"जय फड़ापेन"🌷🌷🌷" स्वदेश है,देश की धड़कन " (ग्वालियर,आगरा,इंदौर,लखनऊ,भोपाल, जबलपुर, रीवा,सतना,गुना, शाजापुर, खंडवा,सांध्यवार्ता,-से एक साथ प्रकाशित) 🌷🌷🌷"सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम बलिदान गोंडवाना से हुआ"🌷🌷🌷 "जय हो, जोहार हो.. लड़ाई आर-पार हो" सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भारत में ऐंसा प्रथम बलिदान जबलपुर से हुआ, जिसे पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे (आज बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन करते, सादर समर्पित) 🙏आइये स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के आलोक में नमन और गर्व करें..इस पर कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 में गोंडवाना साम्राज्य (जबलपुर) की ओर से महारथी शंकरशाह और उनके सुपुत्र रघुनाथशाह ने .. तोप के मुँह से उड़कर(blowing from a gun) संपूर्ण भारत में प्रथम बलिदान दिया था (हमारी शोध)-भारत में सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र नई दुनिया का समर्थन.. परंतु अन्याय और पाप ये कि तथाकथित परजीवी, कैम्ब्रिज के अंहकार में डूबे इतिहासकारों और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखन में इनके नाम पर एक पंक्ति भी नहीं लिखी.. इतिहास, इतिहास को दोहराता है.. 24 जून 1564 को वीरांगना रानी दुर्गावती ने मुगलों से स्वतंत्रता के लिए भयंकर संग्राम करते हुए प्राणोत्सर्ग किया था और लगभग 300 वर्ष बाद उनके वंशजों शंकरशाह और उनके सुपुत्र रघुनाथशाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध बड़ा मोर्चा खोलने कि तैयारी की थी जिसकी पुष्टि उनके पास प्राप्त दस्तावेजों से हुई थी .. पकड़े जाने पर पीली कोठी जबलपुर में मुकदमे के दौरान कहा गया कि "संधि करें.. ईसाई धर्म स्वीकार करें.. पेंशन स्कीम स्वीकार करें".. पर गोंडवाना के महावीरों ने अस्वीकार कर दिया.. Blowing from a gun.. महावीरों ने फांसी की सजा स्वीकार नहीं की वरन् तोप के मुंह से बांधकर उड़ाने की सजा की मांग की..तब अंग्रेजी न्याय आयोग ने तोप के मुंह से बांधकर उड़ाने की सर्वाधिक जघन्य सजा .. यह किसी भी रजवाड़े परिवार को संपूर्ण भारत वर्ष में दी गई प्रथम सजा थी.. दोनों महारथियों ने उड़ने से पहले स्व रचित छंदों को गाकर देवी से अंग्रेजों के सर्वनाश की प्रार्थना की.. उसके उपरांत 18 सितंबर 1857 को उन्हें तोप से उड़ाया गया.. उनके सिर 50 - 50 गज उड़कर दूर गिरे और माँस के अधजले लोथड़े बिखर गये जिनको शंकरशाह की वीरांगना पत्नी फूलकुंवर ने उठाया और अंतिम संस्कार के समय अंग्रेजों से जंग जारी रखने की शपथ ली.. मंडला के जंगलों में फूलकुंवर भी अंग्रेजों से जंग करते हुए प्राणोत्सर्ग करते हुए बलिदान दिया हो..उधर इन शहादतों का बदला 52 वीं नेटिव इन्फेन्ट्री के सैनिकों ने अंग्रेज कमांडर "मेकग्रिगर और जेनकिन्स" का वध कर के लिया .. जबलपुर इन शहादतों को कभी नहीं भूला.. 22-28 फरवरी 1946 में जब जबलपुर में सिग्नल कोर के 1700 जवानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तब भी उन्होंने शंकरशाह और उनके सुपुत्र रघुनाथशाह को ही अपना नायक घोषित किया था.. भावी पीढ़ी के लिए इतिहास को समृद्ध और गौरवशाली बनाने में "परम आदरणीय डॉ. अजय खेमरिया जी के साथ समस्त स्वदेश समाचार पत्र के सहित समस्त सहयोगियों का.. 🙏 इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत की ओर से "अनंत कोटि आभार" 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏डॉ.आनंद सिंह राणा, श्रीजानकीरमण...
Read moreDuring the Revolt of 1857, when other revolutionaries were fighting against the British, Shankar Shah, the aged titular king of Garh-Mandla was living on a pension from the British in Jabalpur.2] He took up arms and according to the English, "hatched a plot to foully murder the English residents of Jubbulpore".[2] In this struggle, his son Raghunath Shah greatly supported his old father. Raja Shankar Shah was the great-grandson of Nizam Shah, the only son of Sumedh Shah. Raja Shankar Shah was very popular among the zamindars and general public.[3]
The 52nd regiment of Bengal Native Infantry was called to put down the rebellion in Jabalpur, but the injustice of the execution of Shankar Shah and Raghunath Shah convinced them to...
Read moreजबलपुर। गौरवशाली गढ़ मंडला का गोंडवाना साम्राज्य, आज भी संस्कारधानी गोंडवाना शासकों की वीरता और उनके द्वारा किए गए कार्यों से समृद्ध है। ठीक ऐसे ही दो वीर इस वंश के रहे हैं जिनकी वीरता के गीत 18 सितंबर को एक बार फिर गाए जा रहे हैं। तोप के सामने किसी को जिंदा बांधकर उसके चीथड़े उड़ा देना अंग्रेजों के लिए नई बात नही थी लेकिन मौत के सामने भी अपनी कविताओं के जरिए लोगों में क्रांति की भावना भरना संभवत: इन्हीं के लिए संभव था। आज हम राजा रघुनाथ शाह, शंकरशाह बलिदान दिवस पर एक ऐसे ही किस्से के बारे में यहां बताने जा रहे हैं...
-1857 ई0 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था। यह देखकर गोंडवाना (वर्तमान जबलपुर) के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों का विरोध करने का निर्णय लिया।
-राजा एवं राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे। उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी।

-राजा ने एक भ्रष्ट कर्मचारी गिरधारीलाल दास को निष्कासित कर दिया था। वह क्लार्क को अंग्रेजी में इन कविताओं का अर्थ समझाता था। क्लार्क समझ गया कि राजा किसी विशाल योजना पर काम रहा है। उसने हर ओर गुप्तचर तैनात कर दिये। कुछ गुप्तचर साधु वेश में महल में जाकर सारे भेद ले आये। उन्होंने क्लार्क को बता दिया कि दो दिन बाद छावनी पर हमला होने वाला है।
-क्लार्क ने आक्रमण के सबसे अच्छी सुरक्षा वाले नियमानुसार 14 सितम्बर को राजमहल को घेर लिया। राजा की तैयारी अभी अधूरी थी, अत: धोखे के चलते राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिये गये।

-जबलपुर शहर में अब भी वह स्थान है जहां पिता-पुत्र को मृत्यु से पूर्व बंदी बनाकर रखा गया था वर्तमान में ये डीएफओ कार्यालय है।
-18 सितम्बर, 1858 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुंह पर बांध दिया गया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एकएक छन्द सुनाया। पहला छन्द राजा ने सुनाया और दूसरा उनके पुत्र ने-
मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका ।।
दूसरा छन्द पुत्र ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।
कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन
डार मुण्डमाल गरे खड्ग कर धर ले...।
-छंद पूरे होते ही जनता में राजा एवं राजकुमार की जय के नारे गूंज उठे। इससे क्लार्क डर गया। उसने तोप में आग लगवा दी। भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआं भर गया। और महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह वीरगति को...
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