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Lakha Banjara Lake — Attraction in Sagar

Name
Lakha Banjara Lake
Description
Nearby attractions
ATAL PARK
New Park Rd, Kakaganj, Sagar, Madhya Pradesh 470001, India
Lakha Banjara Park
RPQW+538, National Highway-86, Lakha Banjara Lake, Kakaganj, Sagar, Madhya Pradesh 470002, India
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Keywords
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Lakha Banjara Lake things to do, attractions, restaurants, events info and trip planning
Lakha Banjara Lake
IndiaMadhya PradeshSagarLakha Banjara Lake

Basic Info

Lakha Banjara Lake

Kakaganj, Sagar, Madhya Pradesh
4.2(156)
Open 24 hours
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spot

Ratings & Description

Info

Outdoor
Relaxation
Scenic
Pet friendly
Family friendly
attractions: ATAL PARK, Lakha Banjara Park, restaurants:
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Reviews

Nearby attractions of Lakha Banjara Lake

ATAL PARK

Lakha Banjara Park

ATAL PARK

ATAL PARK

4.1

(398)

Open 24 hours
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Lakha Banjara Park

Lakha Banjara Park

4.0

(357)

Open until 12:00 AM
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MOHAMMAD SHAHIDMOHAMMAD SHAHID
मध्यप्रदेश के सागर की विख्यात लाखा बंजारा झील और दिल्ली के रायसिना इलाके के बीच क्या कोई सीधा संबंध हो सकता है? बिल्कुल हो सकता है। इसलिऐ क्योंकि सागर तालाब बनाने वाले लख्खीशाह उर्फ लाखा बंजारा ही कभी उस रायसिना इलाके के मालिक थे, जहाँ आज राष्ट्रपति भवन और संसद भवन बने हैं। ...यहाँ सागर में बैठकर जब हम सुनते हैं कि साढ़े तेरह सौ एकड़ का तालाब किसी एक बंजारे ने बनवाया था तो हमें हैरत होती है। दरसल हम आज बंजारा शब्द से लौहगढ़िया बंजारों की छवि बना लेते हैं और निष्कर्ष निकालने लगते हैं कि इन जैसा एक बंजारा इतना बड़ा तालाब कैसे बनवा सकता है। यहाँ हमें लख्खीशाह बंजारे के गौरवशाली इतिहास से रूबरू होना चाहिए। सिख इतिहास में उन्हें बाबा लख्खीशाह कहा जाता है और उन्हें महापुरूष की तरह आदर दिया जाता है। लख्खीशाह बंजारा का जन्म 15 अगस्त 1580 को दिल्ली के रायसिना टांडा में हुआ था। पिता का नाम गोधू व दादा का नाम ठाकुरदास बंजारा था। उनके पास दो लाख बीस हजार बैल और बीसियों हजार मालवाहक बैलगाड़ियाँ थीं। उनके एक काफिले में आठ से दस हजार तक बैलगाड़ियाँ होती थीं जिनमें से हरेक पर लगभग तीन क्विंटल माल लदा होता था। मूलतः नमक, अनाज के अलावा ,घोड़ों की काठें या ज़ीन, रकाबें, हौदे, सैन्य रसद का सामान लदा होता था। माल का परिवहन दो तरफा होता था और मुद्राओं के अलावा सामान से सामान का विनिमय होता था। मसलन सागर की प्राचीन नमकमंडी में आज के अफगानी, पाकिस्तानी इलाकों से नमक आता था तो यहाँ की उपज उत्तरी इलाकों में ले जायी जाती थी। मुगलों ने बंजारों के इन काफिलों को अपने विशाल सैन्य अभियानों और देशभर में फैले किला ,गढ़ियों में रसद पहुँचाने के लिए व्यवस्थित रूप दिया। काफिलों को सुरक्षा प्रदान की। बंजारा व्यापारी खुद योद्धा भी होते थे और अपने सुरक्षा दस्ते भी साथ रखते थे। काफिले में महिलाऐं और बच्चे भी होते थे। उनकी महिलाऐं पर्दों में नहीं रहती थीं बल्कि व्यवसाय में बराबर से हाथ बटाती थीं। काफिले का प्रमुख नायक कहलाता था और लख्खी शाह भी खुद धनी बंजारा नायक था। वह कीमती कपड़े पहनता और उसके गले में सोने, हीरों के हार सजे होते थे।