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Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram) — Attraction in Uttar Pradesh

Name
Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)
Description
Nearby attractions
Shri Jagannath Temple, Vrindavan
HPM4+JX8, Sri Premanand Rd, Jagannath Ghat, Goda Vihar, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121, India
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Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)
IndiaUttar PradeshYogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)

Basic Info

Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)

Panigaon Khader, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121, India
4.7(341)
Open 24 hours
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spot

Ratings & Description

Info

Cultural
Relaxation
Scenic
Family friendly
Off the beaten path
attractions: Shri Jagannath Temple, Vrindavan, restaurants:
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Reviews

Nearby attractions of Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)

Shri Jagannath Temple, Vrindavan

Shri Jagannath Temple, Vrindavan

Shri Jagannath Temple, Vrindavan

4.7

(130)

Open 24 hours
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Reviews of Yogiraj Devraha Baba (Samadhi sthal and Ashram)

4.7
(341)
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5.0
2y

If you are in search for peace and tranquility, then this is the holy place “Yogiraj Devraha Baba - Samadhi Sthal & Ashram ~ Vrindavan”. A very serene & sacred place near Yamuna river, away from city noise and close to the nature. Best place to sit peacefully and meditate, after spending sometime sitting there in silence made me positive too. Very positive place for those who come in search for deep spiritual practice & peace. Samadhi Sthal is so soothing & one gets infused with the positive vibes. Indeed a divine experiences. A peaceful place beside Yamuna river, you can quietly sit there and enjoy the nature, the flora, birds and tranquility around you. Place is full of positivity and spiritual vibes which will definately compell you to come back. There is small store inside the ashram for books and other religous stuff. You can visit here anytime specially in guru purnima just amazing. You can reach here by car but avoid going in rainy season as the road is not that solid. Car can be parked outside or inside the ashram. Ashram is not so far from the Vrindavan city, 20 min by walk. The rooms are almost ascetic, food is very tasty and simple, not very spicy, good for health. Ashram focuses on ayurveda, yoga, cow seva. There are two Gaushala in the ashram where 500 cows are natured & given care. Those who are interested in contributions towards Ashram Gau Seva (Feeding Cow), can send their contributions via (UPI)...

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5.0
7y

देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के "नाथ" नदौली ग्राम,लार रोड, देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं।)

कुंभ कैंपस में संगम तट पर धुनि रमाए बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महराज के मुताबिक, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके शरण में रहते थे।

हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की। वहां से वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां वर्षों निवास करने के कारण उनका नाम "देवरहा बाबा" पड़ा। देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे।

देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :-

"एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो "।

देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।

"ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:"।

बाबा कहते थे-"जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, "इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।"

प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था-"दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।"

पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे।

बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। सन् 1990 की योगिनी एकादशी (19 जून) के पावन दिन उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। व्यक्तित्वसंपादित करें

बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा। बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था। बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे। जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें...

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2y

कुछ लोग जब परम पूज्य सद्गुरुदेव देवराहा बाबा सरकार का दर्शन करने आते थे तब उनके मन में होता था कि कोई चमत्कार देखने को मिल जाए | उन्हें खुद तो कोई तकलीफ नहीं होती थी बस चमत्कार देखने की उत्सुकता होती थी | श्री श्री बाबा तो सबके मन की बात जानते हैं | एक बार की बात है, बाबा लाररोड आश्रम पर मंचासीन थे | एक व्यक्ति मन ही मन चमत्कार देखने की प्रार्थना कर रहा था | जब वो बाबा के सामने आया तब बाबा जोर से हँसने लगे | उसे कुछ समझ नहीं आया | वह पीछे मुड़ा तो देखा एक बहुत बड़ा अजगर उसके ठीक पीछे था |

