Dev Prayag is a Sacred city in the state of Uttarakhand which is located at an elevation of 2723 feet's above sea level. Dev Prayag is one of the Pancha Prayag where Alakananda river and Bhagirath river and Become Holy Ganga River. This Raghunath temple is located near the confluence of both Rivers, which is one of the Vishnu Divya Desam's of 108. There are three Divya Desam's in Uttarakhand out of which this is one. Badrinath Badri Vishal temple and Joshimath Narsingh temple are other two Divya Desam's located in Uttarakhand.
Interesting things about Raghunath temple: Raghunath ji temple is also called Tirukantamenum Kadi Nagar. It is believed that during the 8th century the temple was established by Adi Shankaracharya with the later expansion of the Garhwal Empire. Raghunath ji Mandir enshrines a 6 feet Salagrama murti of Bhagavan Sriram. There is a murti of Garuda in front of the temple. Legend has it that Lord Ram did penance here to atone for the killing of Ravana. There are shrines inside the temple complex dedicated to Annapurna Mata, Hanuman and Shankaracharya. Life story of Rama and Krishna are featured on the walls of the temple. There is a peepal tree on the premises that is said to hold special powers. it has withstand many disasters and is still where it has always been. Some people believe that lord Vishnu resides in the leaves of this...
Read moreभारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के उद्गम स्थल पर बना यह रधुनाथ मंदिर जम्मू के डोगरा शासकों द्वारा निर्मित रघुनाथ मंदिर से भी कई सदियों पुराना है। यह ऐसा मंदिर है जिसका उल्लेख न केवल पुराणों और चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में है बल्कि इसका प्रमाणिक इतिहास मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल राज्य के प्राचीन पंवार शासकों के कई सदियों पुराने ताम्र पत्रों में भी दर्ज है। भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में करोड़ों सनातन धर्मावम्बियों की आस्था का प्रतीक भव्यतम् मंदिर के रूप में आकार ले चुका है। लेकिन करोड़ों धर्मावलम्बियों में से शायद कुछ ही को पता होगा कि अयोध्या के अलावा उत्तर भारत का पहला और प्राचीनतम राम मंदिर उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के देवप्रयाग में है। भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के उद्गम पर बना यह रधुनाथ मंदिर जम्मू के डोगरा शासकों द्वारा निर्मित रघुनाथ मंदिर से भी कई सदियों पुराना है। यह ऐसा मंदिर है जिसका उल्लेख न केवल पुराणों और चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में है बल्कि इसका प्रमाणिक इतिहास मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल राज्य के प्राचीन पंवार शासकों के कई सदियों पुराने ताम्र पत्रों में भी दर्ज है। ईटी एटकिंसन ने तो हिमालयन गजेटियर में अल्मोड़ा में भी रामचन्द्र मंदिर का उल्लेख किया है। लेकिन बिडम्बना यह कि पौराणिक काल के इन राम मंदिरों का नामलेवा भी देवप्रयाग वासियों के अलावा कोई नहीं मिलता है। रघुनाथ मंदिर से ही निकलती है पतित पावनी गंगा ।मध्य हिमालय की कई पवित्र धाराओं से बनी अलकनन्दा एवं भागीरथी नदियों के संगम से भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा का उद्भव होता है। इसी पवित्र स्थल पर एक छोटा सा ऐतिहासिक और पौराणिक नगर है जो कि अपने धार्मिक महत्व के कारण देवप्रयाग के नाम से जाना जाता है। गंगा के उद्गम और रघुनाथ मंदिर के कारण धार्मिक दृष्टि से यह प्रयाग ( संगम ) अपने नाम के अनुकूल उत्तराखण्ड के पंच प्रयागों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्थान देश के चार सर्वोच्च धामों में से एक बदरीनाथ धाम और भारत तथा नेपाल में भगवान शिव के द्वादस ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के