बुंदेलखंड और महाकौशल के इलाकों में लख्खीशाह का काफिला ही कारोबार करता था। काफिले में चलने वाले लगभग बीस पच्चीस हजार लोगों के लिऐ हर प्रमुख पड़ाव पर लाखा बंजारा ने सराय, कुँए और तालाब बनवाऐ थे। सागर का वर्तमान किला तब सिर्फ एक गढ़ी था जिसे 1760 में मराठा सरदार ने आज का स्वरूप दिया। इसके आसपास जो संरचनाऐं लख्खी शाह ने सागर में बनवाईं थीं उनमें कटरा नमकमंडी का पड़ाव,झरना परकोटा से लेकर मस्जिद के चारों कोनों तक कई कुंए और लाखा बंजारा झील शामिल हैं। जबलपुर के कई तालाबों के समान सागर झील भी सक्रिय ज्वालामुखी के सुप्त होने पर बना प्राकृतिक क्रेटर था जिसमें सहज रूप से आसपास के पहाड़ों पर बरसा पानी जमा हो जाता था। लख्खी शाह ने इसमें और खुदाई कराके चारों तरफ पिचिंग और खूबसूरत घाटों का निर्माण कराया। झील में पानी नहीं आने पर अपने बच्चे और बहू की कुर्बानी देने की घटना सिर्फ कल्पना नहीं है बल्कि इस घटना में अनुश्रुति का ट्विस्ट देकर स्थानीय पुट डाला गया है। लगभग सौ साल की उम्र पाकर 21 जून 1679 को दिवंगत हुऐ लख्खी शाह के आठ बेटे और एक बेटी थी। उसके कई बेटों ने दसवें गुरू गोविंद सिंह जी की सेवा में लड़ते हुए शहादत पायी। इन सभी का नाम सहित पूरा ब्यौरा सिक्खी इतिहास में दर्ज है। लेकिन सबसे अहम घटना जिसने लख्खी शाह को महापुरूष बना दिया वह नौंवे गुरू श्री तेग बहादुर के शव को शहीदी स्थल से भरी भीड़ के बीच जाकर उठाना था। दिल्ली के चांदनी चौक में जहाँ आज गुरूद्वारा रकाबगंज है वहाँ औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी का शीश कटवाया। लख्खी शाह बंजारे और उनके कई साथियों ने साजिशपूर्वक घटनास्थल पर अफरातफरी मचवाई। कटे हुए शीश को उठा कर गुरू का एक शिष्य भाग निकला। तभी लख्खी शाह ने रूई से लदी सैकड़ों गाड़ियां वहाँ भेज दी। इन्हीं में से एक गाड़ी में गुरू के धड़ को लादा और रूई में छिपा कर अपने घर ले गये। व्यापक पैमाने पर खोजबीन शुरू हुई और अंत्येष्टि का कोई रास्ता नहीं था। लख्खीशाह ने घर के भीतर पूरे विधिविधान से अंत्येष्टि की और तुरंत अपने आलीशान घर में आग लगा दी। सारे कीमती सामानों सहित आलीशान कोठी स्वाहा हो गई। ऐसा करके उन्होंने औरंगज़ेब की मंशा को पूरा नहीं होने दिया जिसमें उसने हुक्म दिया था कि गुरू के शव के चार टुकड़े कर दिल्ली के चार दरवाजों पर लटका दिऐ जाऐं।...गुरू के शव को अपमान से बचाने वाले लख्खी शाह इतिहास में अमर हो गये।उनके परिजनों ने बाद में इसकी भारी कीमत चुकाई। हम सागरवासी उनके बनाऐ तालाब के अलावा उनके बाकी इतिहास से अब तक अछूते ही हैं।.. Source-WhatApp
Harsh Wardhan JogHarsh Wardhan Jog
Lakha Banjara Lake or Sagar Lake is in middle of Sagar city MP. Nice cool place for morning or evening walks. Origin of this lake is not clear. As per folklore this Lake was ordered to be dug by the king in ancient times. But no water came out. Somebody close to king suggested that if a newly wed couple prays at the central point of the lake water may come out. However the couple will get drowned. Nobody came out for such sacrifice. Lakha Banjara offered to put his son & newly wedded daughter in law in the dry lake. Couple prayed there & water came out gushing but the couple drowned. Lakha Bnajara the gypsy became a folk hero.
Ahesan BukhariAhesan Bukhari
Lakha Banjara lake is the heart of the Sagar district. Opposite to Sagar ISBT and 3 kms away from Sagar Railway station. You will find many migratory birds in the lake if you are visiting it Spring seasons. You can take a Boat ride as well in the lake with your loved ones.
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मध्यप्रदेश के सागर की विख्यात लाखा बंजारा झील और दिल्ली के रायसिना इलाके के बीच क्या कोई सीधा संबंध हो सकता है? बिल्कुल हो सकता है। इसलिऐ क्योंकि सागर तालाब बनाने वाले लख्खीशाह उर्फ लाखा बंजारा ही कभी उस रायसिना इलाके के मालिक थे, जहाँ आज राष्ट्रपति भवन और संसद भवन बने हैं। ...