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Byandhura Mandir — Attraction in Uttarakhand

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Byandhura Mandir
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Byandhura Mandir
IndiaUttarakhandByandhura Mandir

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Byandhura Mandir

Sharda Range, Uttarakhand 262309, India
4.6(95)
Open until 12:00 AM
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Sagar Singh TomarSagar Singh Tomar
ब्यानधुरा मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है | ब्यानधुरा का शाब्दिक अर्थ “बाण की चोटी” हैं | चोटी का आकार भी धनुष बाण की तरह एक सामान हैं | यह मंदिर जंगल के बीचो-बीच में पहाड़ी की चोटी पर नैनीताल और चम्पावत की सीमा में रोड से लगभग 35 किमी की दुरी पर ब्यानधुरा नामक क्षेत्र पर स्थित हैं | इस मंदिर में विराजित देवता को “ऐड़ी देवता” कहा जाता हैं एवम् मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है | कालान्तर में राजा ऐड़ी लोक देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं | राजा ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे और उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में भी माना जाता हैं | इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान-सभा भी माना जाता है | इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता हैं कि राजा ऐड़ी ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तप के बल से राजा ने देव्तत्व को प्राप्त किया था एवम् महाभारत काल से ही ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे इस क्षेत्र में अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने अपना निवासस्थल बनाया था और अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष भी इसी स्थान पर किसी एक चोटी के पत्थर के निचे छिपाया था | ऐसा भी कहा जाता हैं कि अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं और सिर्फ ऐड़ी देव के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं | महाभारत काल के अलावा इस क्षेत्र में मुग़ल और हुणकाल में बाहरी आक्रमणकारियों का दौर रहा लेकिन यह आक्रमणकारी ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से चोटी से आगे पहाड़ो की ओर नहीं बढ़ सके | पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में मनोकामना पूर्ण करने के लिए छत्र , ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन ब्यानधुरा एक ऐसा शक्तिस्थल है , जहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं । ब्यानधुरा मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह एडी देवता का मंदिर एक पौराणिक मंदिर हैं | ब्यानधुरा मंदिर में ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-बाण तो चढ़ाये जाते ही हैं , वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है | मंदिर समिति के पूजारियो के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है । इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की धुनी हैं , जो कि लगातार जलती हैं एवम् गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है , जिसके समक्ष जागर आयोजित होते हैं | ब्यानधुरा मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में तराई क्षेत्र से लेकर पूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग मंदिर में विराजित ऐड़ी और अन्य देवता की पूजा करने आते हैं | ब्यानधुरा मंदिर के बारे में यह मान्यता हैं कि मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है और मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में गाय दान और ऐड़ी देवता को प्रसन्न करने के लिए धनुष-बाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र भेंट करते हैं । मंदिर में मकर संक्रांति के दिन के अलावा चैत्र नवरात्र , माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं |
Rakesh Chandra JoshiRakesh Chandra Joshi
ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं की तपस्थली कहे जाने वाला उत्तराखंड अपनी परंपराओं और रहस्यों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस देवभूमि की दिव्यता का वर्णन वेदों और शास्त्रों में देखने को मिलता है। आज हम आपको देवभूमि उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मन्नत पूरी होने पर प्रशाद नहीं बल्कि धनुण-बाण चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में भारी संख्या में चढ़ाए गए धनुण-बाण इसका प्रमाण हैं। इस मंदिर का नाम है ब्यानधुरा है और यह मंदिर पहाड़ों के बीचों-बीच ब्यानधुरा क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में ऐड़ी देवता विराजमान हैं और भगवान शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक को यहां मान्यता प्राप्त है। वैसे तो देवभूमि में कई मंदिर हैं लेकिन ब्यानधुरा मंदिर में मन्नत पूरी होने पर धनुष बाण चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां अगर संतानहीन दंपती संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना और पूजा करता है तो उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है और फिर मंदिर धनुष बाण या फिर अस्त्र-शस्त्र चढ़ाए जाते हैं। मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर अंखड़ ज्योति जलाकर कीर्तिन करें तब भी उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। ब्यानधुरा शब्द का अर्थ है बाण की चोटी और जिस पहाड़ की चोटी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार धनुष के समान है। इस मंदिर में ऐडी देवता विराजमान हैं। वैसे तो कुंमाऊं में ऐडी देवता के कई मंदिर मिल जाएंगे लेकिन सभी मंदिरों में इस मंदिर पौराणिक मान्यता ज्यादा है। इसी कारण कुमाउं में इसे देवताओं की विधानसभा के नाम से जाना जाता है। ब्यानधुरा मंदिर में स्थित ऐडी देवता कालांतर में राजा ऐडी लोकदेवताओं में पूजे जाते हैं और जहां यह मंदिर स्थित है, राजा ऐडी ने यहीं तपस्या की थी। अपने तप के बल से राजा ने देव्तत्व प्राप्त किया था। राजा ऐडी धनुष विघा में काफी निपुण थे और उनका एक रूप महाभारत काल में अर्जुन के रूप में अवतार लिया। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाया था। साथ ही अर्जुन ने यहीं पर अपने गांडीव धनुष को पहाड़ की चोटी के पत्थर के नीचे छिपाए थे, जो आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि ऐडी देवता के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं। मुगलों ने कई बार इस क्षेत्र में आक्रमण किया लेकिन ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से पहाड़ से आगे नहीं बढ़ पाते थे। ब्यानधुरा मंदिर से कुछ ही दूरी पर गुरु गोरखनाथ की धूनी है, जो लगातार जलती रहती है। इसके साथ ही एक और धूनी मंदिर में स्थित है। इस मंदिर में मकर संक्रांति, चैत्र नवरात्र और माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। पहाड़ के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर केवल मान्यताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने मनोहर दृश्य को लेकर भी काफी प्रसिद्ध है। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चारों ओर से पहाड़ों से घिरा ब्यानधुरा मंदिर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के सुंदर नजारे पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं। नदियां और पहाड़ ब्यानधुरा मंदिर की शोमा और बढ़ाते हैं।
Nitin RawatNitin Rawat
This place is as old as the history of Uttarakhand itself. Aedi Devta, the King who once ruled here in the mortal form now lives in the heart of its people in immortal form. This may be the only temple where people bestow bows and arrows instead of bells and money. It is considered that the King was fond of and pioneer in archery so is the tradition. The temple is situated between the mountain ranges. A river originates from somewhere near the temple. The best time to visit this place is during Navratri.
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ब्यानधुरा मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है | ब्यानधुरा का शाब्दिक अर्थ “बाण की चोटी” हैं | चोटी का आकार भी धनुष बाण की तरह एक सामान हैं | यह मंदिर जंगल के बीचो-बीच में पहाड़ी की चोटी पर नैनीताल और चम्पावत की सीमा में रोड से लगभग 35 किमी की दुरी पर ब्यानधुरा नामक क्षेत्र पर स्थित हैं | इस मंदिर में विराजित देवता को “ऐड़ी देवता” कहा जाता हैं एवम् मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है | कालान्तर में राजा ऐड़ी लोक देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं | राजा ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे और उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में भी माना जाता हैं | इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान-सभा भी माना जाता है | इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता हैं कि राजा ऐड़ी ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तप के बल से राजा ने देव्तत्व को प्राप्त किया था एवम् महाभारत काल से ही ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे इस क्षेत्र में अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने अपना निवासस्थल बनाया था और अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष भी इसी स्थान पर किसी एक चोटी के पत्थर के निचे छिपाया था | ऐसा भी कहा जाता हैं कि अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं और सिर्फ ऐड़ी देव के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं | महाभारत काल के अलावा इस क्षेत्र में मुग़ल और हुणकाल में बाहरी आक्रमणकारियों का दौर रहा लेकिन यह आक्रमणकारी ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से चोटी से आगे पहाड़ो की ओर नहीं बढ़ सके | पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में मनोकामना पूर्ण करने के लिए छत्र , ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन ब्यानधुरा एक ऐसा शक्तिस्थल है , जहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं । ब्यानधुरा मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह एडी देवता का मंदिर एक पौराणिक मंदिर हैं | ब्यानधुरा मंदिर में ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-बाण तो चढ़ाये जाते ही हैं , वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है | मंदिर समिति के पूजारियो के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है । इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की धुनी हैं , जो कि लगातार जलती हैं एवम् गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है , जिसके समक्ष जागर आयोजित होते हैं | ब्यानधुरा मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में तराई क्षेत्र से लेकर पूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग मंदिर में विराजित ऐड़ी और अन्य देवता की पूजा करने आते हैं | ब्यानधुरा मंदिर के बारे में यह मान्यता हैं कि मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है और मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में गाय दान और ऐड़ी देवता को प्रसन्न करने के लिए धनुष-बाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र भेंट करते हैं । मंदिर में मकर संक्रांति के दिन के अलावा चैत्र नवरात्र , माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं |
Sagar Singh Tomar