वह व्यक्ति तो अजगर को देखते ही बहुत घबड़ा गया | वह तो बिलकुल सन्न रह गया | वो इतना डर गया कि काँपने लगा | बाबा ने हँसते हुए उस व्यक्ति से कहा, “बच्चा डरता क्यों है | यह अजगर भी भक्त है | इसे केला दे दो |” बाबा ने व्यक्ति को केला दिया | व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था | उसने डरते-डरते बाबा के आदेश का पालन किया | केला लेकर अजगर लौट गया और झाड़ियों के पास जाते ही अदृश्य हो गया | व्यक्ति ने हाथ जोड़ कर बाबा से क्षमा माँगी |

बाबा ने उसे समझते हुए कहा- “भक्त, चमत्कार दिखाना कोई अच्छी बात नहीं है | असल बात है भगवान का नाम, उनकी सेवा | सबका कल्याण वे ही करते हैं | अपने काम के साथ राम-राम जपते रहो | कलियुग में यही कीर्तन एक प्रबल आधार है कल्याण का |” बाबा के शिष्य केवल मानव ही नहीं थे | शेर, भालू, लोमड़ी, घड़ियाल आदि भी बाबा के शिष्य थे और अक्सर बाबा के दर्शनों को आते रहते थे | कई बार बाबा जंगलों में भयानक जंगली जानवरों के बीच चले जाते थे और भक्तों के पूछने पर कहते थे कि वहाँ के भक्तों को भी तो सत्संग लाभ देना है | परम पूज्य जगद्गुरु श्री सुग्रीव किलाधीश जी महाराज ने ऐसी कुछ घटनाओं का उल्लेख ‘स्तुति-शतकम्’ में किया है, जिनके बारे में हमने “प्रपत्ति-प्रवाह” ग्रन्थ में लिखा है |

चमत्कार तो बाबा के पास घटते ही रहते हैं | ये श्रद्धा को बढ़ाते हैं, साथ ही भक्तों का कल्याण भी करते हैं | पर केवल चमत्कार देखने की इच्छा रखना कोई अच्छी बात नहीं है | आज भी बाबा विग्रह रूप में जहाँ-जहाँ विराजे हैं वहाँ-वहाँ भी रोज़ चमत्कार घटते हैं | पर फिर कहें कि बाबा से तो उनकी कृपा ही माँगे | कुछ असाधारण होना ही चमत्कार नहीं होता, सब कुछ सामान्य रहना भी...

