Visited this Holy place on 6th March 2023. It is also called Choti Kashi. The story of Gokaran Nath is same as Vaidyanath. It is the belief of the people that Lord Shiva was pleased with the penance (Tapasya) of Ravana (King of Lanka) and offered him a boon. Rawana requested the Lord Shiva to go to Lanka with him and leave there forever. The Lord Shiva agreed to go on condition that he should not be placed anywhere on the way to Lanka. If he were placed anywhere, he would settle at that place. Shiv gave him one of the twelve Jyotirlingams. Rawana agreed and started his journey to Lanka with the Lord on his head. When Rawana reached the Gola Gokaran Nath (then called Gollihara) he felt the need to urinate (a call of nature). Rawana offered some gold coins to a shepherd (who was none other than Lord Ganesha sent by deities) for placing the Lord Shiva on his head until he returned. The shepherd (Lord Ganesha) placed him on the land. Rawana failed to lift him up despite all his efforts. He pressed him on his head with his thumb in full anger. The impression of Rawana's thumb is still present on the Shivling. Because of that the Shivling became like a Cow's Ear (गोकर्ण)and mounted around 5 feet below from the ground level. The importance of Gokarnnath dham increases during the month of Shrawan. Must visit this place once in life. Har Har...
Read moreलखीमपुर-खीरी. श्रावण मास में छोटी काशी यानी गोला नगरी शिव भक्तों के आकर्षण का केंद्र होती है। हो भी क्यों न यहां स्थापित शिवलिंग को कोई राजपुरोहित या साधू-सन्यासी नहीं बल्कि प्रकांड विद्वान और महापंडित लंकाधिपति महाराज रावण लेकर आए थे। और इसकी स्थापना भी किसी साधारण मानव ने नहीं बल्कि जिनका नाम लेकर किसी कार्य की शुरूआत की जाती है, उन भगवान गणेश ने की थी। ग्वाला रूप धर आए भगवान गणेश ने रावण द्वारा प्रदत्त शिव लिंग को धरा पर स्थापित कर दिया था। इस लीला के बाद खीरी की धरती एक साथ महाज्ञानी रावण, भगवान श्रीगणेश और ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव के आगमन से धन्य हो गई।
त्रेतायुग यानी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन काल। त्रिलोक विजेता महाज्ञानी एवं शिव भक्त रावण ने कैलाश पर्वत पर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। वरदान के रूप में भगवान शिव द्वारा प्रदत्त शिव लिंग को लंका में स्थापित करने के लिए चल पड़ा। शर्त थी कि शिवलिंग को जहां भी धरा पर रख दिया जाएगा वह वहीं स्थापित हो जाएगा। शिवलिंग लंका में स्थापित होता तो रावण अजेय हो जाता। ज्ञानी की बुद्धि पर आसुरी शक्तियों का प्रभाव होने के चलते यह स्थापना धरती के लिए विनाशकारी साबित होती। ऐसे में रावण का मंतव्य भंग करने का दायित्व स्वयं भगवान गणेश ने उठाया। ग्वाले के रूप में उनका गोला की धरती पर अवतरण हुआ। जब रावण गोला की धरती से होकर गुजर रहा था तभी उसे लघुशंका लगी। शर्त के चलते रावण शिवलिंग को धरती पर रख नहीं सकता था। ऐसे में उसने ग्वाला का रूप धरे श्री गणेश जी को बुलाया और शिवलिंग यह कहकर दिया कि यदि उन्होंने शिवलिंग को धरती पर रखा तो वह उनके प्राण हर लेंगे। शिवलिंग देकर रावण चला गया। रावण के जाते ही श्री गणेश ने शिवलिंग को धरती पर स्थापित कर दिया। जब रावण वापस आया तो शिवलिंग भूमि पर स्थापित देखकर अत्यंत क्रोधित हुआ। उसने काफी प्रयास किया मगर शिवलिंग को दोबारा भूमि से नहीं उठा सका। क्रोधित होकर रावण ने अंगूठे से शिवलिंग को भूमि में दबा दिया और ग्वाला का रूप धरे भगवान गणेश को उठाकर एक कुएं में फेंक दिया। तभी से श्रावण मास के हर सोमवार को छोटी काशी में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप का और अंतिम सोमवार को भगवान भूतनाथ का पूजन किया जाता है।
