कुरुक्षेत्र में स्थित ब्रह्म सरोवर से पूर्व दिशा में लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर बसे ऐतिहासिक गांव दयालपुरा के निकट बाणगंगा तीर्थ महाभारत काल में हुए कौरव-पांडवों के युद्ध की यादों को संजोए हुए है। महाभारत का युद्ध अपने चरम पर था। कौरवों के प्रथम प्रधान सेनापति भीष्म पितामह शरशैय्या पर आ चुके थे। इस समय आचार्य द्रोणाचार्य सेनापति के पद पर थे। उन पर दुर्योधन का बहुत अधिक दबाव था जिस कारण उन्होंने युधिष्ठिर को बंदी बनाने का निर्णय लिया। इसी निर्णय के अंतर्गत उन्होंने चक्रव्यूह की रचना की परंतु अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश करके गुरु द्रोण के षड्यंत्र पर पानी फेर दिया। कौरवों ने निर्दयतापूर्वक अभिमन्यु को घेरकर मार डाला। जब धनुर्धर अर्जुन को अपने वीर पुत्र के बलिदान का पता चला तो वह बहुत आवेशित हो उठे। इसी आवेश में उन्होंने सिंधु नरेश जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर ली। अगले दिन अर्जुन का रोद्ररूप देखकर बड़े-बड़े महारथी कांप उठे। जो भी अर्जुन के रथ के सामने आता उसे मुंह की खानी पड़ती। बाणों की वर्षा करके रणभूमि को उन्होंने कौरव सेना के शवों से पाट दिया था। चारों तरफ विध्वंसक वातावरण व्याप्त था। इस भयंकर महासंग्राम में लगातार भागते रहने और शत्रुओं के तीरों से घायल होने के कारण वीर अर्जुन के रथ के घोड़े विचलित हो उठे। उनके धीमे पड़ने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि घायल व थके होने के कारण रथ के घोड़े बार-बार व्यथित हो रहे हैं। इस पर अर्जुन ने रणभूमि के बीच में ही श्रीकृष्ण को रथ रोकने के लिए कहा। उन्होंने तुरंत रथ के चारों तरफ एक बाण पर दूसरा बाण बींधकर एक सुरक्षा दीवार खड़ी कर दी। तीरों से बने इस कक्ष में श्रीकृष्ण ने घोड़ों को रथ से खोल दिया। तब गांडीव से अर्जुन ने धरती में तीर मारकर जल की धारा उत्पन्न कर दी, जिस कारण कक्ष में एक जलाशय-सा बन गया। इसी जलाशय में भगवान वासुदेव ने घोड़ों को अपने हाथों से नहलाकर पानी पिलाया। उनके घावों को स्वच्छतापूर्वक धोकर साफ किया। जिस प्रभु की इच्छा मात्र से संसार का निर्माण और क्षय होता है वे भक्त वत्सल भगवान एक साधारण सेवक की भांति पूर्ण मनोयोग से घोड़ों की सेवा कर रहे थे। घोड़ों को नहलाने के बाद श्रीकृष्ण ने रथ में पुन: जोत दिया। अर्जुन रथ पर सवार होकर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आगे बढ़ गए। यहां अर्जुन ने बाण द्वारा गंगा को प्रकट किया और श्रीकृष्ण ने इस जल से घोड़ों की सेवा की इसलिए यह स्थान आज भी बाणगंगा के नाम से विख्यात है। तीर्थ परिसर में एक पुरातन सरोवर निर्मित है। विशाल बजरंग बली की प्रतिमा भी यहां दर्शनीय है। प्राचीन सरोवर के दक्षिण-पश्चिम में दयालपुरा गांव बसा हुआ है। मन को शांति व ऊर्जा प्रदान करने वाला यह एक सुरमय तीर्थ स्थान है। भक्तों द्वारा यहां मिट्टी के घोड़े अर्पित...
Read moreBanganga, Narkatari, Kurukshetra
Banganga is located at Narkatari, Thanesar in Kurukshetra in Haryana State of India.
This is the spot where the Ganges water sprouted from under the ground when Arjuna shot an arrow to bring forth water to quench the thirst of Bhishma Pithamaha. The name of the spot is derived from this episode. Baan means Arrow and Ganga means Ganges. Bhishma is considered as the son of Goddess Ganges who came to quench the thirst of her son at this spot before he gave up his life as per his desire.
There is a small temple built at this spot and it has idol of Bhishma lying on a bed of arrows. Write up compiled by Viswas Menon Photos by Viswas Menon ©...
Read moreThe place where it is believed that Pitamaha Bhishma lay watching the famous battle after Arjun, created a bed of arrows for him. The place now has a temple next to a water tank called the Banganga or the Bhishma Kund.
There is a legend attached to this water tank. It says that, when Bhishma lay on his bed of arrows, he felt thirsty and asked for water. To fulfil his desire, Arjuna immediately shot an arrow into the ground and let loose a stream of gushing water. This is how the Bhishma Kund is believed to come...
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