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Sandip KumarSandip Kumar
If you are in search for peace and tranquility, then this is the holy place “Yogiraj Devraha Baba - Samadhi Sthal & Ashram ~ Vrindavan”. A very serene & sacred place near Yamuna river, away from city noise and close to the nature. Best place to sit peacefully and meditate, after spending sometime sitting there in silence made me positive too. Very positive place for those who come in search for deep spiritual practice & peace. Samadhi Sthal is so soothing & one gets infused with the positive vibes. Indeed a divine experiences. A peaceful place beside Yamuna river, you can quietly sit there and enjoy the nature, the flora, birds and tranquility around you. Place is full of positivity and spiritual vibes which will definately compell you to come back. There is small store inside the ashram for books and other religous stuff. You can visit here anytime specially in guru purnima just amazing. You can reach here by car but avoid going in rainy season as the road is not that solid. Car can be parked outside or inside the ashram. Ashram is not so far from the Vrindavan city, 20 min by walk. The rooms are almost ascetic, food is very tasty and simple, not very spicy, good for health. Ashram focuses on ayurveda, yoga, cow seva. There are two Gaushala in the ashram where 500 cows are natured & given care. Those who are interested in contributions towards Ashram Gau Seva (Feeding Cow), can send their contributions via (UPI) devrahagauseva@sbi Thank you!!
Dheeraj MishraDheeraj Mishra
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के "नाथ" नदौली ग्राम,लार रोड, देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं।) कुंभ कैंपस में संगम तट पर धुनि रमाए बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महराज के मुताबिक, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके शरण में रहते थे। हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की। वहां से वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां वर्षों निवास करने के कारण उनका नाम "देवरहा बाबा" पड़ा। देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे। देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :- "एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो "। देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे। "ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:"। बाबा कहते थे-"जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, "इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।" प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था-"दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।" पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे। बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। सन् 1990 की योगिनी एकादशी (19 जून) के पावन दिन उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। व्यक्तित्वसंपादित करें बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा। बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था। बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे। जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
Mandeep SainiMandeep Saini
कुछ लोग जब परम पूज्य सद्गुरुदेव देवराहा बाबा सरकार का दर्शन करने आते थे तब उनके मन में होता था कि कोई चमत्कार देखने को मिल जाए | उन्हें खुद तो कोई तकलीफ नहीं होती थी बस चमत्कार देखने की उत्सुकता होती थी | श्री श्री बाबा तो सबके मन की बात जानते हैं | एक बार की बात है, बाबा लाररोड आश्रम पर मंचासीन थे | एक व्यक्ति मन ही मन चमत्कार देखने की प्रार्थना कर रहा था | जब वो बाबा के सामने आया तब बाबा जोर से हँसने लगे | उसे कुछ समझ नहीं आया | वह पीछे मुड़ा तो देखा एक बहुत बड़ा अजगर उसके ठीक पीछे था | वह व्यक्ति तो अजगर को देखते ही बहुत घबड़ा गया | वह तो बिलकुल सन्न रह गया | वो इतना डर गया कि काँपने लगा | बाबा ने हँसते हुए उस व्यक्ति से कहा, “बच्चा डरता क्यों है | यह अजगर भी भक्त है | इसे केला दे दो |” बाबा ने व्यक्ति को केला दिया | व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था | उसने डरते-डरते बाबा के आदेश का पालन किया | केला लेकर अजगर लौट गया और झाड़ियों के पास जाते ही अदृश्य हो गया | व्यक्ति ने हाथ जोड़ कर बाबा से क्षमा माँगी | बाबा ने उसे समझते हुए कहा- “भक्त, चमत्कार दिखाना कोई अच्छी बात नहीं है | असल बात है भगवान का नाम, उनकी सेवा | सबका कल्याण वे ही करते हैं | अपने काम के साथ राम-राम जपते रहो | कलियुग में यही कीर्तन एक प्रबल आधार है कल्याण का |” बाबा के शिष्य केवल मानव ही नहीं थे | शेर, भालू, लोमड़ी, घड़ियाल आदि भी बाबा के शिष्य थे और अक्सर बाबा के दर्शनों को आते रहते थे | कई बार बाबा जंगलों में भयानक जंगली जानवरों के बीच चले जाते थे और भक्तों के पूछने पर कहते थे कि वहाँ के भक्तों को भी तो सत्संग लाभ देना है | परम पूज्य जगद्गुरु श्री सुग्रीव किलाधीश जी महाराज ने ऐसी कुछ घटनाओं का उल्लेख ‘स्तुति-शतकम्’ में किया है, जिनके बारे में हमने “प्रपत्ति-प्रवाह” ग्रन्थ में लिखा है | चमत्कार तो बाबा के पास घटते ही रहते हैं | ये श्रद्धा को बढ़ाते हैं, साथ ही भक्तों का कल्याण भी करते हैं | पर केवल चमत्कार देखने की इच्छा रखना कोई अच्छी बात नहीं है | आज भी बाबा विग्रह रूप में जहाँ-जहाँ विराजे हैं वहाँ-वहाँ भी रोज़ चमत्कार घटते हैं | पर फिर कहें कि बाबा से तो उनकी कृपा ही माँगे | कुछ असाधारण होना ही चमत्कार नहीं होता, सब कुछ सामान्य रहना भी चमत्कार है |
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Sandip Kumar