यहाँ सागर में बैठकर जब हम सुनते हैं कि साढ़े तेरह सौ एकड़ का तालाब किसी एक बंजारे ने बनवाया था तो हमें हैरत होती है। दरसल हम आज बंजारा शब्द से लौहगढ़िया बंजारों की छवि बना लेते हैं और निष्कर्ष निकालने लगते हैं कि इन जैसा एक बंजारा इतना बड़ा तालाब कैसे बनवा सकता है। यहाँ हमें लख्खीशाह बंजारे के गौरवशाली इतिहास से रूबरू होना चाहिए। सिख इतिहास में उन्हें बाबा लख्खीशाह कहा जाता है और उन्हें महापुरूष की तरह आदर दिया जाता है। लख्खीशाह बंजारा का जन्म 15 अगस्त 1580 को दिल्ली के रायसिना टांडा में हुआ था। पिता का नाम गोधू व दादा का नाम ठाकुरदास बंजारा था। उनके पास दो लाख बीस हजार बैल और बीसियों हजार मालवाहक बैलगाड़ियाँ थीं। उनके एक काफिले में आठ से दस हजार तक बैलगाड़ियाँ होती थीं जिनमें से हरेक पर लगभग तीन क्विंटल माल लदा होता था। मूलतः नमक, अनाज के अलावा ,घोड़ों की काठें या ज़ीन, रकाबें, हौदे, सैन्य रसद का सामान लदा होता था। माल का परिवहन दो तरफा होता था और मुद्राओं के अलावा सामान से सामान का विनिमय होता था। मसलन सागर की प्राचीन नमकमंडी में आज के अफगानी, पाकिस्तानी इलाकों से नमक आता था तो यहाँ की उपज उत्तरी इलाकों में ले जायी जाती थी। मुगलों ने बंजारों के इन काफिलों को अपने विशाल सैन्य अभियानों और देशभर में फैले किला ,गढ़ियों में रसद पहुँचाने के लिए व्यवस्थित रूप दिया। काफिलों को सुरक्षा प्रदान की। बंजारा व्यापारी खुद योद्धा भी होते थे और अपने सुरक्षा दस्ते भी साथ रखते थे। काफिले में महिलाऐं और बच्चे भी होते थे। उनकी महिलाऐं पर्दों में नहीं रहती थीं बल्कि व्यवसाय में बराबर से हाथ बटाती थीं। काफिले का प्रमुख नायक कहलाता था और लख्खी शाह भी खुद धनी बंजारा नायक था। वह कीमती कपड़े पहनता और उसके गले में सोने, हीरों के हार सजे होते थे।बुंदेलखंड और महाकौशल के इलाकों में लख्खीशाह का काफिला ही कारोबार करता था। काफिले में चलने वाले लगभग बीस पच्चीस हजार लोगों के लिऐ हर प्रमुख पड़ाव पर लाखा बंजारा ने सराय, कुँए और तालाब बनवाऐ थे। सागर का वर्तमान किला तब सिर्फ एक गढ़ी था जिसे 1760 में मराठा सरदार ने आज का स्वरूप दिया। इसके आसपास जो संरचनाऐं लख्खी शाह ने सागर में बनवाईं थीं उनमें कटरा नमकमंडी का पड़ाव,झरना परकोटा से लेकर मस्जिद के चारों कोनों तक कई कुंए और लाखा बंजारा झील शामिल हैं। जबलपुर के कई तालाबों के समान सागर झील भी सक्रिय ज्वालामुखी के सुप्त होने पर बना प्राकृतिक क्रेटर था जिसमें सहज रूप से आसपास के पहाड़ों पर बरसा पानी जमा हो जाता था। लख्खी शाह ने इसमें और खुदाई कराके चारों तरफ पिचिंग और खूबसूरत घाटों का निर्माण कराया। झील में पानी नहीं आने पर अपने बच्चे और बहू की कुर्बानी देने की घटना सिर्फ कल्पना नहीं है बल्कि इस घटना में अनुश्रुति का ट्विस्ट देकर स्थानीय पुट डाला गया है। लगभग सौ साल की उम्र पाकर 21 जून 1679 को दिवंगत हुऐ लख्खी शाह के आठ बेटे और एक बेटी थी। उसके कई बेटों ने दसवें गुरू गोविंद सिंह जी की सेवा में लड़ते हुए शहादत पायी। इन सभी का नाम सहित पूरा ब्यौरा सिक्खी इतिहास में दर्ज है। लेकिन सबसे अहम घटना जिसने लख्खी शाह को महापुरूष बना दिया वह नौंवे गुरू श्री तेग बहादुर के शव को शहीदी स्थल से भरी भीड़ के बीच जाकर उठाना था। दिल्ली के चांदनी चौक में जहाँ आज गुरूद्वारा रकाबगंज है वहाँ औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी का शीश कटवाया। लख्खी शाह बंजारे और उनके कई साथियों ने साजिशपूर्वक घटनास्थल पर अफरातफरी मचवाई। कटे हुए शीश को उठा कर गुरू का एक शिष्य भाग निकला। तभी लख्खी शाह ने रूई से लदी सैकड़ों गाड़ियां वहाँ भेज दी। इन्हीं में से एक गाड़ी में गुरू के धड़ को लादा और रूई में छिपा कर अपने घर ले गये। व्यापक पैमाने पर खोजबीन शुरू हुई और अंत्येष्टि का कोई रास्ता नहीं था। लख्खीशाह ने घर के भीतर पूरे विधिविधान से अंत्येष्टि की और तुरंत अपने आलीशान घर में आग लगा दी। सारे कीमती सामानों सहित आलीशान कोठी स्वाहा हो गई। ऐसा करके उन्होंने औरंगज़ेब की मंशा को पूरा नहीं होने दिया जिसमें उसने हुक्म दिया था कि गुरू के शव के चार टुकड़े कर दिल्ली के चार दरवाजों पर लटका दिऐ जाऐं।...गुरू के शव को अपमान से बचाने वाले लख्खी शाह इतिहास में अमर हो गये।उनके परिजनों ने बाद में इसकी भारी कीमत चुकाई। हम सागरवासी उनके बनाऐ तालाब के अलावा उनके बाकी इतिहास से अब तक अछूते ही हैं।.. Source-WhatApp
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Ahesan Bukhari

