों की संख्या में श्रदालु अपने अराध्य देव के दर्शन करने आते हैं.
बाड़मेर जिले के बायतु कसबे में स्थित सिद्ध खेमा बाबा के मंदिर में माघ माह के शुक्ल पक्ष में नवमी को मेला भरता है. इसी तरह भादवा माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भी मेला लगता है. इन मेलों में ग्रामीणों का अपार सैलाब उमड़ पड़ता है. खेमा बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनको गोगाजी का वरदान प्राप्त है, जिससे खेमा बाबा की श्रद्धा से सांप तथा बिच्छू का काटा ठीक हो जाता है. निकट ही गोगाजी का मंदिर है जो स्वयं खेमा बाबा के इष्ट देवता माने जाते हैं. इसी दिन इस मंदिर पर भी जातरुओं का जमघट लगा रहता है. खेमा बाबा साँपों के सिद्ध देवता माने जाते हैं.
वर्तमान में उनकी समाधी पर भव्य मंदिर बना है जहाँ प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है. इस परिसर में पश्चिम की और भव्य मंदिर स्थित है. मंदिर के एक कमरे में बाबा की समाधी पर अब उनकी प्रतिमाएँ हैं, जहाँ स्वयं खेमा बाबा उनकी पत्नी वीरा देवी के तथा नाग देवता की प्रतिमाएँ हैं. यहाँ एक विशाल धर्मशाला भी है जहाँ भक्त लोग ठहरते हैं. मंदिर के परिसर में ही नीम के एक पेड़ पर सफ़ेद कपडे की तान्तियाँ लगी हुई हैं. यहाँ आने वाले अधिकांश ग्रामीण इस पेड़ पर तांती अवश्य बांधते हैं. इससे उनकी मन्नत पूरी होती है.
बायतु के मंदिर के अलावा भी बाड़मेर में खेमा बाबा के दर्जनों मंदिर हैं. बायतु के मुख्य मन्दिर पर लगने वाले मेलों में २ लाख तक ग्रामीण पधारते हैं. मेले में बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर से...
Read more#खेमाबाबामेला बायतु, बाड़मेर सिद्ध श्री खेमा बाबा की #जीवनी :- किसान नारोजी जाट जाखड़ राजस्थान के जोधपुर जिले में ओसियां के पास नेवरा गांव में रहते थे। विक्रम संवत 1882 में नारोजी ओसियां से अपने पुरे परिवार के साथ बाड़मेर जिले की बायतु तहसील में आ गए और यहां पर रहने लगे थे। विक्रम संवत 1892 को बायतु में नारोजी के घर देव उठनी एकादशी को पुत्र काना राम का जन्म हुआ था। कानाराम जी धर्म प्रेमी व्यक्ति थे जो हमेशा अपने इष्ट देव बिगाजी महाराज, गुसाई जी महाराज और पिथल भवानी का पुजा पाठ करते थे। कानाराम जी का विवाह बायतु चिमनजी निवासी फताराम जी गुजर की सुपुत्री रूपांदे के साथ विक्रम संवत 1913 की माह सुदी 5 को सम्पन्न हुआ। बायतु रेलवे स्टेशन से छः किलोमीटर दक्षिण दिशा में धारणा धोरा में काना राम के घर विक्रम संवत 1932 फाल्गुन वदी छठ सोमवार को देव रूपी बालक खेमा राम का जन्म हुआ। बचपन से ही खेमा राम की लग्न भक्ति भावना में थी। थोड़ा बड़ा होने पर खेमा राम को गायों चराने का काम सौंप दिया था। भक्ती भावना को देखते हुए घरवालों ने जल्दी ही विक्रम संवत 1958 में आसोज सुदी आठम शुक्रवार को गांव नोसर निवासी पिथा राम जी माचरा की सुपुत्री वीरों देवी के साथ शादी करवा दी थी। धीरे धीरे समय बीतता गया, दिनों दिन खेमा राम भक्ति में लीन रहने लगे। एक दिन घर से निकल सिणधरी के पास गोहिणा भाखर पर जाकर भगवान शिव की कठिन तपस्या करने लग गए। खेमा राम की भक्ति से भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और भोलेनाथ से अनेकों प्रकार की सिद्धियां दे दी। सिद्धियां प्राप्त कर खेमाराम वापस बायतु आकर अलग से कुटिया बनाकर अपने भक्ति में मगन रहने लगे। हमेशा हाथ में कुल्हाड़ी और लोवड़ी पास रखते थे। एक दिन कतरियासर सिद्धों की फेरी बायतु की तरफ आई हुई थी और रात में जागरण में जसनाथी सिद्धों का शब्द गायन सुनकर खेमा बाबा भी वाह चलें गए। फेरी में परमहंस मण्डली के साधु राम नाथ जी महाराज थे। राम नाथ जी महाराज ज्ञानी पुरुष थे जिसको बेदाग एवं पिंगल शास्त्र का ज्ञान था। संस्कृत में डिग्री प्राप्त की हुई थी। ऐसे महापुरुष से मिलकर खेमा राम खुश हो गए, जागरण शुरू हुई, शब्द गायन हुआ। अग्नि नृत्य भी हुआ तब राम नाथ जी ने खेमा बाबा को कहा खेमाराम जी