यात्रा मार्ग पर ऋषिकेश से 73 किमी दूर और समुद्रपल से लगभग 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। फिर भी इस पवित्रतम रघुनाथ मंदिर को अपने स्वर्णिम अतीत के लिये राजनीतिक संरक्षण की जरूरत पड़ रही है। इतिहास जनश्रुतियों में नहीं शिलालेखों, पुराणों और ताम्र पत्रों में प्रायः मंदिरों का इतिहास जनश्रृतियों पर आधारित होता है और उन मंदिरों की सिद्धि रिद्धि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जनश्रृतियों के आधार पर चलती है। लेकिन देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर का इतिहास जनश्रृतियों पर नहीं बल्कि अठारह पवित्र पुराणों में से चार, पद्म पुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण और अग्नि पुराण में मिलता है। इस मंदिर में संबत् 1512 याने कि सन् 1456 ई0 का तत्कालीन गढ़वाल नरेश जगतपाल को मंदिर की मठाधीशी के लिए शंकर भारती कृष्ण भट्ट को दिया गया ताम्र पत्र मौजूद है जिसे गढ़वाल के प्रसिद्ध इतिहासकार कैप्टन शूरवीर सिंह और डॉ यशवन्त सिंह कठौच ने संरक्षित किया है। जबकि जम्मू स्थित उत्तर भारत के विख्यात रघुनाथ मंदिर का इतिहास लगभ 200 साल से कम पुराना है। उस मंदिर का निर्माण 1835 में महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू किया था जिसे महाराजा रणवीर सिंह ने 1860 में पूर्ण कराया। गढवाल के इतिहास की झलक भी मंदिर में मिलती है ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी के दौरान आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। बाद में गढ़वाल राज्य के नरेशों द्वारा इसका विस्तार किया गया। पंवार वंश के 34वें राजा जगतपाल के बाद 44वें राजा मानशाह द्वारा दान संबंधी एक ताम्रपत्र भी मंदिर में मौजूद बताया गया है जो कि सम्बत 1610 याने कि सन् 1554 का माना जाता है। मानशाह की मृत्यु सन् 1575 में मानी जाती है। इसी वंश के 42वें राजा सहजपाल द्वारा मंदिर को दान किये गए घंटे का उल्लेख भी मंदिर के शिलालेखों में मिलता है कि 1664 के मंदिर के दरवाजे और चैखटों पर लगे शिलालेखों से पता चलता है कि इस क्षेत्र पर राजा पृथ्वीपति शाह का शासन था। राजा जयकीर्ति शाह, जिन्होंने 1780 के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया था, ने मंदिर में अपना जीवन समाप्त कर लिया क्योंकि उनके दरबारियों ने उन्हें धोखा दिया था। मंदिर के ठीक पीछे मौजूद शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपि में 19 लोगों के नाम खुदे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि स्वर्ग की प्राप्ति के लिए उन्होंने यहां संगम पर जल-समाधि ले ली थी। ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति के लिए राम ने की तपस्या माना जाता है कि धारानगरी के आए पंवार वंश के राजा कनकपाल के पुत्र श्याम पाल (722-782 ईस्वी) के गुरु शंकर ने काष्ठ का प्रयोग कर मंदिर शिखर का...
Read moreAfter bathing at Deoprayag we proceeded to Raghunath temple. Considered one of the 108 divyadesams this place is referred to as Tirukandam Kadinagaram. Periazhwar has sung 11 pasurams about this divyadesam. Perumal in standing posture is Neelamega Perumal/Purushottama or Raghunath and Thayar is Pundareekavalli and pratyaksham to Bharadwaja maharisi.We climbed several steps to reach this temple. Rama or Raghunath is 15 feet tall and we have Garuda facing Him. This spot is associated with the penance Rama and Lakshmana performed inorder to atone for the sin of killing a brahman that is Ravana. Dasaratha is also supposed to have meditated at Deoprayag which at a height of 2700 ft. The name Deoprayag came because a sage named Devasharma lived a disciplinary life in the dharmic mode here.After spending some time here we proceeded to our bus after buying pedas from one of the small shops and giving dakshina to...
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