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देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के "नाथ" नदौली ग्राम,लार रोड, देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं।) कुंभ कैंपस में संगम तट पर धुनि रमाए बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महराज के मुताबिक, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके शरण में रहते थे। हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की। वहां से वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां वर्षों निवास करने के कारण उनका नाम "देवरहा बाबा" पड़ा। देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे। देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :- "एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो "। देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे। "ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:"। बाबा कहते थे-"जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, "इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।" प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था-"दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।" पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे। बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। सन् 1990 की योगिनी एकादशी (19 जून) के पावन दिन उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। व्यक्तित्वसंपादित करें बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा। बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था। बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे। जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
Dheeraj Mishra

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कुछ लोग जब परम पूज्य सद्गुरुदेव देवराहा बाबा सरकार का दर्शन करने आते थे तब उनके मन में होता था कि कोई चमत्कार देखने को मिल जाए | उन्हें खुद तो कोई तकलीफ नहीं होती थी बस चमत्कार देखने की उत्सुकता होती थी | श्री श्री बाबा तो सबके मन की बात जानते हैं | एक बार की बात है, बाबा लाररोड आश्रम पर मंचासीन थे | एक व्यक्ति मन ही मन चमत्कार देखने की प्रार्थना कर रहा था | जब वो बाबा के सामने आया तब बाबा जोर से हँसने लगे | उसे कुछ समझ नहीं आया | वह पीछे मुड़ा तो देखा एक बहुत बड़ा अजगर उसके ठीक पीछे था | वह व्यक्ति तो अजगर को देखते ही बहुत घबड़ा गया | वह तो बिलकुल सन्न रह गया | वो इतना डर गया कि काँपने लगा | बाबा ने हँसते हुए उस व्यक्ति से कहा, “बच्चा डरता क्यों है | यह अजगर भी भक्त है | इसे केला दे दो |” बाबा ने व्यक्ति को केला दिया | व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था | उसने डरते-डरते बाबा के आदेश का पालन किया | केला लेकर अजगर लौट गया और झाड़ियों के पास जाते ही अदृश्य हो गया | व्यक्ति ने हाथ जोड़ कर बाबा से क्षमा माँगी | बाबा ने उसे समझते हुए कहा- “भक्त, चमत्कार दिखाना कोई अच्छी बात नहीं है | असल बात है भगवान का नाम, उनकी सेवा | सबका कल्याण वे ही करते हैं | अपने काम के साथ राम-राम जपते रहो | कलियुग में यही कीर्तन एक प्रबल आधार है कल्याण का |” बाबा के शिष्य केवल मानव ही नहीं थे | शेर, भालू, लोमड़ी, घड़ियाल आदि भी बाबा के शिष्य थे और अक्सर बाबा के दर्शनों को आते रहते थे | कई बार बाबा जंगलों में भयानक जंगली जानवरों के बीच चले जाते थे और भक्तों के पूछने पर कहते थे कि वहाँ के भक्तों को भी तो सत्संग लाभ देना है | परम पूज्य जगद्गुरु श्री सुग्रीव किलाधीश जी महाराज ने ऐसी कुछ घटनाओं का उल्लेख ‘स्तुति-शतकम्’ में किया है, जिनके बारे में हमने “प्रपत्ति-प्रवाह” ग्रन्थ में लिखा है | चमत्कार तो बाबा के पास घटते ही रहते हैं | ये श्रद्धा को बढ़ाते हैं, साथ ही भक्तों का कल्याण भी करते हैं | पर केवल चमत्कार देखने की इच्छा रखना कोई अच्छी बात नहीं है | आज भी बाबा विग्रह रूप में जहाँ-जहाँ विराजे हैं वहाँ-वहाँ भी रोज़ चमत्कार घटते हैं | पर फिर कहें कि बाबा से तो उनकी कृपा ही माँगे | कुछ असाधारण होना ही चमत्कार नहीं होता, सब कुछ सामान्य रहना भी चमत्कार है |
Mandeep Saini

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