अब आप भी कुछ सिद्धियां दिखाओ! खेमा राम ने जसनाथी जागरण पूरे धुणे को अपनी #लोवड़ी (ऊन की कम्बल) में समेट लिया, तब #रामनाथ जी ने कहा क्या खेमा सिद्ध हों गया, तो खेमा बाबा बोले~ गुरुजी आप कहो तो सिद्ध ही हूं | वाह खेमाराम आज के बाद तुम खेमाराम नहीं #खेमसिद्ध के नाम से जाने जाओगे। फिर खेमा सिद्ध ने गुरु रामनाथ जी महाराज से गुरु मंत्र लेकर आशीर्वाद प्राप्त किया और अनेकों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हुई। रामनाथ जी महाराज बाड़मेर जिले के छोटु गांव के हुड्डा जाट थे, जिसका जन्म नरसिगाराम हुड्डा की जोड़ायत खेतुदेवी सारण की कोख से हुआ था। धीरे धीरे खेमा बाबा की प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी और खेमा बाबा ने अनेक चमत्कार सिद्धियां दिखानी शुरू कर दी। खेम सिद्ध ने लालाराम जी ज्याणी की मरी हुई टोगड़ी (गाय की बछड़ी) को जीवित किया, गीगाई से गोगाजी की मूर्ति लाकर बायतु में स्थापित की, पीछे वार आ गई तो वार को अंधा कर दिया, माफी मांगने पर ठीक कर दिया, अरणे का ढाई पतें खिलाकर विरधाराम जी का दमा रोग ठीक करना, कोसला रामजी को सर्प काटा उसका इलाज राबड़ी लगाकर किया, गंगा रबारी को वचन देकर गंग तालाब गांव सरणु में बनवाया, शंकर लाल बाबू को पुत्र की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया, धर्म चंद ओसवाल को झूठे दावे पर सर्प का चमत्कार दिखा, गांव सिणधरी के चारण जाति के कोढी की कोढ झाड़ी, गांव भाड़खा में कोढी की कोढ झाड़ी, जाणी चुतरा राम जी अनुपोणी को रात्रि में दर्शन देकर अनेकों प्रकार की सिद्धियां बताइ, बायतु भीमजी निवासी हेमाराम दर्जी को दर्शन दिया, सिणधरी के नदी किनारे सुखी खेजड़ी को हरा कर दिया, समाधि के तीन दिन बाद धोलीडाग मालवा के सेठ श्रीचंद के पुत्र को जिंदा किया, ठाकर चनणसिह को सर्प और बिच्छू का चमत्कार दिखाया आदि अनेक चमत्कार दिखाये थे। भक्तों को सर्प नाग बिच्छू अनेक जहरीले जीवों को काटने पर जो भी खेमा बाबा के शरण में आया उनके तांती बांधी वो जरूर ठीक हुआ है। खेमा बाबा एक महान महापुरुष थे। लोग भगवान शिव भोलेनाथ के अवतार के रूप में पूजते है। सती वीरो देवी का स्वर्गवास होने पर जसनाथी परम्परा को मानकर बायतु में समाधी दी गई। एक दिन मैं संसार छोड़ रहा हु, मेरी समाधि गोगाजी मंदिर के पास देना यह कहकर हर-हर भोले ओम नमः शिवाय का जाप जपकर स्वर्ग वासी हो गए। विकम सवत 1989 फाल्गुन सुदी 5 को समाधी दी गई। आज जगह जगह धाम बने हुए हैं, जन्म स्थान धारणा धोरा , समाधि धाम बायतु, अरणेशवर धाम,...
Read moreIt is told about the miracles of Siddha Shri Khema Baba that when a snake bites a human or animal, then the thread taking the name of Khema Baba, which is called Tanti in the local language, is tied to the snake's victim and Baba's In the temple, four rounds are made around the Fairy temple, the patient starts recovering from this miracle. In Marwar, the deity of snakes, the folk deity of Marwar, Khema Baba, is worshiped from house to house. The dance of Bhopo is the center of attraction. While dancing on the hymns of Baba during the awakening, the priest of Bhopaji starts to feel the sense of Baba in the local language, then the iron chain in the name of Bhopaji Baba, which is called in the local language with a chain and a rope. The whips are called Tajana in the local language, which they hit hard on their body, because of Baba's miracle, nothing happens to Bhopaji. Even in the day-filled fair, Bhopaji gets the feeling of Baba over the hymns, the atmosphere becomes captivating with the cheers of the people throughout the day. Huge crowds and white flags and prasadam piles up in the...
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