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ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं की तपस्थली कहे जाने वाला उत्तराखंड अपनी परंपराओं और रहस्यों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस देवभूमि की दिव्यता का वर्णन वेदों और शास्त्रों में देखने को मिलता है। आज हम आपको देवभूमि उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मन्नत पूरी होने पर प्रशाद नहीं बल्कि धनुण-बाण चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में भारी संख्या में चढ़ाए गए धनुण-बाण इसका प्रमाण हैं। इस मंदिर का नाम है ब्यानधुरा है और यह मंदिर पहाड़ों के बीचों-बीच ब्यानधुरा क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में ऐड़ी देवता विराजमान हैं और भगवान शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक को यहां मान्यता प्राप्त है। वैसे तो देवभूमि में कई मंदिर हैं लेकिन ब्यानधुरा मंदिर में मन्नत पूरी होने पर धनुष बाण चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां अगर संतानहीन दंपती संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना और पूजा करता है तो उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है और फिर मंदिर धनुष बाण या फिर अस्त्र-शस्त्र चढ़ाए जाते हैं। मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर अंखड़ ज्योति जलाकर कीर्तिन करें तब भी उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। ब्यानधुरा शब्द का अर्थ है बाण की चोटी और जिस पहाड़ की चोटी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार धनुष के समान है। इस मंदिर में ऐडी देवता विराजमान हैं। वैसे तो कुंमाऊं में ऐडी देवता के कई मंदिर मिल जाएंगे लेकिन सभी मंदिरों में इस मंदिर पौराणिक मान्यता ज्यादा है। इसी कारण कुमाउं में इसे देवताओं की विधानसभा के नाम से जाना जाता है। ब्यानधुरा मंदिर में स्थित ऐडी देवता कालांतर में राजा ऐडी लोकदेवताओं में पूजे जाते हैं और जहां यह मंदिर स्थित है, राजा ऐडी ने यहीं तपस्या की थी। अपने तप के बल से राजा ने देव्तत्व प्राप्त किया था। राजा ऐडी धनुष विघा में काफी निपुण थे और उनका एक रूप महाभारत काल में अर्जुन के रूप में अवतार लिया। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाया था। साथ ही अर्जुन ने यहीं पर अपने गांडीव धनुष को पहाड़ की चोटी के पत्थर के नीचे छिपाए थे, जो आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि ऐडी देवता के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं। मुगलों ने कई बार इस क्षेत्र में आक्रमण किया लेकिन ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से पहाड़ से आगे नहीं बढ़ पाते थे। ब्यानधुरा मंदिर से कुछ ही दूरी पर गुरु गोरखनाथ की धूनी है, जो लगातार जलती रहती है। इसके साथ ही एक और धूनी मंदिर में स्थित है। इस मंदिर में मकर संक्रांति, चैत्र नवरात्र और माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। पहाड़ के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर केवल मान्यताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने मनोहर दृश्य को लेकर भी काफी प्रसिद्ध है। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चारों ओर से पहाड़ों से घिरा ब्यानधुरा मंदिर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के सुंदर नजारे पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं। नदियां और पहाड़ ब्यानधुरा मंदिर की शोमा और बढ़ाते हैं।
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This place is as old as the history of Uttarakhand itself. Aedi Devta, the King who once ruled here in the mortal form now lives in the heart of its people in immortal form. This may be the only temple where people bestow bows and arrows instead of bells and money. It is considered that the King was fond of and pioneer in archery so is the tradition. The temple is situated between the mountain ranges. A river originates from somewhere near the temple. The best time to visit this place is during Navratri.
Nitin Rawat

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Bainadhura Temple is an ancient temple located in Champawat district of Devbhoomi Uttarakhand. Bynadhura literally means "peak of arrow". The shape of the peak is also the same as the bow arrow. This temple is located in the middle of the forest, on the top of the hill, about 35 km from the road in the border of Nainital and Champawat, on an area called Byndhura. In this temple Virajit Devta is called "Aidi Devta" and the temple is recognized as one of the 108 Jyotirlingas of Shiva.