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Reviews of Lakha Banjara Lake

4.2
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Lakha Banjara Lake in Sagar, also known as Sagar Lake, has a rich history intertwined with local legends. Origin and Naming: Legend of Lakha Banjara: The lake is popularly named after a wealthy trader and great warrior, Lakha Banjara. According to local folklore, the lake was dug, but water did not appear. To bring water, Lakha Banjara, in a great sacrifice for the region, allowed his daughter-in-law and son to swing in the middle of the empty lake, which then filled with water, though his daughter-in-law drowned. A 21-foot statue of Lakhishah Banjara has been installed near the lake in his honor. 16th Century Construction (Legendary): Some legends suggest the lake was created in the 16th century, with credit going to Lakha Banjara. Natural Formation (Expert Opinion): Experts also believe it could have been a naturally formed lake that was later expanded and made more useful by a king or community, though there's no definitive evidence for this. Presence before 1660: When Udanshah built a small fort and established the first settlement (Parkota village) in 1660, the pond was already in existence. Later Developments: Improvements in 1900: The lake was improved and deepened during the famine of 1900, at a cost of about Rs. 7000. Modern Rejuvenation: In recent years, the lake has undergone significant conservation and beautification work under the Smart City Mission, with a cost of Rs. 111.33 crore. This has included efforts to address environmental and social threats, such as pollution and encroachments. While specific historical records about its exact construction date are scarce, the lake's history is deeply rooted in the heroic tales of Lakha Banjara and its long-standing role as a vital water source...