गोलिहारों के बसने और गोकर्णनाथ बाबा का नाम जुड़ने से हुआ गोला गोकर्णनाथ गोला गोकर्णनाथ यानी छोटी काशी का इतिहास अति प्राचीन है। उजड़े ग्राम गोलिहार के वासियों के यहां बसने और गवान आशुतोष शंकर के गोकर्णनाथ के नाम पर यह स्थान गोला गोकर्णनाथ छोटी काशी के नाम से प्रसिद्व है। वाजिवुल अर्ज से प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों में कहा गया है कि यहां के प्राचीन शिव मंदिर से तीन कोस दूर दक्षिण दिशा में गोलिहार नामक ग्राम हुआ करता था। ग्राम में सन 1887 में अकाल पडने पर ग्रामवासी गांव छोड़कर पलायन करने को विवश हो गये और ग्राम के कुछ वाशिंदे गोकर्णनाथ के शिव मंदिर के चारों ओर बनी धर्मशालाओं और उसके आस-पास झोपडियां बनाकर निवास करने लगे। इस प्रकार गोलिहार ग्राम के लोगों के यहां रहने से मंदिर के आस-पास के इलाके को गोली कहा जाने लगा। सन 1889 में राव मंशाराम चकलेदार ने इस गांव को मूर्त रुप प्रदान कर बहुत से लोगों को यहां बसाया और धीरे-धीरे ग्राम गोली बढ़ते बढ़ते स्वयं गोला में परिवर्तित हो गया और फिर गोकर्णनाथ महादेव मंदिर का नाम जुड़कर इसका नाम गोला गोकर्णनाथ हो गया। सन 1905 में इस ग्राम को क्षेत्र समिति की मान्यता प्रदान की गयी। फिर शासन के सहयोग से 1946 में नोटीफाईड एरिया बना और 1949 में शासन ने नगर पालिका का दर्जा दिया। सन 1989 में यहां तहसील की स्थापना की गयी। तहसील बनने से पूर्व ही इसे जिला बनाये जाने की मांग निरंतर उठती रही।
यहां औरंगजेब पर भारी पड़ी थीं बर्र क्रूर शासक औरंगजेब के शासनकाल में जब मंदिरों को तोड़ने का सिलसिला शुरु हुआ तो मुगल सेना ने गोला के शिव मंदिर पर हमला किया। औरंगजेब की सेना ने गोला के शिव मंदिर से पहले स्थित बूढ़े बाबा के मंदिर के शिवलिंग पर आरा चलाया तो वहां खतरनाक बर्रों का झुंड़ प्रकट हो गया और मुगल सेना को उलटे पैर भागने को विवश होना पड़ा। इससे मुगल सेना गोला के शिवालय तक नहीं पहुंच सकी। गोला के विख्यात शिव मंदिर के मुख्य शिवालय और बूढ़े बाबा के मंदिर के पौराणिक साक्ष्य हैं। जबकि मंदिर परिसर के अन्य पूजनीय स्थल प्राण प्रतिष्ठा...
Read moreHi friends, This places is related to lord Shiva and located in Lakhimpur khiri district. People and devotees comes here throughout the year from many places of the nation. But in the month sawan ( during july-august), there are alarge number of people come here to worship Lord shiva. Mostly people came here by walking with 'kanwar' in which devotees use holy Ganga water from many holy Ganges ghats like farrukhabad, Haridwar, Gomukh etc. There is a big statue of Lord Shiva also installed outside the temple which is also a tourist attraction. This place is worth visiting. People can come here any time in whole year, but it would be better to visit except Monday in july-august because of heavy rush in this temple and it can be take time more than 6 hours in queue. This place has no railway station but it's well connected from Lakhimpur district and Shahajahanpur district via bus facility. Shahjahanpur is better for them who came here from Lucknow or Delhi side, it's 60 km away from SHAHJAHANPUR. Har Har...
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