In due course, King Aidi is worshiped as a folk deity. King Eidi was adept at bow fighting and his form is also considered as an incarnation of Arjuna of Mahabharata. The temple of this Edi deity is also considered to be the assembly of the gods. It is said about this temple that King Edi had done penance at this place and by the power of austerity, the king attained divinity and was witness to historical events since the Mahabharata period, during this period of unknown exile in this area, the Pandavas took their Arjuna had made a place of residence and Arjuna also hid his Gandiva bow under one of the peaks of this place. It is also said that Arjuna's Gandiva bow is still present in this region and only the avatar of Aidi Dev is able to lift that bow.

Apart from the Mahabharata period, there was a period of external invaders in the region during the Mughal and Hunkal periods, but due to the miraculous power of the invading Biandhura region, they could not move beyond the peak towards the mountains. Chhatras, dhwajas, pennants, quince, bells, etc. are offered in most of the temples of the mountainous region to fulfill wishes, but Byandhura is a place where bow and arrow are worshiped. How old the Byndhura temples are is yet to be confirmed, but it can be inferred by looking at the pile of bow and arrow etc. in the temple complex that this temple of AD deity is a mythological temple. In the Byndhura temple, iron bow and arrow are offered to the deity of Adi, while there is a tradition of offering weapons and weapons to other deities.

According to the temple committee's priests, it is said that there is also a hundred-hearted heavy bow of the goddess Edi in the pile of weapons here. Just next to this temple is the Dhuni of Guru Gorakhnath, which burns continuously and apart from the Dhuni of Guru Gorakhnath, there is another Dhuni in the temple courtyard, in front of which Jagar is organized. According to the priest of the Byndhura temple, people from the Terai area to the entire Kumaon region come to worship the Virajta Aidi and other deities in the temple.

There is a belief about the Byndhura temple that night awakening with a burning lamp in the temple provides a boon and especially the desire of childless couples is fulfilled and their empty lap is filled and after the wish is fulfilled in the temple, the devotees donate cow in the temple and To please the Eidi deity, they offer bow and arrow and other weapons. In addition to the day of Makar Sankranti in the temple, a grand fair is organized on Chaitra Navratri,...

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Adorable place... Take a look on its history कुमाऊं मंडल के चम्पावत में स्थित ब्यानधुरा बाबा । जो अपने चमत्कारों के कारण पूरे कुमाऊं मंडल में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है, मंदिर में भारी संख्या में चढ़ाए गए धनुष और बाण इस ‌बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। जैसा कि नाम से ही विदित है ब्यान का अर्थ है बाण और धुरा का अर्थ ऊची चोटी से है।‌ इस प्रकार ब्यानधुरा का शाब्दिक अर्थ है बाणों की चोटी। सबसे खास बात तो यह है कि जिस चोटी पर यह मंदिर स्थित है उसका आकार भी एक धनुष के समान ही है।चम्पावत, नैनीताल व उधमसिंह नगर जनपदों की सीमा से लगे सेनापानी रेंज के घने जंगलों के बीच स्थित ब्यानधुरा मंदिर सड़क से 35 किमी दूर एक ऊंची चोटी पर है। इस मंदिर में विराजमान देवता को ऐड़ी देवता कहा जाता है। वैसे तो पूरे कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर ऐड़ी देवता के मंदिर स्थित है परन्तु ब्यानधुरा स्थित इस ऐड़ी देवता के मंदिर की पौराणिक मान्यता उनमें से सबसे अधिक है, इसी कारण समूचे कुमाऊं में इसे ‘देवताओं की विधानसभा’ के नाम से भी जाना जाता हैकहा जाता है कि इस मंदिर में अनेक चमत्कार होते रहते हैं। इस मंदिर में ऐड़ी देवता को जहां लोहे के धनुष-बाण तो चढ़ाये जाते ही हैं , वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है। इस मंदिर की पौराणिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है। यह मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि तो अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में स्थित धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह ऐड़ी देवता का मंदिर एक प्राचीन पौराणिक मंदिर हैं ।मंदिर में प्रतिवर्ष लगते हैं मेले एवं जागर, रात्रि जागरण से भी होती है मनोकामना पूर्ण मंदिर के पुजारी आज भी कहते हैं कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है। इसके साथ ही मंदिर के पुजारी अनिल चंद्र जोशी के अनुसार मंदिर का डोला छः महीनों तक उनके गांव तलियाबांज में रहता है तत्पश्चात कार्तिक पूर्णिमा के दिन डोले को मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है जहां बाबा का डोला आगामी छः महीनों तक विराजमान रहता है। इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की अखंड धुनी हैं , जो कि लगातार जलती हैं। गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है , जिसके समक्ष प्रतिवर्ष जागर आयोजित होते हैं। इसके साथ ही मंदिर में प्रतिवर्ष विभिन्न पर्वों जैसे- मकर संक्रांति, चैत्र नवरात्र , माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता हैं। जिसमें तराई क्षेत्र से लेकर पूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग भारी संख्या में मंदिर में विराजित ऐड़ी और अन्य देवता की पूजा-अर्चना करने आते हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार ब्यानधुरा मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है। यह मंदिर पौराणिक मान्यताओं के साथ ही अपने अलौकिक सौंदर्य की वजह से भी दर्शनार्थियों को खूब भांता है। दर्शनार्थियों के अनुसार ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से मिलने वाली शीतल छाया एवं ठंडी-ठंडी हवा के साथ ही मनमोहक दृश्य 35 किमी की दूरी में भी उन्हें थकान का अहसास तक नहीं...