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मध्यप्रदेश के सागर की विख्यात लाखा बंजारा झील और दिल्ली के रायसिना इलाके के बीच क्या कोई सीधा संबंध हो सकता है? बिल्कुल हो सकता है। इसलिऐ क्योंकि सागर तालाब बनाने वाले लख्खीशाह उर्फ लाखा बंजारा ही कभी उस रायसिना इलाके के मालिक थे, जहाँ आज राष्ट्रपति भवन और संसद भवन बने हैं। ...यहाँ सागर में बैठकर जब हम सुनते हैं कि साढ़े तेरह सौ एकड़ का तालाब किसी एक बंजारे ने बनवाया था तो हमें हैरत होती है। दरसल हम आज बंजारा शब्द से लौहगढ़िया बंजारों की छवि बना लेते हैं और निष्कर्ष निकालने लगते हैं कि इन जैसा एक बंजारा इतना बड़ा तालाब कैसे बनवा सकता है। यहाँ हमें लख्खीशाह बंजारे के गौरवशाली इतिहास से रूबरू होना चाहिए। सिख इतिहास में उन्हें बाबा लख्खीशाह कहा जाता है और उन्हें महापुरूष की तरह आदर दिया जाता है।

लख्खीशाह बंजारा का जन्म 15 अगस्त 1580 को दिल्ली के रायसिना टांडा में हुआ था। पिता का नाम गोधू व दादा का नाम ठाकुरदास बंजारा था। उनके पास दो लाख बीस हजार बैल और बीसियों हजार मालवाहक बैलगाड़ियाँ थीं। उनके एक काफिले में आठ से दस हजार तक बैलगाड़ियाँ होती थीं जिनमें से हरेक पर लगभग तीन क्विंटल माल लदा होता था। मूलतः नमक, अनाज के अलावा ,घोड़ों की काठें या ज़ीन, रकाबें, हौदे, सैन्य रसद का सामान लदा होता था। माल का परिवहन दो तरफा होता था और मुद्राओं के अलावा सामान से सामान का विनिमय होता था। मसलन सागर की प्राचीन नमकमंडी में आज के अफगानी, पाकिस्तानी इलाकों से नमक आता था तो यहाँ की उपज उत्तरी इलाकों में ले जायी जाती थी।

मुगलों ने बंजारों के इन काफिलों को अपने विशाल सैन्य अभियानों और देशभर में फैले किला ,गढ़ियों में रसद पहुँचाने के लिए व्यवस्थित रूप दिया। काफिलों को सुरक्षा प्रदान की। बंजारा व्यापारी खुद योद्धा भी होते थे और अपने सुरक्षा दस्ते भी साथ रखते थे। काफिले में महिलाऐं और बच्चे भी होते थे। उनकी महिलाऐं पर्दों में नहीं रहती थीं बल्कि व्यवसाय में बराबर से हाथ बटाती थीं। काफिले का प्रमुख नायक कहलाता था और लख्खी शाह भी खुद धनी बंजारा नायक था। वह कीमती कपड़े पहनता और उसके गले में सोने, हीरों के हार सजे होते थे।बुंदेलखंड और महाकौशल के इलाकों में लख्खीशाह का काफिला ही कारोबार करता था।

