Bhukhi Mata Kali Mandir in Ujjain is one of the most mysterious and powerful temples in Madhya Pradesh. Dedicated to Bhukhi Mata, also known as the “Hungry Goddess,” the temple has a fascinating blend of myth, transformation, and devotion. It is located near the banks of the Shipra River and has deep roots in the legends surrounding King Vikramaditya.
According to popular belief, Bhukhi Mata originally demanded human or animal sacrifices to satisfy her hunger. Her presence was considered fierce and unrelenting. However, the wise King Vikramaditya devised a solution to stop the practice of human sacrifice. He offered the goddess a specially crafted human-shaped sweet as prasad. Pleased with his devotion and ingenuity, Bhukhi Mata agreed to accept food offerings instead and relocated across the river to a new site. This transformation turned a once fearsome tradition into one rooted in compassion and ritual.
Today, the temple is known for its unusual offering—liquor. On special days like Ashtami during Navratri, devotees bring alcohol as bhog, a symbolic gesture of feeding the insatiable hunger of the goddess. Despite the fierce aspect of the deity, devotees also offer purely vegetarian food prepared at home, believing it pleases the goddess if made with love and purity.
The Bhukhi Mata temple is a deeply spiritual place, drawing thousands of devotees each year. It is especially significant during the Navratri festival, when the temple comes alive with rituals, chants, and offerings. Just 2 kilometers from the famous Mahakaleshwar Temple, it stands as a reminder of transformation through faith, where even the most feared goddess can be moved by...
Read moreभूखी माता और धूमावती के रूप में विराजमान है देवी
तीर्थ स्थल की अनंत यात्रा में आज हम आपको धार्मिक नगरी उज्जैन की भूखी माता के दर्शन करवाएंगे। इस देवी की कहानी सम्राट विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती जुड़ी हुई है। उज्जैन में भूखी माता नाम से प्रसिद्ध इस देवी की कहानी सम्राट विक्रमादित्य के राजा बनने से जुड़ी है। मान्यता है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। स्कंद पुराण के अवंति खण्ड के अनुसार भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। तब जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दुखी मां ने इसके लिए विक्रमादित्य से बात की। विक्रमादित्य ने उसकी बात सुनकर कहा कि वे देवी से प्रार्थना करेंगे कि वे नरबलि ना लें, अगर देवी नहीं मानेंगी तो वे खुद उनका भोजन बन जाएंगे।

नरबलि से पहले वाली रात को विक्रमादित्य ने उन्होंने पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोग सजाएं गए। इन छप्पन भोगों के चलते भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को खाने से पहले ही शांत हो गई। कई तरह के पकवान और मिष्ठान बनाकर विक्रमादित्य ने एक भोजशाला में सजाकर रखवा दिए। तब एक तखत पर एक मिठाइयों से बना मानव का पुतला लेटा दिया और खुद तखत के नीचे छिप गए।
रात्रि में सभी देवियां उनके उस भोजन से खुश और तृप्त होकर जाने लगीं तब एक देवी को जिज्ञासा हुई कि तखत पर कौन-सी चीज है जिसे छिपाकर रखा गया है। वह देवी तखत पर रखे उस पुतले को तोड़कर खा लिया। खुश होकर देवी ने सोचा किसने ये यह स्वादिष्ट मानव का पुतला यहां रखा। तब विक्रमादित्य तखत के नीचे से निकलकर सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मैंने रखा है। देवी ने खुश होकर वरदान मांगने के लिए कहा, तब विक्रमादित्य ने कहा कि मैं चाहता हूं कि कृपा करके आप नदी के उस पार ही विराजमान रहें, कभी नगर में न आएं। राजा की बुद्धिमानी से देवी प्रसन्न हो गई और उन्हें वरदान दे दिया। विक्रमादित्य ने उनके लिए शिप्रा नदी के उस पार मंदिर बनवाया। इसके बाद देवी ने कभी नरबलि नहीं ली।

भूखी माता और धूमावती के रूप में विराजमान है देवी शिप्रा के किनारे भूखी माता के इस मंदिर में सिंदूरी रंग में लिपटी हुई दो मूर्तियां के रूप में दो देवियां विराजमान है। मान्यता है की ये दोनों बहने हैं। इसमे से एक भूखी माता जो दूसरी देवी का नाम धूमावती है। दोनों देवियों के नाम पर इस मंदिर को भुवनेश्वरी भूखी माता मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में रोज सुबह शाम भव्य आरती की जाती है। नवरात्रि पर्व पर माता को मदिरा का भोग भी अर्पित किया जाता है। देवी का यह स्थान 0तांत्रिक सिद्धि के रूप में चमत्कारिक होने के कारण यहां पर पूरी नवरात्रि के दौरान देशभर से आए तांत्रिक यहां तंत्रसाधना कर माताजी को प्रसन्न करके उनसे सिद्धियां...
Read moreउज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे भूखी माता का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर में दो देवियां विराजमान है। माना जाता है कि दोनों बहने हैं। इनमें से एक को भूखी माता अौर दूसरी को धूमावती के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को भुवनेश्वरी भूखी माता मंदिर भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि आज भी मंदिर में पशु बलि देने की प्रथा है। लेकिन मंदिर में आकर अपने हाथों से शाकाहारी भोजन बनाकर माता को भोग लगाने से देवी अधिक प्रसन्न होती है। मंदिर में दो दीपस्तंभ हैं जिन पर नवरात्रों में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। नवरात्रों में अष्टमी को होने वाली पूजा के बाद माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है।
मंदिर की कथा राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती से संबंधित हैं। माना जाता है कि माता को जवान लड़के की बलि दी जाती थी। उस लड़के को उज्जैन का राती घोषित किया जाता था। उसके पश्चात माता भूखी देवी उसे खा जाती थी। एक मां दुखी होकर विलाप कर रही थी। तब विक्रमादित्य ने उस स्त्री को वचन दिया कि वह माता से प्रार्थना करेगा कि आप के बेटे को न खाए यदि देवी नहीं मानेगी तो वह नगर का राजा अौर भूखी माता का भोग बनेगा।
राजा बनने से पश्चात विक्रमादित्य ने आदेश दिया कि पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाया जाए। जगह-जगह छप्पन भोज सजा दिए गए, जिससे भूखी माता की भूख शांत हो गई। भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर भोजशाला में सजा दिए गए। उन्होंने मिठाईयों का एक पुतला बनवाकर तख्त पर लेटा दिया अौर स्वयं उसके नीचे छिप गया।
रात के समय सभी देवियों ने वहां आकर भोजन किया अौर खुश होकर वहां से जाने लगी तो एक देवी को जिज्ञासा हुई कि तख्त के ऊपर क्या रखा है वह उसे देखे। देवी ने उस मिठाई के पुतले को खा लिया अौर खुश होकर कहा ये स्वादिष्ट मानव का पुतला यहां किसने रखा है। तभी विक्रमादित्य ने तख्त के नीचे से निकल कर कहा कि यह उसने रखा है। देवी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। विक्रमादित्य ने कहा कि कृपा करके आप नदी के उस पार ही विराजमान रहें, कभी नगर में न आएं।
देवी ने राजा की चतुराई से प्रसन्न होकर राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दे दिया। अन्य देवियों ने इस घटना पर उक्त देवी का नाम भूखी माता रख दिया। राजा विक्रमादित्य ने नदी के उस पार देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। उसके पश्चात देवी ने उन्हें कभी...
Read more