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ब्यानधुरा मंदिर

देवभूमि उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है | ब्यानधुरा का शाब्दिक अर्थ “बाण की चोटी” हैं | चोटी का आकार भी धनुष बाण की तरह एक सामान हैं | यह मंदिर जंगल के बीचो-बीच में पहाड़ी की चोटी पर नैनीताल और चम्पावत की सीमा में रोड से लगभग 35 किमी की दुरी पर ब्यानधुरा नामक क्षेत्र पर स्थित हैं | इस मंदिर में विराजित देवता को “ऐड़ी देवता” कहा जाता हैं एवम् मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है |

कालान्तर में राजा ऐड़ी लोक देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं | राजा ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे और उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में भी माना जाता हैं | इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान-सभा भी माना जाता है | इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता हैं कि राजा ऐड़ी ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तप के बल से राजा ने देव्तत्व को प्राप्त किया था एवम् महाभारत काल से ही ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे इस क्षेत्र में अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने अपना निवासस्थल बनाया था और अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष भी इसी स्थान पर किसी एक चोटी के पत्थर के निचे छिपाया था | ऐसा भी कहा जाता हैं कि अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं और सिर्फ ऐड़ी देव के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं |

महाभारत काल के अलावा इस क्षेत्र में मुग़ल और हुणकाल में बाहरी आक्रमणकारियों का दौर रहा लेकिन यह आक्रमणकारी ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से चोटी से आगे पहाड़ो की ओर नहीं बढ़ सके | पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में मनोकामना पूर्ण करने के लिए छत्र , ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन ब्यानधुरा एक ऐसा शक्तिस्थल है , जहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं । ब्यानधुरा मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह एडी देवता का मंदिर एक पौराणिक मंदिर हैं | ब्यानधुरा मंदिर में ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-बाण तो चढ़ाये जाते ही हैं , वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है |

मंदिर समिति के पूजारियो के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है । इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की धुनी हैं , जो कि लगातार जलती हैं एवम् गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है , जिसके समक्ष जागर आयोजित होते हैं | ब्यानधुरा मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में तराई क्षेत्र से लेकर पूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग मंदिर में विराजित ऐड़ी और अन्य देवता की पूजा करने आते हैं |

ब्यानधुरा मंदिर के बारे में यह मान्यता हैं कि मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है और मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में गाय दान और ऐड़ी देवता को प्रसन्न करने के लिए धनुष-बाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र भेंट करते हैं । मंदिर में मकर संक्रांति के दिन के अलावा चैत्र नवरात्र , माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन...

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