यहां के पुजारी अत्रि मुनि गोस्वामी बताते हैं, ''पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने के लिए कहा था। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया था। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब अक्षय वट (बरगद का पेड़) का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था।''
आज इस किले का इस्तेमाल भारतीय सेना द्वारा किया जा रहा है। जमीन के नीचे बने इस मंदिर में फेमस अक्षय वट है। इस किले में एक सरस्वती कूप भी बना है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं से सरस्वती नदी जाकर गंगा-यमुना में मिलती थी। इसके बारे में कहा जाता है कि मुगलों ने इसे जला दिया था। क्योंकि पहले स्थानीय लोग इसकी पूजा करने के लिए किले में आते थे। मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा व्यक्त की जाती थी वो पूरी होती थी।
मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग लगा देते थे छलांग यहां के पुजारी अरविंद नाथ बताते हैं, ''अक्षय वट वृक्ष के पास कामकूप नाम का तालाब था। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे।'' ''644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। तब कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था।'' ''उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया था। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया।'' ''इस दौरान उसे कामकूट तालाब और अक्षयवट के बारे में पता चला। तब उसने पेड़ को किले के अंदर और तालाब को बंद करवा दिया था।'' ''अक्षय वट वृक्ष को अकबर और उसके मातहतों ने कई बार जलाकर और काटकर नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए।'' ''हालांकि यह भी कहा जाता है कि अकबर ने ऐसा इसलिए किया कि वो लोगों की जान बचा सके।''
यहां 3 रात रुके थे भगनान राम-सीता पुजारी प्रयाग नाथ गोस्वामी बताते हैं, ''भगवान राम और सीता ने वन जाते समय इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था।'' ''अकबर के किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।''
अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी इसमें ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित वो शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी है, जिस पर मुगल सम्राट अकबर की पत्नी जोधा बाई जलाभिषेक करती थी। शूल टंकेश्वर मंदिर में जलाभिषेक का जल सीधे अक्षय वट वृक्ष की जड़ में जाता है। वहां से जमीन के अंदर से होते हुए सीधे संगम में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी भी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षय वट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।
प्रयाग नाम के पीछे ये है मान्यता पुजारी अरविंद नाथ के मुताबिक, ''ब्रह्मा जी ने वटवृक्ष के नीचे पहला यज्ञ किया था। इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान किया गया था।'' ''यज्ञ समाप्त होने के बाद ही इस नगरी का नाम प्रयाग रखा गया था, जिसमें 'प्र' का अर्थ प्रथम और 'त्याग' का अर्थ यज्ञ से है।
सीता ने अक्षय वट को दिया था ये आशीर्वाद बताया जाता है, ''जब राजा दशरथ की मृत्यु के बाद पिंड दान की प्रक्रिया आई तो भगवान राम सामान इकट्ठा करने चले गए। उस वक्त देवी सीता अकेली बैठी थी तभी दशरथ जी प्रकट हुए और बोले की भूख लगी है, जल्दी से पिंडदान करो।'' ''सीता कुछ नहीं सूझा। उन्होंने अक्षय वट के नीचे बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ के लिए दान किया। उस दौरान उन्होंने ब्राह्मण, तुलसी, गौ, फाल्गुनी नदी और अक्षय वट को पिंडदान से संबंधित दान दक्षिणा दिया।'' ''जब राम जी पहुंचे तो सीता ने कहा कि पिंड दान हो गया। दोबारा दक्षिणा पाने के लालच में नदी ने झूठ बोल दिया कि कोई पिंड दान नहीं किया है।'' ''लेकिन अक्षय वट ने झूठ नहीं बोला और रामचंद्र की मुद्रा रूपी दक्षिणा को दिखाया। इसपर सीता जी ने प्रसन्न होकर अक्षय वट को आशीर्वाद दिया।'' ''कहा कि संगम स्नान करने के बाद जो कोई अक्षय वट का पूजन और दर्शन करेगा। उसी को संगम स्नान का फल मिलेगा अन्यथा संगम स्नान...
Read moreAkshayavat or Akshay Vat ("the indestructible banyan tree") is believed to be the oldest standing tree on Earth, Akshay Vat is a banyan tree that has been mentioned in many religious texts. Legend has it that Goddess Sita once blessed the Akshay Vat (tree) to be immortal and never ever shed a leaf in any season. Another story says that Lord Narayan once flooded the earth to display his powers to sage Markandeya, and the only thing that was not submerged was this tree. In the epic Ramayana, this tree has been said to be the resting place of Lord Rama. Jain scriptures also declare that a tirthankara, Rishabha, once meditated extensively under this tree. Thus, it is considered sacred by the Jains. Akshay Vat lies in close proximity to the...
Read moreWe went to pay homage to the banyan tree who received blessings of Maa Sita to be immortal and revered for time immeasurable. The boon was for its honesty and steadfastness. It is spread far and wide and one may find numerous red coloured pieces of cloth tied on its thick branches all around. I took parikrama twice. The complex has huge parking space and has better infrastructure, but seemed underutilized.
From there, we went to the nearby pond where the housekeeping personnel were cleaning it as it had turned overly dirty. The establishment and the surroundings can be transformed into spots that can be mesmerizing, but the administrative machinery and masses are not paying much heed to it.
But it was a splendid experience...
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