काफिले में चलने वाले लगभग बीस पच्चीस हजार लोगों के लिऐ हर प्रमुख पड़ाव पर लाखा बंजारा ने सराय, कुँए और तालाब बनवाऐ थे। सागर का वर्तमान किला तब सिर्फ एक गढ़ी था जिसे 1760 में मराठा सरदार ने आज का स्वरूप दिया। इसके आसपास जो संरचनाऐं लख्खी शाह ने सागर में बनवाईं थीं उनमें कटरा नमकमंडी का पड़ाव,झरना परकोटा से लेकर मस्जिद के चारों कोनों तक कई कुंए और लाखा बंजारा झील शामिल हैं। जबलपुर के कई तालाबों के समान सागर झील भी सक्रिय ज्वालामुखी के सुप्त होने पर बना प्राकृतिक क्रेटर था जिसमें सहज रूप से आसपास के पहाड़ों पर बरसा पानी जमा हो जाता था। लख्खी शाह ने इसमें और खुदाई कराके चारों तरफ पिचिंग और खूबसूरत घाटों का निर्माण कराया।

झील में पानी नहीं आने पर अपने बच्चे और बहू की कुर्बानी देने की घटना सिर्फ कल्पना नहीं है बल्कि इस घटना में अनुश्रुति का ट्विस्ट देकर स्थानीय पुट डाला गया है। लगभग सौ साल की उम्र पाकर 21 जून 1679 को दिवंगत हुऐ लख्खी शाह के आठ बेटे और एक बेटी थी। उसके कई बेटों ने दसवें गुरू गोविंद सिंह जी की सेवा में लड़ते हुए शहादत पायी। इन सभी का नाम सहित पूरा ब्यौरा सिक्खी इतिहास में दर्ज है। लेकिन सबसे अहम घटना जिसने लख्खी शाह को महापुरूष बना दिया वह नौंवे गुरू श्री तेग बहादुर के शव को शहीदी स्थल से भरी भीड़ के बीच जाकर उठाना था।

दिल्ली के चांदनी चौक में जहाँ आज गुरूद्वारा रकाबगंज है वहाँ औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी का शीश कटवाया। लख्खी शाह बंजारे और उनके कई साथियों ने साजिशपूर्वक घटनास्थल पर अफरातफरी मचवाई। कटे हुए शीश को उठा कर गुरू का एक शिष्य भाग निकला। तभी लख्खी शाह ने रूई से लदी सैकड़ों गाड़ियां वहाँ भेज दी। इन्हीं में से एक गाड़ी में गुरू के धड़ को लादा और रूई में छिपा कर अपने घर ले गये। व्यापक पैमाने पर खोजबीन शुरू हुई और अंत्येष्टि का कोई रास्ता नहीं था। लख्खीशाह ने घर के भीतर पूरे विधिविधान से अंत्येष्टि की और तुरंत अपने आलीशान घर में आग लगा दी। सारे कीमती सामानों सहित आलीशान कोठी स्वाहा हो गई। ऐसा करके उन्होंने औरंगज़ेब की मंशा को पूरा नहीं होने दिया जिसमें उसने हुक्म दिया था कि गुरू के शव के चार टुकड़े कर दिल्ली के चार दरवाजों पर लटका दिऐ जाऐं।...गुरू के शव को अपमान से बचाने वाले लख्खी शाह इतिहास में अमर हो गये।उनके परिजनों ने बाद में इसकी भारी कीमत चुकाई। हम सागरवासी उनके बनाऐ तालाब के अलावा उनके बाकी इतिहास से अब तक अछूते ही हैं।.....

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Lakha Banjara Lake or Sagar Lake is in middle of Sagar city MP. Nice cool place for morning or evening walks. Origin of this lake is not clear. As per folklore this Lake was ordered to be dug by the king in ancient times. But no water came out. Somebody close to king suggested that if a newly wed couple prays at the central point of the lake water may come out. However the couple will get drowned. Nobody came out for such sacrifice. Lakha Banjara offered to put his son & newly wedded daughter in law in the dry lake. Couple prayed there & water came out gushing but the couple drowned. Lakha Bnajara the gypsy became...

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